पंजाब जेल जाँच समिति के अध्यक्ष को पत्र

पंजाब जेल जाँच समिति के अध्यक्ष को पत्र

6 सितम्बर, 1929

अध्यक्ष, पंजाब जेल जाँच समिति,

और भूख हड़ताल उपसमिति के सदस्यगण, शिमला

(द्वारा, अधीक्षक, बोर्स्टल इंस्टीच्यूट, लाहौर)

प्रिय महोदयो,

निम्न बातें हम आपके विचारार्थ रखने की अनुमति चाहते हैं –

(1) कि हमने भूख हड़ताल छोड़ी नहीं थी बल्कि सिर्फ़ सरकार के निर्णय तक इसे स्थगित किया था। हमारा विचार है कि हमने यह बात आपसे स्पष्ट कह दी थी और बार-बार फिर आपसे यह आग्रह किया था कि इसे जनता और साथ ही सरकार के सामने स्पष्ट कर दिया जाये।

हमें बहुत हैरानी हुई कि 4 सितम्बर, 1929 के ‘सिविल एण्ड मिलिट्री गजट’ में भूख हड़ताल उपसमिति के सदस्यों की ओर से दिये प्रेस-वक्तव्य में इस बात का कोई ज़िक्र नहीं किया गया। फिर भी हमें उम्मीद है कि आप जल्द से जल्द यह कर देंगे।

(2) हमने सिर्फ़ आश्वासन पर भूख हड़ताल स्थगित नहीं की थी कि आप और जाँच समिति के बाक़ी सदस्य हमारे सन्तोष के अनुसार हमारी सारी माँगें मानते हुए इसकी सिफ़ारिश कर देंगे। हममें से एक ने तो आपसे कहा था कि सरकार ने विगत समय में बहुत सारे मामलों में जाँच समिति की ऐसी सिफ़ारिशें नहीं मानी थीं, क्योंकि इससे उनका लक्ष्य पूरा नहीं होता, उदाहरणस्वरूप सकीन समिति का हवाला दिया गया था।

उन्हें संशय था कि आपकी समिति की सिफ़ारिशों के साथ भी यही व्यवहार होगा।

जवाब में आपने कहा था कि हमारे पास आने से पहले आपने स्थानीय सरकार से बात कर ली थी, और आप हमें आश्वासन देने की स्थिति में थे कि सरकार इस मामले में ऐसा नहीं करेगी।

इस स्पष्ट और महत्त्वपूर्ण आश्वासन पर ही, पूरे नौ घण्टे की बहस के बाद, हमने भूख हड़ताल स्थगित करना स्वीकार किया था।

इसके अतिरिक्त, आपने हमें विश्वास दिलाया था कि हमारी दृढ़ इच्छा के अनुसार साथी यतीन्द्रनाथ दास को, उनके स्वास्थ्य की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए रिहा कर दिया जायेगा।

दूसरे यह कि विचाराधीन क़ैदियों के रूप में हमारी माँगें, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हम सभी को (समेत साथी भगतसिंह और साथी दत्त) एक साथ आम बैरक में रखने की माँग, सरकार एक या दो दिन में ही मान लेगी।

पर हमारी आशंकाएँ सही सिद्ध हुईं, जब उपसमिति की तगड़ी व एकमत सिफ़ारिशों के बावजूद सरकार ने न तो साथी दास को रिहा करना स्वीकार किया और न ही साथी भगतसिंह और साथी दत्त को हमारे साथ रखना।

अतः इस तथ्य के तत्काल प्रमाण मिल गये हैं कि सरकार को आपकी सिफ़ारिशों की कोई परवाह नहीं और हमें उम्मीद है, आप हमें यह कहने के लिए क्षमा करेंगे कि सरकार यही चाहती थी कि हमारी भूख हड़ताल तुड़वाने के लिए जन-नेता होने के आपके सम्माननीय पद का इस्तेमाल करे। हम और भी बता दें कि भूख हड़ताल स्थगित करने से पहले हमने बहुत ध्यान से इस बात पर विचार किया था कि जाँच समिति के वायदे पर कहाँ तक भरोसा किया जा सकता है? इस सम्बन्ध में साथी भगतसिंह और साथी दत्त की सलाह थी कि वर्तमान अवसर पर इसकी परीक्षा हो जायेगी। अब हम देख रहे हैं कि सरकार ने, जबकि आपकी दो बहुत साधारण सिफ़ारिशों की ओर भी ध्यान नहीं दिया, हमें तुरन्त भूख हड़ताल आरम्भ करने के लिए विवश किया है।

(3) साथी दास की अवस्था बेहद चिन्ताजनक है और यदि सरकार यह सोचती है कि उनके देहान्त के बाद हम अपने कर्त्तव्य से पीछे हट जायेंगे तो यह उसकी घातक ग़लती है। हम सभी यह बता रहे हैं कि हम सब उन्हीं के रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं। फिर भी निरन्तर संघर्ष को ध्यान में रखते हुए सुविधा के लिए हम स्वयं को दो गुटों में बाँट रहे हैं, जिनमें से पहला गुट फ़ौरन भूख हड़ताल शुरू कर रहा है।

यह निश्चय किया गया है कि जब पहले गुट के सदस्य का देहान्त हो जाये तो दूसरे गुट में से एक सदस्य आगे आयेगा।

हमने यह निर्णय इसकी पूरी गम्भीरता को देखते हुए लिया है। अपने साथी दास के पद-चिह्नों पर चलने के सिवाय हमारे समक्ष और कोई भी सम्मानजनक व सरल रास्ता नहीं बचा है।

हम अपने कॉज़ (Cause) को वाजिब व बाइज़्ज़त समझते हैं, जिन्हें ऐसे गम्भीर क़दम उठाने पर मजबूर करने की बजाय कोई भी सरकार मान लेती। हम फिर बता दें कि हम यह संघर्ष इस हद निश्चय के साथ कर रहे हैं कि वाजिब व पवित्र लक्ष्य के लिए मृत्युपर्यन्त संघर्ष करने के सिवाय और कोई भी चीज़ सम्माननीय व शानदार नहीं हो सकती।

अन्त में हम यह महसूस करते हैं कि हम अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं कर रहे होंगे, यदि सरकार के सामने हमारे लक्ष्य को दिये समर्थन के लिए आपकी सच्ची हार्दिक दिलचस्पी और भारी कष्ट के प्रति आपका हार्दिक आभार न मानें।

सच्चे दिल से, हम हैं आपके,

लाहौर षड्यन्त्र केस के भूख हड़ताली

शुक्रवार, 6 सितम्बर, 1929

प्रातः दस बजे


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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