भगतसिंह – आयरिश स्वतन्त्रता युद्ध

आयरिश स्वतन्त्रता युद्ध

इस पुस्तक का अनुवाद भगतसिंह ने किया था। यह अनुवाद इसी संकलन के तीसरे खण्ड में प्रकाशित है। – स.

आयरिश स्वतन्त्रता युद्ध’: हिन्दी में। प्रताप कार्यालय, कानपुर से प्रकाशित। 100 पृष्ठ 100, मूल्य ।।=

यह किताब आयरलैण्ड के बहादुर युगान्तकारी श्री डॉन बीन की अंग्रेज़ी पुस्तक ‘माई फ़ाइट फ़ार आयरिश फ्रीडम’ का हिन्दी अनुवाद है। पाठक जानते होंगे कि सौ बरसों से आयरलैण्ड अंग्रेज़ों के पंजे से रिहा होने की कोशिश करता रहा था। पिछली सदी में 1848, ’68, ’98 की बग़ावतें प्रसिद्ध हैं। पिछले संघर्ष के दिनों में 1916 में ईस्टर के दिनों में उन्होंने फिर विद्रोह कर दिया था। उसमें भी उनकी हार ही हुई थी। अब तक वह ईस्टर विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध है।

बाद में लड़ाई समाप्त हो जाने पर पार्लियामेण्ट के लिए सदस्यों का चुनाव हुआ और आयरलैण्ड के ‘सिनफिनरा’ के सदस्य ही ज़्यादा चुने गये। उन्होंने अलग ही आयरिश पार्लियामेण्ट स्थापित कर ली और दूसरी तरह युगान्तकारी गुरिल्ला युद्ध, अर्थात लुकाछिपी वाली लड़ाई आरम्भ कर दी। सबसे पहले लड़ाई छेड़कर देश, देशवासियों और सरकार की नींद भंग करने वाले लोगों में से डेनब्रिल थे। पहले ही दिन सिपाहियों से लड़कर उनसे उनका बारूद छीनकर वे भाग गये थे। बाद में उनके वारण्ट निकाले गये और पकड़वाने के लिए ईनाम की भी घोषणाएँ हुईं। रात-दिन अपना सिर हथेली पर रखे वे जनता के बीच बब्बर अकालियों की तरह दौड़ते-फिरते रहे।

उनसे कहा गया कि तुम अमेरिका चले जाओ, लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया और कहा कि हमें तो आयरलैण्ड में ही लड़ते हुए मरना है। किस प्रकार लोग उन्हें गालियाँ बकते और पास न फटकने देते और किस प्रकार वे बार-बार पुलिस के पंजे में फँसते-फँसते बचते, ये सब बातें पढ़ने योग्य हैं। श्री डेनब्रिल का लिखने का ढंग बहुत अद्भुत है और व्यंगात्मक भी है। इसलिए उन्होंने सारा क़िस्सा ऐसी तरतीब से लिखा है कि पढ़ने में बहुत ही आनन्द आता है।

उन्होंने पहली लड़ाई में अपने घबराने की तथा बाद की लड़ाइयों में अपने धैर्य की स्पष्ट और सच्ची कथा लिखी, जोकि बिल्कुल ही स्वाभाविक नज़र आती है। साथियों के गिरफ्तार किये जाने पर वह किस तरह तड़प उठे और उन्हें छुड़ाने के लिए कोशिशें करने लगे, यह सब पढ़ने वाली कहानी है।

एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात है श्री डेनब्रिल की। हमारे देश के नौजवान विवाह कराने के लिए दौड़ते फिरते हैं। बाप ने कभी सवारी नहीं की होती लेकिन वर बना बेटा तलवार बाँधकर मरियल घोड़ी पर चढ़कर निकल पड़ता है। उसकी उस चाल को भी क़ाबू में रखने के लिए दो व्यक्ति आगे से उसे पकड़े रहते हैं। और फिर जाकर कपड़ों की गाँठ की तरह बँधी लड़की के साथ (वर महोदय का) गठबन्धन हो जाता है। सर्वत्र ख़ुशियाँ मनायी जाती हैं। लड़का ब्याहा गया! लानत है ऐसे विवाह पर और ऐसे वर पर।

डेनब्रिल के वारण्ट निकले हुए हैं। आदेश हुआ कि देखते ही गोली मारकर ख़त्म कर दिया जाये। लड़ाई में वे ज़ख़्मी हो जाते हैं। तब एक युवती उनकी सेवा करती है और अपनी जान हथेली पर रखकर उनकी हर प्रकार से मदद करती है। आख़िरकार दोनों में प्रेम हो जाता है और बिल्कुल घमासान युद्ध के दिनों में एक जगह फ़ौजें इकट्ठी करके यह शादी की जाती है। हर पल ख़तरा है कि दुश्मनों ने हमला कर दिया तो ख़ैर नहीं। नौजवानो, यह असल विवाह है या मुरदों वाला (वह) विवाह? नौजवान इस किताब को ज़रूर पढ़ें और ध्यान से पढ़ें।

अंग्रेज़ों के बेइन्तहा ज़ुल्मों की भी यह दर्दनाक कहानी है। साथ ही यह भी रोचक ढंग से बताया गया है कि ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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