भगतसिंह – श्रमिक आन्दोलन को दबाने की चालें

श्रमिक आन्दोलन को दबाने की चालें

सितम्बर, 1928 के ‘किरती’ के चार और सम्पादकीय महत्त्वपूर्ण हैं। एक पब्लिक सेफ्टी बिल, दूसरा ट्रेड डिस्प्यूट बिल सम्बन्धी भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को प्रकट करता है। इन्हीं बिलों के विरोध में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को असेम्बली हॉल में बम का धमाका किया था। तीसरी सम्पादकीय टिप्पणी में मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट पर चर्चा है और इसे बुर्जुआ विचारधारा का प्रतीक बताया गया है। चौथे सम्पादकीय में बारदोली किसान आन्दोलन पर विचार रखे गये हैं। सितम्बर, 1928 में ही हिन्दुस्तान प्रजातान्त्रिक पार्टी, हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक पार्टी बन गयी थी। – स.

विश्व में जो अन्धेरगर्दी इन ख़ुदगर्ज़ और बेईमान पूँजीपति शासकों ने मचा रखी है, वह लिखकर लोगों को समझायी नहीं जा सकती। अब जब उनके पर्दे दुनिया में खुल रहे हैं और अब जब श्रमिक भी इन लोगों को अपने श्रम पर हराम की मोटी-मोटी खाल चढ़ाने से रोकने का यत्न करने लगे हैं तो ये तड़पते हैं और शान्ति-शान्ति का शोर मचाने लगते हैं। सम्पत्ति ख़तरे में है, दुनिया कैसे चलेगी, आदि वाक्यों से शोर मचाकर आम लोगों और श्रमिकों को समाजवादी आन्दोलन के विरोधी बना रहे हैं। साथ ही साथ उन आन्दोलनों को दबाने के विचार से अन्धा अत्याचार करने की ठान ली है। आज हम समाचारपत्रों में पढ़ रहे हैं कि लोगों की सुरक्षा नाम का एक (Public Safety – removed from India-bill) बिल असेम्बली में पेश हो रहा है। पेश सरकार की ओर से ही होना है। बिल का आशय यह है कि यदि समाजवादी विचारों का प्रचार करने वाला कोई ऐसा आदमी भारत में आ जायेगा, जो यहाँ का नागरिक न होगा तो उसे नोटिस देकर एकदम देश से निकाल दिया जायेगा। यह बिल क्यों पास किया जायेगा और इसे पास करवाने के लिए क्या-क्या घटिया चालें चली जा रही हैं, यही हम पाठकों को बताना चाहते हैं।

कुछ दिन पहले अख़बारों में एक पत्र छपा था जिसके बारे में कहा जाता था कि कम्युनिस्टों की ओर से यह पत्र इंग्लैण्ड की कम्युनिस्ट पार्टी को लिखा गया था। उसमें उन्होंने कहा था कि आख़िर में हम सशस्त्र क्रान्ति या हथियारों से युद्ध कर ही क्रान्ति सम्पन्न करेंगे, लेकिन उससे पहले कम्युनिस्ट पार्टी गुप्त रूप में काम करेगी और श्रमिक किसान पार्टी को नियन्त्रण में कर प्रचार का काम खुले रूप में किया जायेगा, आदि। उधर क्योंकि रूस चाहता है कि दुनियाभर में मज़दूरों का शासन स्थापित किये बग़ैर स्थायी शान्ति नहीं हो सकती, इसीलिए वह हर जगह समाजवादी आन्दोलन करवाना चाहता है। और चूँकि दुनिया में सबसे बड़े पूँजीपति और सम्राटपसन्द अंग्रेज़ हैं, इसलिए उनका राज नष्ट करना ज़रूरी है और उनका राज ही हिन्दुस्तान के सिर पर है, इसीलिए यहाँ क्रान्ति करवाना अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में अंग्रेज़ रूस से बहुत भयभीत हैं और वे कम्युनिस्ट या समाजवादी विचारों के प्रचार को रोकना चाहते हैं। पर किया क्या जाये? हिन्दुस्तानी पूँजीपतियों की सहानुभूति जीतने के लिए वह पत्र छपवाया गया। अख़बारों में लिखा गया था –

दिल्ली, अगस्त 20

निम्न पत्र को प्रसारित किया गया।

किसकी ओर से, कब, कहाँ? यह कुछ पता नहीं। और यह पत्र है भी पिछले दिसम्बर की तारीख़ का। अब तक वह कहाँ छिपा रहा?

कम्युनिस्ट पार्टी ने इस पत्र के साथ अपना कोई सम्बन्ध मानने से इन्कार कर दिया है। श्रमिक किसान पार्टी ने भी ऐसी ही घोषणा की है। फिर यह पत्र आया कहाँ से? और इसे अब ही क्यों छापा गया? ये बातें सोचने योग्य हैं। इस पत्र के साथ, और रूस की कुछ घोषणाओं को बार-बार छापने से हिन्दी पूँजीपतियों को भी सरकार ने अपने साथ मिला लिया। हमें पता है कि निठल्ले पूँजीपति मिलकर यह बिल पास करवा लेंगे। पर क्या सरकार समझती है कि इस तरह समाजवादी विचारों का प्रचार रुक जायेगा? क्या इन नीचताभरी चालों से वे अपने पैर पक्के कर स्थिर रह सकेंगे? इतिहास की ओर से जान-बूझकर क्यों आँखें बन्द रखी जाती हैं? आज फ्रांस के फ्यूडल लॉर्ड्स और रूसी नोबल्स कहाँ है? क्या इन लोगों ने इन विचारों को दबाने के लिए अपना-अपना ज़ोर नहीं लगाया और क्या क्रान्ति रुक सकी थी? फिर यहीं क्रान्ति कैसे रुक सकेगी? जब तक भूख है और श्रम करने वाले भूखे मरते रहेंगे और निठल्ले बैठने वाले हर तरह की मौज़ उड़ाते रहेंगे, तब तक समाजवादी विचार दबाने से और भी ज़ोर पकड़ते रहेंगे। लेकिन श्रमिकों को सँभल जाना चाहिए और समझ लेना चाहिए कि उनके आन्दोलन को दबाने के लिए कितने अत्याचार किये जा रहे हैं और यदि वे अब भी न सँभले तो बाद में पछताने से कुछ हाथ न आयेगा।


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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