बचपन के दोस्त जयदेव को भगतसिंह का पत्र

बचपन के दोस्त जयदेव को भगतसिंह का पत्र

सेण्ट्रल जेल, लाहौर

3 जून, 1930

मेरे प्रिय जयदेव,

‘विक्ट्री’ जूते और ‘क्विक’ दवात भेजने के लिए मेरी ओर से धन्यवाद स्वीकारो! आपके शब्दानुसार जैसाकि कुलबीर ने कहा है, मैं यह ख़त कुछ अन्य चीज़ें मँगवाने के लिए लिख रहा हूँ।

आपका बहुत धन्यवाद होगा अगर आप एक दूसरा जोड़ा कपड़े के जूते श्री दत्त के लिए भेज सको। लेकिन दुकानदार से उन्हें पूरा न आने की स्थिति में वापसी की शर्त से लें। मैं इस बारे में अपने पहले ख़त में ही लिख सकता था, लेकिन उस समय श्री दत्त अच्छे मूड में नहीं थे। मगर मेरे लिए यह बहुत कठिन बात है कि मैं अकेला ही इन जूतों को पहनूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि अगली मुलाक़ात के समय जूतों का एक और जोड़ा यहाँ पड़ा होगा।

कृपया 34 नम्बर छाती की सफ़ेद शेक्सपीयर कालर वाली आधी आस्तीन वाली खेल शर्ट भेजना। यह भी श्री दत्त के लिए चाहिए। यह न सोचना कि जेल में होते हुए भी हमने अपना रहन-सहन का ख़र्चीला ढंग नहीं त्यागा। क्योंकि यह फिर भी आवश्यक ज़रूरतें हैं, विलासिताएँ नहीं। किसी मुलायम कपड़े के बने हुए दो लँगोट नहाने और वर्जिश करने के लिए भेज दो। और कपड़े धोने के लिए साबुन की कुछ टिक्की भेज देना। साथ ही थोड़े बादाम और एक स्वान इंक की दवात भी भेज देना। सरदार जी का क्या हाल है? क्या वे लुधियाना से आ गये हैं? आजकल कचहरी बन्द रहेगी। मुक़दमा नहीं चल रहा होगा। यदि वे आज अभी तक वापस नहीं आये तो उनको लाने के लिए किसी को भेज देना। फिर उनके और मेरे मुक़दमों का फ़ैसला होने वाला है। कहा नहीं जा सकता कि हमें आपस में मुलाक़ात का भी मौक़ा मिलेगा अथवा नहीं, इसलिए आप उन्हें फ़ौरन बुला लें ताकि वे इस हफ्ते के भीतर मुझसे दो मुलाक़ातें कर सकें और अगर यदि वे जल्द नहीं आ पा रहे तो कृपया कुलबीर और बहन अमर कौर को मुझसे मुलाक़ात के लिए कल या फिर परसों भेज दें। मित्रों को मेरी ओर से याद कहें।

साथ ही, क्या आप उर्दू अनुवाद के साथ एक फारसी क़ायदा भेज सकते हो?

आपका,

भगतसिंह


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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