क्रान्तिकारी दोस्तों के नाम सुखदेव का पत्र

क्रान्तिकारी दोस्तों के नाम सुखदेव का पत्र

प्यारे साथियो!

दो साल का समय हो चुका है जबकि पहले-पहल Long Live Revolution का आरम्भ हुआ था। यह छोटी-सी आवाज़ आज एक भारी और भयानक रूप धारण कर चुकी है। हमारे देश का बच्चा-बच्चा इन्‍क़लाब-ज़िन्दाबाद चिल्ला रहा है।

किन्तु क्या यही काफ़ी है? क्या अब हमारे लिए कोई कार्य बाक़ी नहीं रहा? नहीं। कार्य का आरम्भ तो अभी होना चाहिए। नहीं तो यह इन्‍क़लाब-ज़िन्दाबाद भी गाँधी के ‘स्वराज्य’ की भाँति एक बेमानी चीज़ हो जायेगा, जिसे थोड़े समय बाद जनता घृणा और नफ़रत की दृष्टि से देखेगी। काफ़ी देर तक हमने पब्लिक के sentiments को उभारा है। अब समय आ गया है कि हम public को इसका अर्थ समझाएँ। हम उनके आगे रखें कि Revolutin क्या है। उसका masses के साथ क्या सम्बन्ध है। उसकी क्या आवश्यकता है। और वह क्योंकर Successful की जा सकती है।

याद रखो इन प्रश्नों को छुपाकर रखना हितकर नहीं होगा। मैं देख रहा हूँ – लोगों के दिलों में ये प्रश्न उठ रहे हैं। यदि इन प्रश्नों का उत्तर न दिया गया, यदि गाँधी की तरह इनको vague रखा गया तो सब गुड़गोबर हो जायेगा। आज तक की सब मेहनत व्यर्थ हो जायेगी। परन्तु इसके साथ ही एक introductory काम और भी है। यदि तुम्हारी यह धारणा है कि Long Live Revolution कह लेने से तुम Revolutionary हो गये हो तो यह तुम्हारी भूल है। तुम लोगों में कोई ही होगा जो वास्तव में Revolutionary कहलाने के योग्य होगा। लेकिन यह कोई शरम की बात नहीं। अपने इस अभाव को हमें मानना चाहिए और इसे मानकर इसकी पूर्ति करनी चाहिए। अपनी और सभी साथियों की revolutionary education के प्रबन्ध करने चाहिए। उसके लिए कार्य आरम्भ करने चाहिए।

याद रखो, अपनी सफलता इस बात पर निर्भर है कि हमारे workers अपने revolution ideals, tactics और struggles को ख़ूब समझते हैं। आज के arm chair politicians और sentimental lectures द्वारा क्रान्ति का कार्य नहीं चलाया जाना चाहिए। बल्कि ऐसे व्यक्तियों को अपनी Organisationमें ही नहीं लेना चाहिए। क्रान्ति करने के हेतु वे ही व्यक्ति लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं जो Self scrificing devotion के हों, जो revolutionary education प्राप्त किये हों और जीवन में क्रान्ति को profession समझे हों। जो व्यक्ति Revolutionary work को अपना profession नहीं बना सकता वह एक Sympathiser के सिवा कुछ नहीं है।

मैं आशा करता हूँ कि समय की आवश्यकता को अनुभव कर आप मेरी इन बातों पर ध्यान देंगे और जितनी जल्दी हो सके public demand को पूरा करने का यत्न करेंगे।

(मूल पत्र यहीं समाप्त होता है और अन्तिम अक्षर अस्पष्ट हैं – स.)


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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