शहीद महावीर सिंह का पिता के नाम पत्र

शहीद महावीर सिंह का पिता के नाम पत्र

शहीद महावीर सिंह को लाहौर षड्यन्त्र केस में उम्रक़ैद की सज़ा हुई थी। डॉ. गया प्रसाद, शिव वर्मा, पण्डित किशोरीलाल, जयदेव कपूर, विजय कपूर सिन्हा और कमलनाथ तिवारी को भी उम्रक़ैद हुई थी। इन सभी साथियों को सेल्युलर जेल, अण्डमान भेजा गया था। ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध जेलों के भीतर भी क्रान्तिकारियों का संघर्ष जारी रहा। महावीर सिंह ने 23 जनवरी, 1933 को अण्डमान से पिता को यह पत्र लिखा था। – स.

 

पोर्ट ब्लेयर, अण्डमान

परम पूज्य पिताजी,

आपको पढ़कर आश्चर्य होगा कि उपरोक्त स्थान पर मैं कब आ गया। यही पहेली हल करने मैं जा रहा हूँ। तारीख़ 19 जनवरी को प्रातःकाल लगभग 11 बजे जेलर साहब सेण्ट्रल जेल बिलारी आये ओर कोठरी का दरवाज़ा खोलकर सूचना दी कि तुम्हारा ट्रांसफ़र है, पर यह नहीं बताया कि कहाँ को है। पूछने पर केवल इतना कहा कि शायद पंजाब में नये लाहौर साज़िश केस में गवाही देने के लिए मद्रास भेजे जाओगे। अस्तु, 19 तारीख़ की शाम को जब मैंने सेण्ट्रल जेल मद्रास में पैर रखा तो मेरे जीवन-मरण के साथी श्रीयुत भाई कमलनाथ तिवारी के दर्शन – लगभग दो वर्ष बाद – हुए और रात को भाई बी.के. दत्त और भाई कुन्दनलाल जी की आवाज़ें सुनीं। आप स्वयं ही जान सकते हैं कि मुझे कितनी प्रसन्नता हुई। परन्तु अलस्सुबह फिर कुछ निराशा की झलक नज़र आयी जब देखा कि तिवारी और भाई दत्त और कुन्दनलाल हमसे पहले पृथक ले जाये गये हैं, परन्तु 15 मिनट बाद वह फिर हर्ष में बदल गयी और मोटर लॉरी में हम फिर मिल गये। बहुत दिनों का वियोग मिट गया। उस समय तक हम मन की खिचड़ी पका रहे थे और मिलने के आनन्द में विह्वल थे, परन्तु यह पता नहीं था कि कहाँ जा रहे हैं। सोचते थे शायद पंजाब जावें, बाद में यहाँ आवें। परन्तु हमारी लॉरी बन्दरगाह पर पहुँची और विख्यात महाराजा जहाज़ के दर्शन हुए। उस समय समझा कि हम लोग अण्डमान अर्थात ‘कालापानी’ जा रहे हैं। मातृभूमि से तथा बन्धु वर्ग से सदैव के लिए अथवा कम से कम 18 साल के लिए पृथक हो रहे हैं। जिस जननी की गोद में पले हैं और धूलि में लोटे हैं उसके दर्शन से भी वंचित हो रहे हैं। आप लोगों के पदारविन्द की रज से सदैव के लिए दूर हो रहे हैं। ऐसी दशा में प्यारे देश को छोड़ते हुए हृदय में कितना ही कष्ट हुआ परन्तु साथ ही प्रसन्नता भी हुई, जोकि इसके सम्मुख कुछ अधिक ही थी। वह थी एक साथ क्रान्तिकारी की दर्शनाभिलाषा – पुण्य पवित्र तीर्थ स्थान की, जिसको भाई रामरक्खा मल ने अपनी समाधि बनाकर पवित्र किया है और दूसरे बंगाली तथा सिक्ख वीरों की तपोभूमि रही है। और साथ ही आशा थी कि हमारे जीवन के बन्धुगण सर्वदा साथ रहेंगे, और भी अनेक अपने कन्धे से कन्धा सटाने वाले भाइयों के दर्शन होंगे। अस्तु, 23 जनवरी की सन्ध्या को विस्तृत नील गम्भीर जल-राशि की 850 मील से अधिक लम्बी यात्रा करके हम इस पोर्ट ब्लेयर की जेल में पहुँचे जहाँ पर अपने वर्तमान साथियों को मिलने के लिए अति उत्कण्ठित पाया। उनकी वैसी ही दशा हो रही थी जैसी हमारी थी। यहाँ सम्प्रति लगभग 40बी. क्लास के तथा 24सी. क्लास के राजनीतिक क़ैदी हैं और कुछ लोगों की निकट भविष्य में आशा भी करते हैं।

हमारी जेल तिमंज़िला है और पास ही कुछ गजों के फ़ासले पर नीलास्व (जल) राशि गम्भीर गर्जन के साथ किनारे से टक्करें मारती है, जो ऊपर से दीख पड़ती है। यह द्वीप समूह जंगलों से भरा सुना जाता है जिसमें केवल नंगे रहने वाले असभ्य लोग रहते हैं, परन्तु खुली हुई जगहों में कुछ भारतीय लोग भी बस गये हैं, जिनकी भाषा हिन्दुस्तानी है। इन लोगों में से बहुत-से क़ैदी हैं, कुछ सरकारी नौकर हैं और कुछ तिज़ारती लोग भी हैं। अभी हाल में तो जेल वालों का कुछ ठीक-ठीक हाल मालूम होता है, लेकिन आगे की कह नहीं सकते। हमारे पुराने साथियों में अभी हमारे साथ डॉ. गयाप्रसाद, मि. बी.के. दत्त, भाई कुन्दनलाल जी तथा कमलनाथ तिवारी हैं। बाक़ी तीन साथी मद्रास सूबे में होंगे जोकि शायद अभी भी हंगर स्ट्रायक पर होंगे। हमारे साथियों में 3/4 से अधिक संख्या बंगाल प्रदेश वालों की है।

पूज्यवर, शायद आप चिन्तित होंगे कि मैंने इतने दिनों से पत्र क्यों नहीं लिखा। इसका कारण थी घनघोर घटाएँ जो चारों ओर मँडरा रही थीं। तनिक भी शान्ति का अवसर नहीं देती थीं। इसी कारण मैंने उनमें फँसकर पत्र लिखने का सुयोग न पाया। अब यह बहुत दिनों बाद पत्र लिख रहा हूँ, जिससे आप शान्ति-लाभ करेंगे। परन्तु पिताजी, आप शान्ति हर दशा में रखें क्योंकि आप जानते हैं कि हमें कष्टों में आनन्द और सुख मालूम होता है। अब कुछ इस कारागार में वास करके तथा अपने ध्येय को सम्मुख रखते हुए कष्ट भी सुख ही प्रतीत होता है और यही है हमारा जीवन और जहाँ ये बातें इसमें नहीं रहीं तो समझिए कि हम मर गये। इसलिए आप या हमारी पूज्य बुआ जी तथा माता जी इस बात का ध्यान रखते हुए कभी कोई चिन्ता न करें और सर्वदा शान्तिपूर्वक आनन्दित रहें।

प्यारे भाई का क्या हाल है, इसकी सूचना मुझे शीघ्र दीजियेगा। उसे केवल वैद्य ही बनने का उपदेश न देना, बल्कि साथ ही साथ मनुष्य बनना भी बतलाना। आजकल मनुष्य वही हो सकता है जिसे वर्तमान वातावरण का ज्ञान हो, जो मनुष्य के कर्त्तव्य को जानता ही न हो परन्तु उसका पालन भी करता हो। इसलिए समाज की धरोहर को आलस्य तथा आरामतलबी तथा स्वार्थपरता में डालकर समाज के सामने कृतघ्न न साबित हो। इससे शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार की उन्नति करता रहे, क्योंकि दोनों आवश्यक हैं। शारीरिक पुष्टि अन्न तथा व्यायाम से तथा मानसिक अध्ययन से। उसे आजकल के वातावरण का ज्ञान करने के लिए समाचारपत्र तथा ऐतिहासिक, साम्पत्तिक तथा राजनीतिक, सामाजिक पुस्तकों का अवलोकन (अध्ययन) को कहिये। समाज से मेरा मतलब आर्य समाज अथवा अन्य संकीर्णताव्यंजक समाज नहीं है, परन्तु जन.साधारण का है। क्योंकि ये धार्मिक समाज मेरे सामने संकीर्ण होने के कारण कोई भी मूल्य नहीं रखते हैं और साथ ही इस संकीर्णता तथा स्वार्थपरता तथा अन्यायपूर्ण होने के कारण सब धर्मों से दूर रहना चाहता हूँ और दूसरों को भी ऐसा ही उपदेश देता हूँ। केवल एक बात मानता हूँ (और) उसको सबसे बढ़कर तथा मनुष्य तथा समाज का (के लिए) कल्याणकारी समझता हूँ। वह है, “मनुष्य का मनुष्य तथा प्राणी-मात्र के साथ कर्त्तव्य – बिना किसी जाति-भेद, रंग-भेद, धर्म तथा धन-भेद के।” यही मेरा उपदेश बेटी सरोजिनी को है और दूसरे हमारे भाइयों को भी है।

पूज्यवर, आज जब मैं देखता हूँ कि सबकी बहनें समाज की सेवा के लिए अपने को तन, मन, धन से लगाये हुए हैं, अभागा मैं ही ऐसा हूँ जिसकी ऐसी कोई बहन नहीं। यद्यपि यह मेरी संकीर्णता है क्योंकि अपने मन के अनुसार दूसरी बहनें भी अपनी ही हैं और वैसी ही समझता भी हूँ, परन्तु मैं उनकी संख्या में बढ़ती चाहता हूँ, जिसकी कुछ आशा में अपनी पूजनीय जिया महताब कुँवरि से करता था। उनका बहुत समय से कोई समाचार नहीं पाया है। यदि हो सके, मेरा चरण-स्पर्श कहियेगा। श्रीमान दादा जी सरदार सिंह जी को, जो मेरे पहले-पहल गुरु और आपके शिष्य हैं, सादर प्रणाम कहें। धनराज सिंह का हाल लिखना। चाचा वर्ग तथा सब माताओं को चरण-स्पर्श, भाइयों को नमस्ते। पूज्य बुआ जी तथा माता जी को प्रणाम, लली दोनों बहनों को, मुंशी सिंह जी को नमस्कार, भानजे तथा भतीजों को प्यार। इति शुभम। पत्र शीघ्र भेजियेगा।

पता: महावीर सिंह पी.आई. 68                                                    आपका आज्ञाकारी पुत्र,

सेल्युलर जेल, पोर्टब्लेयर (अण्डमान)                                                       महावीर


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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