जालियावालां बाग़ हत्याकाण्ड की बरसी पर!

आज़ादी के बाद अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी राज्यसत्ता की पूरी मशीनरी और बहुत सारे कानूनों को न केवल ज्यों का त्यों अपना लिया गया, बल्कि पिछले सात दशकों में रोलेट एक्ट से कहीं ज्यादा बर्बर और काले क़ानून जनता पर थोपे जा चुके हैं। आज एक तरफ़ पूरा देश कोरोना महामारी के भयंकर संकट से जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ़ देश के तमाम हिस्सों में ऐसे ही काले क़ानूनों के तहत तमाम जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूँसा जा रहा है। जालियावालां बाग़ की विरासत को याद करने और जालियावालां बाग़ के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का सही मतलब यही है कि जनता पर थोपे जा रहे हर तरह के बर्बर दमनकारी कानून का विरोध किया जाये और अपने बुनियादी अधिकारों के लिए आवाज़ बुलन्द की जाये।