सुखदेव – आवाज़ दबाना दुखदायी है!

आवाज़ दबाना दुखदायी है!

सुखदेव के भाई मथुरादास की पुस्तक ‘अमर शहीद सुखदेव’ में प्रकाशित लेखकीय टिप्पणी के अनुसार सुखदेव ने यह पत्र सम्भवतः चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम लिखा था, जो उन तक पहुँच नहीं पाया। – स.

प्यारे साथी,

अभी-अभी पता चला है कि हमारा वह statement जो हमने 3 तारीख़ को दिया है अखबार वालों ने नहीं छापा। कारण यह कहा जाता है कि उसमें लीडरों को criticise किया गया है और उनके इस समझौते को बुरा कहा गया है। उफ़, कैसी शरम की बात है! भाई, सच पूछो तो हमें सरकार फाँसी नहीं लगा रही। हमारा गला तो हमारे So-called leaders ही दबा रहे हैं जो हमारी आवाज़ निकलने नहीं देते। सरकार द्वारा गला दबाना हमारे लिए बुरा सिद्ध नहीं हो सकता। उसको हम सहन कर सकते हैं लेकिन यह बात हमारे से बरदाश्त नहीं हो सकती कि हमारा गला हमारे ये स्वार्थी high class leaders दबायें। इसके विरुद्ध हमें लड़ना पड़ेगा। अपनी struggle को हमें उनसे अलग होकर स्वतन्त्र रूप से चलाना होगा और सरकार का विरोध करते-करते इन उच्च जाति-नेताओं की पोल भी खोलनी पड़ेगी।

परन्तु दोस्तो, यह कार्य ज़्यादा देरी तक neglect नहीं किया जा सकता। इस पर हमें विचार करना चाहिए और उसके लिए शीघ्र ही प्रबन्ध करना चाहिए। और कब तक ऐसा व्यवहार सहते रहोगे। हम क्रान्तिकारियों के प्रति उनके इस प्रकार neutral relation और हमारी गिरावट के दो मुख्य कारण हैं। पहला यह कि हमारी कोई स्थायी organisation नहीं है, जो उनके मुक़ाबले में और उनसे अलग अपनी lines पर काम कर रही हो। दूसरा यह कि जो भी थोड़ा-बहुत scattered element है उसके हाथ में Press नहीं है जिसके द्वारा वह अपनी आवाज़ जनता तक पहुँचा सके और जिसके बल पर वह बढ़े, डटकर सरकार तथा इन उच्च जाति-सन्तों का भलीभाँति विरोध कर सके।

अनेक कारणोंवश हम लोगों को आज तक केवल गुप्त समितियाँ बनाकर ही काम करते रहना पड़ा है। परन्तु यारो, अब समय आ गया है कि हम इस policy का त्याग करें। साधारण जनता हमें और हमारे आदर्शों को मानने लग गयी है। उसकी सहानुभूति हमारे साथ है। ठीक है, अपने कार्य को successfully चलाने और अपनी organisation को क़ायम रखने हेतु बहुत कुछ गुप्त रखना पड़ेगा। हमें अपने काम को गाँधी की lines पर नहीं चलाना है तो भी अब केवल इस जत्थेबन्दी और गोली-बारूद द्वारा ही काम करना उचित नहीं। अब हमें आगामी struggle के लिए एक force बनने की ज़रूरत है।

उसके लिए, जैसा मैंने पहले भी लिखा है, खुफ़िया सोसायटी के ढंग पर पंजाब में एक Central Red Revolutionary Party क़ायम करने की आवश्यकता है, जिसका मुख्य काम भिन्न-भिन्न local स्थानों पर Revolutinary work और tactics का प्रचार और अच्छे क्रान्तिवादी worker तथा व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ-साथ उस कांग्रेस की नकेल अपने हाथ में रखनी चाहिए। अपने ideas को legally or illegally दोनों प्रेसों द्वारा बराबर फैलाने की कोशिश करनी चाहिए।

ये सब शायद तुम्हें शेखचिल्ली की बातें जान पड़ती होंगी। लेकिन प्यारे, यह तो करना ही होगा और शीघ्र करना होगा। मैं नहीं कह सकता इस कांग्रेस में इसी वक़्त से कोई ऐसा wing तैयार हो जायेगा लेकिन इस कांग्रेस की तैयारी चाहे कितनी भी मामूली हो उसकी beginingकर देनी चाहिए।

(Important) हमें मरने का दुख नहीं है। अपनी आवाज़ का दबाया जाना हमारे लिए बहुत कष्टदायक है। मैं चाहता हूँ कि हमारी वह statement तुम सरदार जी या हमारे वकील से प्राप्त कर एक छोटे-से appealing note के साथ उर्दू, गुरमुखी और अंग्रेज़ी में लिखवाकर छपने का प्रबन्ध करो।

 – सुखदेव


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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