जालियावालां बाग़ हत्याकाण्ड की बरसी पर!
जालियावालां बाग़ हत्याकाण्ड के 101 साल पूरे हो चुके हैं। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जालियावालां बाग में अंग्रेजों द्वारा लाये गये कुख्यात काले क़ानून रोलेट एक्ट के विरोध में चल रही सभा में निहत्थी भीड़ पर जनरल डायर के आदेश पर गोलियां बरसाई गयीं। इस हत्याकाण्ड में हजारों स्त्री, पुरुष और बच्चे मारे गये और घायल हुए। रोलेट एक्ट नामक इस कुख्यात काले क़ानून के जरिये अंग्रेज सरकार किसी भी हिन्दुस्तानी को बिना अदालत में मुक़दमा चलाए जेल में डाल सकती थी। इतना ही नहीं, इस क़ानून के तहर गिरफ्तार व्यक्ति को उस पर मुक़दमा करने वाले का नाम तक जानने का अधिकार नहीं था। देश भर में इस काले कानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए।
आज़ादी के बाद अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी राज्यसत्ता की पूरी मशीनरी और बहुत सारे कानूनों को न केवल ज्यों का त्यों अपना लिया गया, बल्कि पिछले सात दशकों में रोलेट एक्ट से कहीं ज्यादा बर्बर और काले क़ानून जनता पर थोपे जा चुके हैं। आज एक तरफ़ पूरा देश कोरोना महामारी के भयंकर संकट से जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ़ देश के तमाम हिस्सों में ऐसे ही काले क़ानूनों के तहत तमाम जनपक्षधर बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूँसा जा रहा है। जालियावालां बाग़ की विरासत को याद करने और जालियावालां बाग़ के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का सही मतलब यही है कि जनता पर थोपे जा रहे हर तरह के बर्बर दमनकारी कानून का विरोध किया जाये और अपने बुनियादी अधिकारों के लिए आवाज़ बुलन्द की जाये।
इंक़लाब ज़िन्दाबाद!