भगतसिंह – नेहरू समिति की रिपोर्ट

नेहरू समिति की रिपोर्ट

हिन्दुस्तान भी अजब देश है। यहाँ के नेता भी अजीबो-ग़रीब हैं। बैठे-ठाले विचार किया कि चलो एक संविधान ही तैयार कर लें कि हम हिन्दुस्तान में कैसा राज चाहते हैं। तुरन्त सर्वदलीय कॉन्‍फ्रेंस बुलायी गयी, जिसमें नेहरू समिति बनायी गयी कि वह एक रिपोर्ट तैयार करे। रिपोर्ट तैयार हो गयी और प्रकाशित भी की गयी। बड़ी प्रशंसा हो रही है, बड़ी श्लाघा हो रही है। तारीफ़ों के पुल बाँधे जा रहे हैं। रिपोर्ट का अर्थ क्या है? क्या हमें भी सरकार कनाडा, आस्ट्रेलिया और आयरलैण्ड जैसा राज दे दे? बहुत ख़ूब! वायसराय अंग्रेज़ होगा जो काफ़ी अधिकार सम्पन्न होगा। लेकिन चुनाव से ही कौंसिल और असेम्बली में सदस्य भेजे जायेंगे और चुनाव में मत देने का अधिकार बालिग व्यक्तियों को ही होगा। सदन में वे स्वयं कुछ नहीं कर सकेंगे। केवल वायसराय की उँगलियों पर नाचेंगे।

ऐसा लगता है कि वे कनाडा और आयरलैण्ड आदि के संविधान खोलकर और सामने रखकर बैठ गये और यह रिपोर्ट लिख दी। लेकिन समस्या यह है कि यह रिपोर्ट लिखी क्यों गयी? जब असहयोग आन्दोलन ज़ोरों पर था, उस समय बाबू भगवानदास आदि ज़ोर-शोर से अपनी बातें उठाते रहे, लेकिन किसी ने स्वराज्य की व्याख्या करने की आवश्यकता न समझी। पर आज जबकि कोई आन्दोलन भी नहीं है, संविधान तैयार करके रख दिया गया है। आख़िर इसका क्या कारण है? असल में बात यह है कि कुछ लोगों का विचार है कि साइमन कमीशन बना है तो यह ज़रूर कुछ न कुछ देने के लिए ही बना है। और अब सरकार आने वाली जंग और अन्य देशों की स्थितियों को सामने रखती हुई हिन्दुस्तान को कुछ न कुछ देने को तैयार है। कमीशन का बहिष्कार तो इसलिए किया जा रहा है कि मिशन में कोई हिन्दुस्तानी सदस्य नहीं है, और तो कोई बात नहीं। और अब सीधे नहीं बल्कि यों ही दूसरी तरह से कमीशन को बताना चाहते हैं कि हम यह कुछ लेना चाहते हैं। एक सज्जन ने अच्छा उदाहरण दिया कि एक फ़कीर ने अपनी लम्बी लाठी से एक लोटा बाँध लिया और कहने लगा – मुझे भीख नहीं चाहिए, मेरे लोटे को दे दो! हमारे उग्र नेताओं की यह स्थिति है। ये सभी समझे बैठे हैं कि अब कुछ न कुछ मिलकर ही रहेगा। इसलिए बता दें कि हम क्या लेना चाहते हैं। अक्ल के अन्धे नेता आयरलैण्ड के समान अधिकार तो ज़रूर माँगते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि आयरलैण्ड की जनता ने ये अधिकार किस तरह लिए हैं? 1916 से 1923 तक एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर वे अंग्रेज़ों से संघर्ष करते रहे और इन अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया। तंग आकर, मजबूर होकर जब वहाँ से जड़ें बिल्कुल ही उखड़ गयीं तब उन्होंने उनको थोड़े-बहुत अधिकार दिये। और हम चाहते हैं कि हमने बैठकर बतियाया है, इसलिए हमें भी उनके समान अधिकार मिल जाने चाहिए! कितनी बड़ी ग़लतफ़हमी है? अच्छा फिर यह तो है ही बड़ा भारी द्रोह। अभी पिछली कांग्रेस में ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पास हुआ था। और अब उन्होंने तुरन्त ही डोमेनियन स्टेट्स बनाया जाना मंज़ूर कर लिया है। इसका क्या अर्थ है? कहा जाता है कि यह कांग्रेस पार्टी थोड़े ही थी, जिसने कांग्रेस के साथ द्रोह किया हो, यह तो है सर्वदलीय कॉन्‍फ्रेंस। बहुत ख़ूब! तुम कांग्रेस वाले ही समझौते के ठेकेदार हो गये हो! उदारवादी नेताओं ने क्यों न समझौता करने के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता स्वीकार की? उन्हें तो हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता की कोई आवश्यकता नहीं? तब कांग्रेस के होने वाले अध्यक्ष पण्डित मोतीलाल नेहरू आदि कांग्रेस को पीछे खींचने का यत्न न करेंगे? समझ नहीं आता कि पण्डित जवाहरलाल आदि जोकि समाजवादी विचारों के समर्थक हैं, क्यों इस समिति में शामिल होकर अपना आदर्श बदल सके? क्या वह इन्‍क़लाब नहीं चाहते, वैसे ही इन्‍क़लाब-इन्‍क़लाब चिल्लाते रहते हैं? क्या उन्हें आशा है कि यह सरकार स्वयं ही, जो माँगें प्रस्तुत की गयी हैं उन्हें स्वीकार कर लेगी (ऐसा सोचना) जान.बूझकर आँखें मूँदना है। या नेहरू साहब केवल सरकार को भयभीत करने के लिए ही पूर्ण स्वतन्त्रता का शोर मचाते रहते हैं और चाहते अधीन राज ही हैं? असल में यह आशा कि अभी कुछ मिलेगा, अभी कुछ मिलेगा, बहुत बरबाद करती है। दास, बरकेन हैड की चापलूसी में कितना गिर गया था, यह उसके फरीदपुर के सम्बोधन से ही पता चल सकता है। आज सभी नेता उस राह पर चल पड़े हैं।

स्वतन्त्रता कभी दान में प्राप्त नहीं होगी। लेने से मिलेगी। शक्ति से हासिल की जाती है। जब ताक़त थी तब लॉर्ड रीडिग गोलमेज़ कॉन्‍फ्रेंस के लिए महात्मा गाँधी के पीछे-पीछे फिरता था और जब आन्दोलन दब गया, तो दास और नेहरू बार-बार ज़ोर लगा रहे हैं और किसी ने गोलमेज तो दूर, ‘स्टूल कॉन्‍फ्रेंस’ भी न मानी। इसलिए अपना और देश का समय बरबाद करने से अच्छा है कि मैदान में आकर देश को स्वतन्त्रता-संघर्ष के लिए तैयार करना चाहिए। नहीं तो मुँह धोकर सभी तैयार रहें कि आ रहा है – स्वराज्य का पार्सल!

नौजवानों को इन बहकावों से बचकर चुपचाप अपना काम करते रहना चाहिए।


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

जनचेतना से पुस्तकें मँगाने का तरीका:

  • जनचेतना पर उपलब्ध पुस्तकों को आप डाक के ज़रिये मँगा सकते हैं ।
  • पुस्तकें ऑर्डर करने के लिए ईमेल अथवा फोन से सम्पर्क करें।
    • ईमेल : info@janchetnabooks.org
    • फोन : 08853093555; 0522-2786782
    • पता: डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020
    • वेबसाइट: http://janchetnabooks.org/
  • जनचेतना का बैंक अकाउंट (ऑनलाइन या चेक/ड्राफ्ट से भुगतान के लिए):
    जनचेतना पुस्तक प्रतिष्ठान समिति
    अकाउंट नं: 0762002109003796
    पंजाब नेशनल बैंक
    निशातगंज
    लखनऊ
    IFSC Code: PUNB0076200

Related posts

Leave a Comment

15 + 13 =