ट्रेड यूनियन बिल

ट्रेड यूनियन बिल

1927 में पूँजीवादी विश्व आर्थिक मन्दी की चपेट में आ रहा था, और मज़दूर वर्ग के जनवादी अधिकारों पर हमले शुरू हो गये थे। इंग्लैण्ड में जब ट्रेड यूनियन बिल पास हो रहा था तो ‘किरती’ ने (मई, 1927 में) एक लेख इस सम्बन्ध में प्रकाशित किया। लेख के लेखक के सम्बन्ध में जानकारी हासिल नहीं है, लेकिन यह उस समय क्रान्तिकारियों की सोच के बारे में बताता है। 1929 में जब ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल भारत में लागू करने की कोशिश की गयी थी तो भगतसिंह और बी.के. दत्त ने असेम्बली हॉल, दिल्ली में बम फेंका था। – स.

इंग्लिस्तान के एक जगह टिके (Conservation) गुट के लोग कब से इस बात की ताक में थे कि कैसे मज़दूरों में बढ़ती हुई ताक़त को रोका जाये। उनको यह बात स्पष्ट नज़र आती थी कि यदि मज़दूरों की बढ़त को अभी न रोका गया तो मज़दूर देखते ही देखते राज के मालिक बन जायेंगे और इस तरह उन्हें राज की बागडोर छोड़नी पड़ेगी। उन्हें यह स्पष्ट पता था कि नाम मात्र स्वतन्त्र (Liberal) गुट तो किसी काम का नहीं है और न ही अभी जल्दी उनके ताक़त में आने की उम्मीद है। इसलिए यदि उन्हें ख़तरा था तो मज़दूरों से ही था और मज़दूरों की मुश्कें बाँधना ही उन्होंने सबसे पहले ठीक समझा।

इस काम के लिए उन्होंने ट्रेड यूनियन बिल का आविष्कार किया, जिसके सम्बन्ध में पिछले अंक में बताया गया था। वे मज़दूरों के सब करे-धरे को यह बिल पास कर कुएँ में डालना चाहते हैं।

मज़दूरों ने इस बिल के ख़िलाफ़ बड़ी ज़ोरदार आवाज़ बुलन्द की है। उन्होंने कहा है कि यह बिल एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग को मटियामेट करने के लिए लाया गया वर्ग-बिल है। मि. रामजे मैकडानल्ड जैसे मज़दूर भी इस बिल को वर्ग-युद्ध की घोषणा समझते हैं और श्रमिक-संसार में सब जगह इस बिल से तूफ़ान मच गया है। मज़दूर फिर एक दिन के लिए बड़ी आम हड़ताल करने की सोच रहे हैं। वे विरोध में मीटिग कर रहे हैं। ख़याल किया जाता है कि संसद में इस बिल पर घमासान बहस होगी, और मज़दूर-नेता यदि ख़रीद न लिये गये तो जी-तोड़कर लड़ेंगे।

आजकल जो लोग अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ते हैं उन्हें पता है कि इस बिल का किस तरह अंग्रेज़ी श्रमिक प्रेस में विरोध हो रहा है। इस बिल को वर्ग-क़ानून कहा जाता है। मज़दूर समझते हैं कि बाल्डविन की सरकार ने उनके बुनियादी अधिकारों पर धावा बोल दिया है। इस बिल से उनके संगठन के बिखर जाने का भारी ख़तरा है। मज़दूरों का अपना दैनिक अख़बार ‘डेली हेराल्ड’ (Daily Heral) लिखता है कि यह बिल मज़दूरों को मानसिक रोगी समझता है और सख़्त अपराधियों के लिए इसने सज़ा भी नियत कर दी है। एक और मज़दूर नेता ने इसे मुसोलिनी जैसा क़ानून कहा है।

बड़ी हड़ताल के समय से ही एक जगह खड़े (अनुदार) गुट के लोग यह माँग कर रहे थे कि सरकार कोई बिल संसद में पेश करे, जिससे कि सबके सब मज़दूर हड़ताल ही न कर सकें। और यदि एक यूनियन के मज़दूर किसी दूसरी यूनियन की हमदर्दी में हड़ताल कर दें तो वह हड़ताल ग़ैर-क़ानूनी मानी जाये। इस समय यदि कोई यूनियन हड़ताल करती है तो वे मज़दूर जो हड़ताल में शामिल नहीं होंगे, उन्हें यह समझाया नहीं जा सकेगा कि वे भी इसमें शामिल हों, क्योंकि यदि मज़दूर पिकेटिग आदि के जरिये ऐसा करेंगे तो उन्हें सज़ा दी जा सकेगी। इस बिल से सिविल सर्विस के कर्मचारियों के लिए किसी पार्टी में शामिल होना मना हो गया है और सबसे बड़ी चोट मज़दूरों की राजनीतिक पार्टी पर की गयी है। वह यह है कि कोई मज़दूर राजनीतिक कामों के लिए तब तक चन्दा नहीं दे सकता, जब तक कि वह लिखकर न दे कि वह राजनीतिक कामों के लिए चन्दा इकट्ठा कर सकते हैं, लेकिन जो लोग चन्दा नहीं देना चाहते, वे लिखकर दें कि वे चन्दा नहीं देना चाहते। अब स्थिति उलटी हो गयी है।

इस आख़िरी अंक से श्रमिकों के संगठन को बड़ी भारी चोट पड़ेगी और इस ज़माने में जबकि कोई पार्टी रुपयों के बग़ैर चल ही नहीं सकती तो यह स्पष्ट है कि श्रमिक पार्टी का रुपयों के बग़ैर गला दबाने के लिए यह चाल चली गयी है। अन्य पार्टियों की तरह लेबर पार्टी को भी संसद में अपने उम्मीदवार खड़े करने और उन्हें सफल बनाने के लिए रुपयों की ज़रूरत है। जब दूसरी पार्टियाँ जैसे चाहे रुपये इकट्ठा कर सकती हैं और उन्हें कभी पूछा तक नहीं गया है तो कोई वजह नहीं कि मज़दूरों की पार्टी के भीतर कामों में ख़ामख़ाह टाँग अड़ायी जाये।

इस समय तक मज़दूरों की राजनीतिक पार्टी अपने फ़ण्ड ट्रेड यूनियनों से इकट्ठा करती रही है। अनुदारवादी गुट का यह विचार है कि इस तरह यदि मज़दूर पार्टी के फ़ण्ड ही बन्द कर दिये गये तो मज़दूरों का संगठन स्वयं ही दोफाड़ हो जायेगा और इनके घरों में घी के दिये जल जायेंगे। इस तरह श्रमिक संगठन के टूट जाने से यह सदा ही इंग्लिस्तान के राज पर क़ब्ज़ा जमाये रखेंगे। पर कौन-सी पार्टी टूटेगी और कौन-सी सत्ता में आयेगी, इस बात का पता तो अनुभव और भविष्य ही बतायेगा।

यदि यह बिल पास हो गया तो मज़दूर फिर उन्हीं ज़ंजीरों में जकड़े जायेंगे जिनमें से कि यत्न से अभी वे निकले ही थे। फिर उन ज़ंजीरों को तोड़ना आसान नहीं होगा। इसलिए श्रमिकों को अब वक़्त सँभालना चाहिए और ऐसा ज़ोरदार आन्दोलन करना चाहिए कि इस पूँजीपति गुट को, जो अभी मज़दूरों को ग़ुलामी से छूटने नहीं देना चाहता, नानी याद आ जाये। पर यह नानी भी तभी याद आ सकती है, यदि आने वाली संसद में इनकी ऐसी हार हो कि याद कर-कर आँखें मला करें। इस समय संसद में इन पूँजीपतियों का बहुमत है। इस बहुमत के अभियान में ही ये लोग अकड़े फिर रहे हैं और मज़दूरों को नज़रों में भी नहीं लाते।

हम चाहते हैं कि मज़दूर नाम मात्र स्वतन्त्र (उदार) गुट में भी प्रचार करें और उनमें से बहुत-से सदस्यों को अपनी ओर कर लें, ताकि यह बिल पास ही न हो सके। और न सिर्फ़ यह बिल ही असफल करा दें वरन इस मौजूदा सरकार को भी उलट दें। इसने यह क़ानून पेश कर राज करने के सभी अधिकार गवाँ दिये हैं।

इस समय ज़रूरत है कि मज़दूरों के अपने घर में भी किसी तरह की फूट न हो और मज़दूरों के नरम और गरम गुटों के सब लोग एकजुट हो जायें ताकि साझे ज़ोर से इस मौजूदा सरकार का डटकर मुक़ाबला किया जा सके और इसे ऐसे चने चबाये जायें कि सारी उम्र ही इस वक़्त को याद कर-कर हाथ मला करें।


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

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