एक और दमनकारी क़ानून
जिस तरह हिन्दुस्तान में कारख़ाने बढ़ रहे हैं, उसी तरह हमारे पूँजीपति और अंग्रेज़ों के लाभ-हानि भी साझे होते जा रहे हैं और ये देश में उभर रहे जन-आन्दोलन को सामान्यतया दबाने का संयुक्त रूप से प्रयत्न कर रहे हैं। अब एक समय दो क़ानून स्वीकृत हो रहे हैं: एक है जन-सुरक्षा बिल (पब्लिक सेफ्टी बिल) और दूसरा है औद्योगिक विवाद बिल (ट्रेड्स डिस्प्यूट बिल) अर्थात किसी पूँजीपति और मज़दूरों का किसी सवाल पर झगड़ा हो जाये तब तुरन्त एक पंचायत गठित कर दी जाये, जिसमें पूँजीपति मालिकों तथा मज़दूरों के प्रतिनिधि शामिल हों और इसका अध्येता एक निष्पक्ष व्यक्ति हो। वह जो निर्णय दे उसे सभी स्वीकारें। हड़ताल का अधिकार नहीं होगा। हड़ताल करने वाले को 500 रुपये जुर्माना या एक माह की क़ैद की सज़ा दी जायेगी और अगर कोई राजनीतिक विचारधारा को लेकर हड़ताल करेगा, उसे तीन माह की क़ैद तथा 500 रुपये के जुर्माने की सज़ा होगी। लेकिन ये सज़ाएँ क्यों? विवाद निपटाने के लिए जो कमेटी बनायी जायेगी, अगर वह मज़दूरों की इच्छाओं के विरुद्ध फ़ैसला कर दे, तब? तो भी क्या उन ग़रीबों को हड़ताल करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? बड़ी अजीब बात है। मज़दूरों को जल्दी ही सँभल जाना चाहिए, क्योंकि ये उनके ही आन्दोलनों को दबाने का यत्न हो रहे हैं। बम्बई की मज़दूर-किसान पार्टी ने घोषित किया है कि इस बिल के विरुद्ध मज़दूरों को हड़तालें करनी चाहिए, बात भी ठीक है। असेम्बली के पूँजीपति सदस्य तुरन्त ही यह क़ानून स्वीकृत कर देंगे। उन्हीं के लिए तो सरकार ने यह क़ानून बनाया है। पहले ही प्रेमचन्द कीका भाई जैसे पूँजीपति सरकार से गुहार करते थे कि मज़दूर-आन्दोलनों को दबाने की कोशिश की जानी चाहिए। सो सरकार ने इसका हल बनाकर पेश कर दिया है। दोनों क़ानून स्वीकृत हो जायेंगे। लेकिन मज़दूरों को सँभल जाना चाहिए, क्योंकि यदि अभी कोई ध्यान न दिया गया तो बाद में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यह स्मरण रखना चाहिए कि इंग्लैण्ड में भी ऐसा क़ानून स्वीकृत कराने की अंग्रेज़ी सरकार को हिम्मत नहीं हो सकती। मज़दूरों के साथ रत्तीभर भी सहानुभूति रखने वाले सज्जनों को इस अवैध तथा दमनकारी क़ानून के विरोध में आवाज़ उठानी चाहिए।
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्पर्क करें।
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