यदि हम सब चुप बैठ गए और इन घटनाओं के आदी बनते गए तो हम ज़िन्दा मुर्दों के अलावा कुछ भी नहीं! हमें संगठित होना होगा क्योंकि हमारे घरों में भी बच्चियाँ हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि हम इंसान हैं। हमें हर घटना के खिलाफ़ सड़कों पर उतरना होगा और साथ ही इस पूँजीवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था की कब्र खोदने के लिए एक लम्बे युद्ध का ऐलान करना होगा, जो इन सारे अपराधों की जड़ है। हमें इन बच्चियों की धधकती पुकार सुननी होगी और पूँजी-सत्ता-पितृसत्ता के गँठजोड़ को जनएकजुटता के दम पर ध्वस्त कर देना होगा। अगर आज हम उठ खड़े नहीं होते तो न जाने कितनी ही बच्चियों के साथ होने वाले इस अमानवीय अपराध के गुनाहगार हम भी होंगे! दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा और स्त्री मुक्ति लीग आपको इस संघर्ष में हमसफर बनने के आवाज़ दे रहा है।
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गाजा में बेगुनाहों के कत्लेआम का विरोध करो
फिलिस्तीन के एक हिस्से गाज़ा पट्टी की सीमा पर कल इजरायली सैनिकों ने 60 से ज्यादा मासूम नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी। सारी दुनिया के साम्राज्यवादी चुपचाप इस जनसंहार को देख रहे हैं। साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला फिलिस्तीनियों को सीमा में घुसने से रोकने के लिए किया है।
बलात्कारियों के समर्थन में प्रदर्शन, न्याय की नयी संघी, भाजपाई परिभाषा
भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मजदूरों के खून से सींचा जा रहा है। एक तरफ भयंकर बेरोजगारी और दूसरी तरफ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मंदिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है। भारत माता की रक्षा करने का दम्भ भरते हुए ये फ़ासीवादी उन्माद मचाते हुए देश की असली माताओं-बहनों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। उनके देश की परिभाषा बस कागज़ पर बना एक नक्शा है। बढ़ते निरंकुश स्त्री-विरोधी अपराधों से यह ज़ाहिर हो जाता है कि संघियों की देश की परिभाषा में महिलाओं के लिए स्थान सिर्फ और सिर्फ एक भोग्य वस्तु का है।
देश की जनता के नाम एक ज़रूरी अपील – दंगों की राजनीति और मजहबी जुनून का विरोध करो!
तमाम तरह की फ़िरकापरस्त और साम्प्रदायिक ताकतों को तभी हराया जा सकता है जब लोगों को उनके जीवन से जुड़े असली सवालों के आधार पर एकजुट किया जाये। शहीदे आज़म भगतसिंह के कहे अनुसार देश की युवा आबादी को न केवल स्वयं जागरूक और संगठित होना होगा बल्कि आम जनता को भी यह बताना होगा कि उनके असली दुश्मन कौन हैं। मौजूदा साम्प्रदायिक हमले के ख़िलाफ़ जनसाधारण को सचेत और लामबद्ध करना आज वक्त की ज़रूरत है।
आम मेहनतकश आबादी के स्वास्थ्य का पंचनामा और मोदी-योगी की जुमलेबाजी का नंगा सच
आज सारी स्वास्थ्य प्रणाली ही बीमार है। भारतीय संविधान का भाग 3, अनुच्छेद 21 ‘जीने का अधिकार’ तो देता है पर जीने की पूर्वशर्त यानि अन्न, वस्त्र, मकान, स्वास्थ्य व शिक्षा की जवाबदेही से हाथ खीच लेता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के नाम पर अब स्वास्थ्य सेवाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है। नतीजतन स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं। एक तरफ 1 प्रतिशत अमीरों के पास भारत की 58 प्रतिशत संपत्ति इकट्ठी हो गयी है व अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की बात की जा रही है वहीं दूसरी तरफ 5000 बच्चे हर दिन भूख व कुपोषण के कारण मर जाते हैं। मुनाफे की इस व्यवस्था यानि पूँजीवाद में हर चीज बाजार में बिकती है। इसके लिए मेहनतकश आम जनता की जान भी लेनी पड़े तो इस व्यवस्था को हर्ज नहीं है। गोरखपुर की घटना से ये एकदम स्पष्ट हो रहा है।
जातिअंत का रास्ता सुधारवाद, संविधानवाद नहीं बल्कि क्रांतिकारी वर्गीय एकजुटता है
सभी जातियों के गरीबों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है। निश्चित रूप से ये रास्ता आसान नहीं है। अगर आसान होता तो अब तक सभी जातियों के गरीब अपने आप ही एकजुट हो जाते और तब जाति व्यवस्था खत्म हो जाती। हजारों सालों से भारत में जाति व्यवस्था है और ऐसे में थोड़े से प्रचार से गरीब साथ नहीं आ जायेंगे पर ये भी सच है कि इसके अलावा ओर कोई रास्ता नहीं है।
अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस–चुप रहना छोड़ दो! गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ दो!!
आज के दौर में भी स्त्रियों के सामाजिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। स्त्री-विरोधी अपराधों का ग्राफ़ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। देश के किसी न किसी कोने से बलात्कार, एसिड हमले, दहेज के लिए हत्या और छेड़छाड़ के रूप में आये दिन भारतीय समाज की घृणित मर्दवादी मानसिकता की अभिव्यक्ति ख़बरों में आती रहती है। अभी हाल ही में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रावास में रहने वाली छात्राओं के माँसाहार पर रोक लगाना, रात 8 बजे तक हॉस्टल में वापस आना और रात नौ बजे के बाद मोबाइल फोन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होने जैसे ऊल-जलूल नियम बनाये गये है। जबकि ऐसी कोई भी रोक छात्रों के लिए नहीं है। जब इन छात्राओं ने इसका विरोध किया तो इन्हें डराया-धमकाया जा रहा है।
‘गौ-रक्षा दल’ द्वारा गुजरात में दलितों पर बर्बर अत्याचार के खिलाफ आव़ाज उठाओ!!
दलित युवाओं को पीटे जाने की इस घटना से यह साफ हो जाता है कि अगर आर.एस.एस. और भाजपा अपनी हिंदुत्ववादी फासीवादी एजेंंडे को लागू करने में पूरी तरह सफल हो गयी तो दलितों की जिन्दगी कैसी होगी। और यहाँ बात सिर्फ दलितों तक ही सीमित नहीं है। इसी तरह गोमांस की अफवाह फैलाकर अखलाक नाम के एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डालने वाले भी यही कट्टरपंथी ताकतें थी। ये फासीवाद हमेशा कमजोर तबकों के खिलाफ होता है, चाहे वे दलित हों, अल्पसंख्यक हों या महिलायें हों।
सावधान! सावधान! सावधान! ज़हरखुरानी गिरोह से सावधान!
पहले इस गिरोह को चड्ढी गेंग या कच्छा-बनियान गिरोह नाम से जाना जाता था लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि अब यह अपना चोला बदलने की फ़िराक में है। हर ख़ासो-आम को आगाह किया जाता है कि नई पैकिंग से धोखा न खायें क्योंकि अन्दर का माल वही है।
मानखुर्द, गोवण्डी से लगातार गायब हो रहे बच्चे
मानव अंगों के विश्वव्यापी व्यापार, चाइल्ड पोर्नोग्राफी और बाल वेश्यावृत्ती के फैलते धंधे और बच्चों को अगवा कर उनसे भीख मंगवाने, बंधुआ मजदुरी कराने या घरेलु नौकर के रूप में बेच देने वाले गिरोह आज पुरे देश स्तर पर सक्रिय हैं। अगर हम गरीब मेहनतकश लोग जिनके बच्चों को ये गिरोह निशाना बनाते हैं, खुद खड़े नहीं होंगे तो हमारी सहायता करने कोई नहीं आने वाला।