नौजवानों से दो बातें

आज मैं नौजवानों को सम्बोधित करना चाहता हूं। बूढ़े इस पैम्फ़लेट को रख दें और ऐसी बातें पढ़कर अपनी आंखें न दुखायें जो उन्हें कुछ भी नहीं देंगी। जाहिर है बूढ़ों से मेरा मतलब उनसे है जो दिल और दिमाग से बूढ़े हैं। मैं यह मानकर चल रहा हूं कि आप अठारह या बीस वर्ष की उम्र के हैं; कि आपने अपनी अप्रेण्टिसशिप या पढ़ाई पूरी कर ली है; कि आप जीवन में बस प्रवेश कर रहे हैं। मैं यह मानकर चलता हूं कि आपका दिमाग उस अंधविश्वास से मुक्त है जो आपके अध्यापक आप पर थोपने की कोशिश करते रहे; कि आप शैतान से नहीं डरते, और आप पादरियों और धर्माचार्यों की अनाप-शनाप बातें सुनने नहीं जाते। इसके साथ ही, आप उन सजे-धजे छैलों, एक सड़ रहे समाज के उन उत्पादों में से नहीं हैं जिन्हें देखकर अफ़सोस होता है, जो अपनी बढ़िया काट की पतलूनों और बंदर जैसे चेहरे लिये पार्कों में घूमते-फि़रते हैं और जिनके पास इस कम उम्र में ही सिर्फ़ एक ही चाहत होती है किसी भी कीमत पर मौज-मस्ती लूटने की कभी न बुझने वाली चाहत।… इसके उलट, मैं यह मानता हूं कि आपके सीनों में गर्मजोशी से भरा एक दिल धड़कता है और इसीलिए मैं आपसे बात कर रहा हूं।