भगतसिंह – इंस्पेक्टर जनरल के नाम पत्र

इंस्पेक्टर जनरल के नाम पत्र

12 जून, 1929 को असेम्बली बमकाण्ड के मुक़दमे का ड्रामा ख़त्म हुआ। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्रक़ैद की सज़ा दी गयी। भगतसिंह को दिल्ली से पंजाब ले जाकर मियाँवाली जेल में व दत्त को लाहौर केन्द्रीय जेल में रखा गया। उन्होंने जेल में राजनीतिक बन्दियों के साथ व्यवहार के लिए संघर्ष की योजना गाड़ी में ही बना डाली। उनके अनुसार, सज़ा पाने के बाद हमने देखा कि हमारे वर्ग के राजनीतिक क़ैदियों की स्थिति बहुत ख़राब थी।” 17 जून, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अलग-अलग नोटिसों में 15 जून से भूख हड़ताल शुरू करने की सूचना और अपनी माँगों की सूची सरकार को पेश की। बाद में, 14 सितम्बर, 1929 को ये दोनों नोटिस पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा लेजिस्लेटिव असेम्बली में पढ़े गये। एक दूसरे पत्र में भगतसिंह ने स्वयं को लाहौर जेल भेजने की बात उठायी ताकि साथियों के सम्पर्क में रह सकें।

मियाँवाली जेल

17 जून, 1929

सेवा में,

इंस्पेक्टर जनरल, जेल,

पंजाब (जेल्स) लाहौर।

प्रिय महोदय,

इस सचाई के बावजूद कि साण्डर्स शूटिग केस में गिरफ्तार दूसरे नौजवानों के साथ ही मुझ पर भी मुक़दमा चलेगा, मुझे दिल्ली से मियाँवाली जेल में बदल दिया गया है। उस केस की सुनवाई 26 जून, 1929 से शुरू होने वाली है। मैं यह समझने में सर्वथा असमर्थ रहा हूँ कि मुझे यहाँ तब्दील करने के पीछे क्या भावना काम कर रही है।

जो भी हो, न्याय की माँग है कि हरेक अभियुक्त (अण्डर ट्रायल) को वे सब सुविधाएँ मिलनी चाहिए, जिनसे वह अपने मुक़दमे की तैयारी कर सके और लड़ सके। मैं यहाँ रहते कैसे अपना वकील नियुक्त कर सकता हूँ? क्योंकि यहाँ रहते हुए मुझे अपने पिता या दूसरे रिश्तेदारों से सम्पर्क रखना कठिन है। यह स्थान काफ़ी अलग-थलग है, रास्ता कठिन है और लाहौर से काफ़ी दूर है।

मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे तुरन्त लाहौर सेण्ट्रल जेल में बदलने का आदेश दें, जिससे कि मुझे अपना केस लड़ने की तैयारी करने का उचित अवसर मिले। आशा है कि शीघ्र ध्यान दिया जायेगा।

आपका

भगतसिंह


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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