सुखदेव का तायाजी के नाम पत्र

सुखदेव का तायाजी के नाम पत्र

बोर्स्टल, लाहौर

मान्य ताया जी,

दो पत्र पहले लिख चुका हूँ। कोई उत्तर नहीं मिला।

मैं सुन रहा हूँ मेरे कारण आपको बहुत कुछ मानसिक कष्ट उठाना पड़ रहा है इसके पूर्व भी इस ख़याल से आपको पत्र द्वारा कहने की चेष्टा की है। अब फिर वही कह रहा हूँ।

मैं जानता हूँ कि आपको मेरे स्वभाव (मूलपत्र में ‘स्वाभाव’ लिखा है। – स.) के कारण बहुत चिन्तित रहना पड़ता है और मैं यह भी चाहता हूँ कि आपकी यह चिन्ता किसी प्रकार दूर हो जाये। ख़ासकर इन दिनों में जबकि आपके लिए दूसरे कष्ट काफ़ी इकट्ठा हो रहे हैं। परन्तु एक बात मैं आपसे साफ़ कहना चाहता हूँ। मुझसे कोई बात सिर्फ़ इसीलिए कि उससे दूसरे ख़ुश होंगे – नहीं हो सकती। दाढ़ी ही की बात लीजिये। भला इससे आपको इतना दुखी होने की क्या आवश्यकता थी। जैसे दाढ़ी-मूँछ कटाना एक फ़ैशन है वैसे ही दाढ़ी रखना भी तो एक फ़ैशन ही है। अब क्या किसी व्यक्ति को इस बारे में भी माता-पिता द्वारा इतना बाध्य होना पड़ेगा और उसे सर, दाढ़ी और मूँछ के बाल अपने माता-पिता की इच्छा पर ही रखाने या कटाने चाहिए। तो क्या वे लोग जो दाढ़ी इत्यादि धर्म अथवा माँ-बाप की ख़ातिर या रूढ़ी को क़ायम रखने की ख़ातिर रखाते हैं ऐसा करने में (justified) हुए न। मैं नहीं समझता कि आप जैसे स्वतन्त्र विचार रखने वाला पुरुष क्यों अपने पुत्र से ऐसी आशा करता है कि वह मामूली-मामूली बात करने में इस बात का विचार रखे कि उसके वैसा करने से उसका पिता तो बुरा नहीं मानेगा। और वह आदमी आज़ाद विचारों वाला ही कैसे हो सकता है जो दूसरे व्यक्ति को उसके अपनी इच्छानुसार करने पर बुरा समझे जबकि वह बात कोई ऐसी नहीं है जिसे बुरी दृष्टि से (Morally) देखा जाना चाहिए।

हाँ, एक बात और है, शायद आपका यह विचार होता होगा कि इससे मैं बदसूरत मालूम होता हूँ और मैं जान-बूझकर अपनी हालत ज़्यादा गन्दी रखना चाहता हूँ, जिसे आप अपने पुत्र के लिए अच्छा नहीं समझते। यदि ऐसा है तो मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आपका ऐसा विचार करना भूल है। अपने शरीर की जितनी फिकर मुझे रहती है और देश तथा धर्म की ख़ातिर अपने शरीर को ख़राब करने के बरख़िलाफ़ जितना मैं हूँ और शायद ही कोई हो। ऐसी अवस्था में मैं नहीं समझता कि आपकी नाराज़गी का क्या कारण है।

साथ ही यह बात भी मैं आपके आगे रख देना चाहता हूँ कि मैं इस बात को बहुत बुरा समझता हूँ कि मैं यह कुछ भी करने में सदा इस बात का ध्यान रखूँ कि दूसरे क्या विचार करेंगे और न ही मैं यह अच्छा समझता हूँ कि और कोई मेरे व्यक्तिगत जीवन की बातों में मुझे अपनी इच्छाओं से बाध्य करे। मैं चाहे कोई भी हो – किसी की ख़ातिर अपना व्यक्तित्व खोना नहीं चाहता और फिर ऐसी-ऐसी मामूली बातों की ख़ातिर मैं स्वयं इन बातों से तंग हो जाता हूँ।

दूसरा कारण आपके दुखी रहने का है मेरा आजकल का Attitude। ठीक है। माता-पिता के लिए गौरव की बात यही है कि उनका लड़का उनके लिए नेकनामी पैदा करे न कि कलंक। माता-पिता की सदा यह इच्छा रहती है कि उनका लड़का बड़ा नाम कमाये और जीवन के संग्रामों में किसी से भी पीछे न रहे। मैं जानता हूँ आपकी भी ऐसी ही मानसिक अवस्था है और जब आप देखते हैं कि मैं किसी बात में भाग नहीं लेता और हमेशा चुप रहता हूँ तो आपको बहुत दुख होता है। सचमुच, मैं आपसे सच्चे दिल से कहता हूँ, आपको इस बारे में दुखी देखकर मैं स्वयं बहुत दुखी होता हूँ। और क्या कहूँ, मैंने इस कारण से कितने अपनों को नाराज़ किया है और कितनों की नज़र में बुरा बना हूँ। इतना होने पर भी इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता और न सफ़ाई देना चाहता हूँ। पर आपसे यह अवश्य कहूँगा कि आप कभी इन विचारों को लेकर दुखी न हों और मैं क्या करता हूँ और मुझे क्या करना चाहिए, इन बातों पर कभी विचार ही न करना चाहिए।

क्योंकि आपको यक़ीन करना चाहिए कि मैं आपका पुत्र हूँ। बस यही मेरी सफ़ाई है। इस पर यक़ीन कीजिये।

क्या मैं आशा कर सकता हूँ कि आप मेरी ओर से निश्चिन्त हो जायेंगे।

आपका पुत्र,

सुखदेव


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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