हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र

लाहौर कांग्रेस में बाँटे गये इस दस्तावेज़ को भगतसिंह और अन्य साथियों से विचार-विमर्श के बाद मुख्य रूप से भगवतीचरण वोहरा ने लिखा था। दुर्गा भाभी और दूसरे क्रान्तिकारी साथियों ने इसे वहाँ वितरित किया। सी.आई.डी. ने इसे ज़ब्त कर लिया था और उसी के काग़ज़ों से इसकी प्रति मिली।

स्वतन्त्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है। भारत में स्वतन्त्रता का पौधा फलने के लिए दशकों से क्रान्तिकारी अपना रक्त बहाते रहे हैं। बहुत कम लोग हैं जो उनके मन में पाले हुए आदर्शों की उच्चता तथा उनके महान बलिदानों पर प्रश्नचिह्न लगायें, लेकिन उनकी कार्रवाइयाँ गुप्त होने की वजह से उनके वर्तमान इरादे और नीतियों के बारे में देशवासी अँधेरे में हैं, इसलिए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने यह घोषणापत्र जारी करने की आवश्यकता महसूस की है।

विदेशियों की ग़ुलामी से भारत की मुक्ति के लिए यह एसोसिएशन सशस्त्र संगठन द्वारा भारत में क्रान्ति के लिए दृढ़ संकल्प है। ग़ुलाम रखे हुए लोगों की ओर से स्पष्ट तौर पर विद्रोह से पूर्व गुप्त प्रचार और गुप्त तैयारियाँ होनी आवश्यक हैं। जब देश क्रान्ति की उस अवस्था में आ जाता है तब विदेशी सरकार के लिए उसे रोकना कठिन हो जाता है। वह कुछ देर तक तो इसके सामने टिक सकती है, लेकिन उसका भविष्य सदा के लिए समाप्त हो चुका होता है। मानवीय स्वभाव भ्रमपूर्ण और यथास्थितिवादी होने के कारण क्रान्ति से एक प्रकार का भय प्रकट करता है। सामाजिक परिवर्तन सदा ही ताक़त और विशेष सुविधाएँ माँगने वालों के लिए भय पैदा करता है। क्रान्ति एक ऐसा करिश्मा है जिसे प्रकृति स्नेह करती है और जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती – न प्रकृति में और न ही इन्सानी कारोबार में। क्रान्ति निश्चय ही बिना सोची-समझी हत्याओं और आगजनी की दरिन्दा मुहिम नहीं है और न ही यहाँ-वहाँ चन्द बम फेंकना और गोलियाँ चलाना है; और न ही यह सभ्यता के सारे निशान मिटाने तथा समयोचित न्याय और समता के सिद्धान्त को ख़त्म करना है। क्रान्ति कोई मायूसी से पैदा हुआ दर्शन भी नहीं और न ही सरफ़रोशों का कोई सिद्धान्त है। क्रान्ति ईश्वर-विरोधी हो सकती है लेकिन मनुष्य-विरोधी नहीं। यह एक पुख़्ता और ज़िन्दा ताक़त है। नये और पुराने के, जीवन और ज़िन्दा मौत के, रोशनी और अँधेरे के आन्तरिक द्वन्द्व का प्रदर्शन है, कोई संयोग नहीं है। न कोई संगीतमय एकसारता है और न ही कोई ताल है, जो क्रान्ति के बिना आयी हो। ‘गोलियों का राग’ जिसके बारे में कवि गाते आये हैं, सच्चाई रहित हो जायेगा अगर क्रान्ति को समूची सृष्टि में से ख़त्म कर दिया जाये। क्रान्ति एक नियम है, क्रान्ति एक आदर्श है और क्रान्ति एक सत्य है।

हमारे देश के नौजवानों ने इस सत्य को पहचान लिया है। उन्होंने बहुत कठिनाइयाँ सहते हुए यह सबक सीखा है कि क्रान्ति के बिना – अफरा-तफरी, क़ानूनी गुण्डागर्दी और नफ़रत की जगह, जो आजकल हर ओर फैली हुई है – व्यवस्था, क़ानूनपरस्ती और प्यार स्थापित नहीं किया जा सकता। हमारी सर्वसम्पन्न धरती पर किसी को ऐसा विचार नहीं आना चाहिए कि हमारे नौजवान ग़ैर-ज़िम्मेदार हैं। वे पूरी तरह जानते हैं कि वे कहाँ खड़े हैं। उनसे बढ़कर किसे मालूम है कि उनकी राह कोई फूलों की सेज नहीं है। समय-समय पर उन्होंने अपने आदर्शों के लिए बहुत बड़ी क़ीमत चुकायी है। इस कारण किसी के मुँह से यह नहीं निकलना चाहिए कि नौजवान उतावलेपन में किन्हीं मामूली बातों के पीछे लगे हुए हैं।

यह कोई अच्छी बात नहीं है कि हमारे आदर्शों पर कीचड़ उछाला जाता है। यह काफ़ी होगा अगर आप जानें कि हमारे विचार बेहद मज़बूत और तेज़-तर्रार हैं जो न सिर्फ़ हमें आगे बढ़ाये रखते हैं बल्कि फाँसी के तख़्ते पर भी मुस्कुराने की हिम्मत देते हैं।

आजकल यह फ़ैशन.सा हो गया है कि अहिंसा के बारे में अन्धाधुन्ध और निरर्थक बात की जाये। महात्मा गाँधी महान हैं और हम उनके सम्मान पर कोई भी आँच नहीं लाने देना चाहते, लेकिन हम यह दृढ़ता से कहते हैं कि हम देश को स्वतन्त्र कराने के उनके ढंग को पूर्णतया नामंजूर करते हैं। यदि हम देश में चलाये जा रहे उनके असहयोग आन्दोलन द्वारा लोक-जागृति में उनकी भागीदारी के लिए उनको सलाम न करें तो यह हमारे लिए बड़ा नाशुक्रापन होगा। परन्तु हमारे लिए महात्मा असम्भवताओं के दार्शनिक हैं। अहिंसा भले ही एक नेक आदर्श है लेकिन यह अतीत की चीज़ है। जिस स्थिति में आज हम हैं, सिर्फ़ अहिंसा के रास्ते से कभी भी आज़ादी प्राप्त नहीं कर सकते। दुनिया सिर से पाँव तक हथियारों से लैस है और (ऐसी) दुनिया पर हम हावी है। अमन की सारी बातें ईमानदार हो सकती हैं, लेकिन हम जो ग़ुलाम क़ौम हैं, हमें ऐसे झूठे सिद्धान्तों के जरिये अपने रास्ते से नहीं भटकना चाहिए। हम पूछते हैं कि जब दुनिया का वातावरण हिंसा और ग़रीब की लूट से भरा हुआ है, तब देश को अहिंसा के रास्ते पर चलाने का क्या तुक है? हम अपने पूरे ज़ोर के साथ कहते हैं कि क़ौम के नौजवान कच्ची नींद के ऐसे सपनों से रिझाये नहीं जा सकते।

हम हिंसा में विश्वास रखते हैं – अपनेआप में अन्तिम लक्ष्य के रूप में नहीं, बल्कि एक नेक परिणाम तक पहुँचने के लिए अपनाये गये तौर-तरीक़े के नाते। अहिंसा के पैरोकार और सावधानी के वकील यह बात तो मानते हैं कि हम अपने यक़ीन पर चलने और उसके लिए कष्ट सहने के लिए तैयार रहते हैं। तो क्या हमें इसीलिए अपने साथियों की साझी माँ की बलिवेदी पर क़ुर्बानियों की गिनती करानी पड़ेगी? अंग्रेज़ सरकार की जेलों की चारदीवारी के अन्दर रूह कँपा देने और दिल की धड़कन रोक देने वाले कई दृश्य खेले जा चुके हैं। हमें हमारी आतंकवादी नीति के कारण कई बार सज़ाएँ हुई हैं। हमारा जवाब है कि क्रान्तिकारियों का मुद्दा आतंकवाद नहीं होता; तो भी हम यह विश्वास रखते हैं कि आतंकवाद के रास्ते ही क्रान्ति आ जायेगी। पर इसमें कोई शक नहीं है कि क्रान्तिकारी बिल्कुल दुरुस्त सोचते हैं कि अंग्रेज़ी सरकार का मुँह मोड़ने के लिए इन तरीक़ों का इस्तेमाल करना ही कारगर तरीक़ा है। अंग्रेज़ों की सरकार इसलिए चलती है, क्योंकि वे सारे भारत को भयभीत करने में क़ामयाब हुए हैं। हम इस सरकारी दहशत का किस तरह मुक़ाबला करें? सिर्फ़ क्रान्तिकारियों की ओर से मुक़ाबले की दहशत ही उनकी दहशत को रोकने में क़ामयाब हो सकती है। समाज में एक लाचारी की गहरी भावना फैली हुई है। इस ख़तरनाक मायूसी को कैसे दूर किया जाये? सिर्फ़ क़ुर्बानी की रूह को जगाकर खोये आत्मविश्वास को जगाया जा सकता है। आतंकवाद का एक अन्तरराष्ट्रीय पहलू भी है। इंग्लैण्ड के काफ़ी शत्रु हैं जो हमारी ताक़त के पूर्ण प्रदर्शन से हमारी सहायता करने को तैयार हैं। यह भी एक बड़ा लाभ है।

भारत साम्राज्यवाद के जुवे के नीचे पिस रहा है। इसमें करोड़ों लोग आज अज्ञानता और ग़रीबी के शिकार हो रहे हैं। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या जो मज़दूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गम्भीर है। उसके सामने दोहरा ख़तरा है – विदेशी पूँजीवाद का एक तरफ़ से और भारतीय पूँजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ़ से। भारतीय पूँजीवाद विदेशी पूँजी के साथ हर रोज़ बहुत से गँठजोड़ कर रहा है। कुछ राजनीतिक नेताओं का डोमिनियन (प्रभुतासम्पन्न) का दर्जा स्वीकार करना भी हवा के इसी रुख को स्पष्ट करता है।

भारतीय पूँजीपति भारतीय लोगों को धोखा देकर विदेशी पूँजीपति से विश्वासघात की क़ीमत के रूप में सरकार में कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहता है। इसी कारण मेहनतकश की तमाम आशाएँ अब सिर्फ़ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ़ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेदभाव ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है। देश का भविष्य नौजवानों के सहारे है। वही धरती के बेटे हैं। उनकी दुख सहने की तत्परता, उनकी बेख़ौफ़ बहादुरी और लहराती क़ुर्बानी दर्शाती है कि भारत का भविष्य उनके हाथ में सुरक्षित है। एक अनुभूतिमय घड़ी में देशबन्धु दास ने कहा था, “नौजवान भारतमाता की शान एवं आशाएँ हैं। आन्दोलन के पीछे उनकी प्रेरणा है, उनकी क़ुर्बानी है और उनकी जीत है। आज़ादी की राह पर मशालें लेकर चलने वाले ये ही हैं। मुक्ति की राह पर ये तीर्थयात्री हैं।”

भारतीय रिपब्लिक के नौजवानो, नहीं सिपाहियो, क़तारबद्ध हो जाओ। आराम के साथ न खड़े रहो और न ही निरर्थक क़दमताल किये जाओ। लम्बी दरिद्रता को, जो तुम्हें नाकारा कर रही है, सदा के लिए उतार फेंको। तुम्हारा बहुत ही नेक मिशन है। देश के हर कोने और हर दिशा में बिखर जाओ और भावी क्रान्ति के लिए, जिसका आना निश्चित है, लोगों को तैयार करो। फ़र्ज़ के बिगुल की आवाज़ सुनो। वैसे ही ख़ाली ज़िन्दगी न गँवाओ। बढ़ो, तुम्हारी ज़िन्दगी का हर पल इस तरह के तरीक़े और तरतीब ढूँढ़ने में लगना चाहिए, कि कैसे अपनी पुरातन धरती की आँखों में ज्वाला जागे और एक लम्बी अंगड़ाई लेकर वह जाग उठे। अंग्रेज़ साम्राज्य के ख़िलाफ़ नवयुवकों के उर्वर हृदयों में एक उकसाहट और नफ़रत भर दो, ऐसे बीज डालो जोकि उगें और बड़े वृक्ष बन जायें क्योंकि इन बीजों को तुम अपने गर्म ख़ून के जल से सींचोगे। तब एक भयानक भूचाल आयेगा, जो बड़े धमाके से ग़लत चीज़ों को नष्ट कर देगा और साम्राज्यवाद के महल को कुचलकर धूल में मिला देगा और यह तबाही महान होगी।

तब, और सिर्फ़ तभी, एक भारतीय क़ौम जागेगी, जो अपने गुणों और शान से इन्सानियत को हैरान कर देगी। तब चालाक और बलवान सदा से कमज़ोर लोगों से हैरान रह जायेंगे। तभी व्यक्तिगत मुक्ति भी सुरक्षित होगी और मेहनतकश की सरदारी और प्रभुसत्ता को सत्कारा जायेगा। हम ऐसी ही क्रान्ति के आने का सन्देश दे रहे हैं। क्रान्ति अमर रहे!

 – करतार सिंह[*], अध्यक्ष

(1929) रिपब्लिकन प्रेस, अरहवन, भारत से प्रकाशित।

[*](भगतसिंह का छद्म नाम)


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

जनचेतना से पुस्तकें मँगाने का तरीका:

  • जनचेतना पर उपलब्ध पुस्तकों को आप डाक के ज़रिये मँगा सकते हैं ।
  • पुस्तकें ऑर्डर करने के लिए ईमेल अथवा फोन से सम्पर्क करें।
    • ईमेल : info@janchetnabooks.org
    • फोन : 08853093555; 0522-2786782
    • पता: डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020
    • वेबसाइट: http://janchetnabooks.org/
  • जनचेतना का बैंक अकाउंट (ऑनलाइन या चेक/ड्राफ्ट से भुगतान के लिए):
    जनचेतना पुस्तक प्रतिष्ठान समिति
    अकाउंट नं: 0762002109003796
    पंजाब नेशनल बैंक
    निशातगंज
    लखनऊ
    IFSC Code: PUNB0076200

Related posts

Leave a Comment

eighteen − nine =