Statement against Mass Layoffs in the IT/ITes Sector

Statement against Mass Layoffs in the IT/ITes Sector   On the 7th of February, 700 trainees were laid off by Infosys at its Mysore campus. These trainees, who had to wait for 2.5 years after their graduation to finally start their careers at Infosys in September 2024, are now jobless just six months later. They were asked to come in batches of 50 to submit their laptops and were escorted into a room with security personnel and bouncers stationed outside. Several trainees were abruptly asked to vacate the Mysuru campus…

Step forward in support of the struggling students of Jamia Millia Islamia and against the brutality perpetrated by the Jamia administration and the police!

Step forward in support of the struggling students of Jamia Millia Islamia and against the brutality perpetrated by the Jamia administration and the police! Attacks on democratic rights will not be tolerated!   Before dawn on 13th February 2025, Delhi Police entered the campus of Jamia Millia Islamia, beat up the protesting students, and detained them. The students were beaten up by the police in custody, and their whereabouts were not revealed for a long time. The recent series of protests started on 16 December 2024 when the university administration…

जामिया मिलिया इस्लामिया के संघर्षरत छात्रों के समर्थन में और जामिया प्रशासन व पुलिस द्वारा बरपायी गयी बर्बरता के ख़िलाफ़ आगे आओ!

जामिया मिलिया इस्लामिया के संघर्षरत छात्रों के समर्थन में और जामिया प्रशासन व पुलिस द्वारा बरपायी गयी बर्बरता के ख़िलाफ़ आगे आओ! जनवादी अधिकारों पर हमले नहीं सहेंगे!   13 फ़रवरी 2025 को भोर होने से पहले दिल्ली पुलिस जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में प्रवेश करती है और प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ मारपीट कर उन्हें हिरासत में लेती है। छात्रों के साथ हिरासत में पुलिस द्वारा मारपीट की जाती है एवं उनके ठिकाने भी काफ़ी समय तक उजागर नहीं किये जाते। हालिया प्रदर्शन का सिलसिला 16 दिसम्बर 2024 से…

देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ एकजुट हो !

देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ एकजुट हो ! साथियो, फ़ासीवादी भाजपा के सत्ता में बैठे एक दशक से ज़्यादा समय बीत चुका है। इस एक दशक में भाजपा और संघ परिवार ने बहुत व्यवस्थित ढंग से राज्य और समाज के ढाँचे का फ़ासीवादीकरण करने का हर सम्भव प्रयास किया है। योजनाबद्ध ढंग से नये-नये साम्प्रदायिक प्रोजेक्ट खड़े करके पूरे समाज में नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है। साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने वाली बयानबाज़ियों से लेकर गोदी मीडिया द्वारा नफ़रती उन्माद पैदा करने वाले कार्यक्रमों और ख़बरों का प्रसारण…

मोबाइल, टीवी के ज़हर से अपने बच्चों को बचाओ! कुसंस्कृति के कचरे को अपने और अपने बच्चों के दिमाग़ से बाहर निकालो!!

आज पूरे देश में मोबाइल, सोशल मीडिया और टेलीविजन आदि के माध्यम से जो अमानवीय कचरा हमारे बच्चों के दिमागों में भरा जा रहा है उसके बारे में क्या हमने कभी सोचा है? क्या हमने सोचा है कि यह कुसंस्कृति किस तरह हमारे बच्चों के अन्दर संवेदनशीलता, जिज्ञासा, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता, सामूहिकता, न्यायबोध और तर्कपरकता को विकसित होने से पहले ही उनके भीतर हिंसा, अकेलापन, स्वार्थपरता, अश्लीलता, अन्धविश्वास का ज़हर भर देता है। इसलिए अगर हम इस भयंकर स्थिति के बारे में गम्भीरता से नहीं सोचते और ज़रूरी क़दम नहीं उठाते तो यह कुसंस्कृति हमारी वर्तमान पीढ़ी को तो बर्बाद ही कर रही है लेकिन आने वाली पीढ़ियों की मानवीय संवेदना ख़त्म कर उन्हें अमानवीयता और बर्बरता के दलदल में धकेल देगी।

पूरे देश में बच्चियों की आर्तनाद नहीं, बल्कि धधकती हुई पुकार सुनो!

यदि हम सब चुप बैठ गए और इन घटनाओं के आदी बनते गए तो हम ज़िन्दा मुर्दों के अलावा कुछ भी नहीं! हमें संगठित होना होगा क्योंकि हमारे घरों में भी बच्चियाँ हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि हम इंसान हैं। हमें हर घटना के खिलाफ़ सड़कों पर उतरना होगा और साथ ही इस पूँजीवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था की कब्र खोदने के लिए एक लम्बे युद्ध का ऐलान करना होगा, जो इन सारे अपराधों की जड़ है। हमें इन बच्चियों की धधकती पुकार सुननी होगी और पूँजी-सत्ता-पितृसत्ता के गँठजोड़ को जनएकजुटता के दम पर ध्वस्त कर देना होगा। अगर आज हम उठ खड़े नहीं होते तो न जाने कितनी ही बच्चियों के साथ होने वाले इस अमानवीय अपराध के गुनाहगार हम भी होंगे! दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा और स्त्री मुक्ति लीग आपको इस संघर्ष में हमसफर बनने के आवाज़ दे रहा है।

गाजा में बेगुनाहों के कत्‍लेआम का विरोध करो

फिलिस्तीन के एक हिस्से गाज़ा पट्टी की सीमा पर कल इजरायली सैनिकों ने 60 से ज्‍यादा मासूम नागरिकों की गोली मारकर हत्‍या कर दी। सारी दुनिया के साम्राज्यवादी चुपचाप इस जनसंहार को देख रहे हैं। साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला फिलिस्‍तीनियों को सीमा में घुसने से रोकने के लिए किया है।

बलात्‍कारियों के समर्थन में प्रदर्शन, न्‍याय की नयी संघी, भाजपाई परिभाषा

भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मजदूरों के खून से सींचा जा रहा है। एक तरफ भयंकर बेरोजगारी और दूसरी तरफ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मंदिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है। भारत माता की रक्षा करने का दम्भ भरते हुए ये फ़ासीवादी उन्माद मचाते हुए देश की असली माताओं-बहनों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। उनके देश की परिभाषा बस कागज़ पर बना एक नक्शा है। बढ़ते निरंकुश स्त्री-विरोधी अपराधों से यह ज़ाहिर हो जाता है कि संघियों की देश की परिभाषा में महिलाओं के लिए स्थान सिर्फ और सिर्फ एक भोग्य वस्तु का है।

देश की जनता के नाम एक ज़रूरी अपील – दंगों की राजनीति और मजहबी जुनून का विरोध करो!

तमाम तरह की फ़िरकापरस्त और साम्प्रदायिक ताकतों को तभी हराया जा सकता है जब लोगों को उनके जीवन से जुड़े असली सवालों के आधार पर एकजुट किया जाये। शहीदे आज़म भगतसिंह के कहे अनुसार देश की युवा आबादी को न केवल स्वयं जागरूक और संगठित होना होगा बल्कि आम जनता को भी यह बताना होगा कि उनके असली दुश्मन कौन हैं। मौजूदा साम्प्रदायिक हमले के ख़िलाफ़ जनसाधारण को सचेत और लामबद्ध करना आज वक्त की ज़रूरत है।

आम मेहनतकश आबादी के स्‍वास्‍थ्‍य का पंचनामा और मोदी-योगी की जुमलेबाजी का नंगा सच

आज सारी स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली ही बीमार है। भारतीय संविधान का भाग 3, अनुच्‍छेद 21 ‘जीने का अधिकार’ तो देता है पर जीने की पूर्वशर्त यानि अन्‍न, वस्‍त्र, मकान, स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा की जवाबदेही से हाथ खीच लेता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के नाम पर अब स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है। नतीजतन स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं। एक तरफ 1 प्रतिशत अमीरों के पास भारत की 58 प्रतिशत संपत्ति इकट्ठी हो गयी है व अनाज के मामले में आत्‍मनिर्भर होने की बात की जा रही है वहीं दूसरी तरफ 5000 बच्‍चे हर दिन भूख व कुपोषण के कारण मर जाते हैं। मुनाफे की इस व्‍यवस्‍था यानि पूँजीवाद में हर चीज बाजार में बिकती है। इसके लिए मेहनतकश आम जनता की जान भी लेनी पड़े तो इस व्‍यवस्‍था को हर्ज नहीं है। गोरखपुर की घटना से ये एकदम स्‍पष्‍ट हो रहा है।