भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त – विशेष ट्रिब्यूनल के पुनर्गठन पर

विशेष ट्रिब्यूनल के पुनर्गठन पर

1 मई, 1930 को अध्यादेश द्वारा स्थापित विशेष ट्रिब्यूनल के सदस्य थे – जस्टिस जे. कोल्डस्ट्रीम (अध्यक्ष), जस्टिस आग़ा हैदर व जस्टिस जी.सी. हिल्टन। 5 मई को कार्रवाई शुरू हुई। पुंज हाउस को अदालत बनाया गया। क्रान्तिकारी युवक अदालत में क्रान्तिकारी गीत गाते और क्रान्तिकारी नारे लगाते आते। भगतसिंह ने माँग की कि उन्हें 15 दिन का समय दिया जाये, ताकि वे ट्रिब्यूनल के ग़ैर-क़ानूनी होने सम्बन्धी तर्क पेश कर सकें। लेकिन यह माँग मानी नहीं गयी। 24 क्रान्तिकारियों के नाम मुक़दमे के लिए लिये गये, जिनमें से 16 पर मुक़दमा चलाया गया। बाद में बटुकेश्वर दत्त के ख़िलाफ़ केस वापिस ले लिया गया। जिन पर मुक़दमा शुरू किया गया वे थे – सुखदेव, भगतसिंह, किशोरी लाल, देसराज, प्रेमदत्त, जयदेव कपूर, शिव वर्मा, महावीर सिंह, यतीन्द्रनाथ दास, अजयकुमार घोष, यतीन्द्र सान्याल, विजयकुमार सिन्हा, शिवराम राजगुरु, कुन्दनलाल व कमलनाथ तिवारी। भगतसिंह और उनके साथियों ने वकील करने से इन्कार कर दिया। 12 मई, 1930 को भगतसिंह और उनके साथियों को हथकड़ियों में अदालत में लाया गया। हथकड़ियाँ न खोलने के विरोध में उन्होंने बस से उतरने से इन्कार कर दिया। ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष ने उन्हें ज़बरदस्ती उतारने का आदेश दिया। भगतसिंह और उनके साथियों ने अदालत का बायकाट कर दिया। यद्यपि उन लोगों की हथकड़ियाँ दोपहर के खाने के लिए खोली गयीं, लेकिन खाने के बाद फिर लगाने का आदेश दे दिया गया, जिसका भगतसिंह और उनके साथियों ने विरोध किया। अध्यक्ष ने भारतीयों को गाली देते हुए भगतसिंह को लाठियों से पीटने का आदेश दिया।

अदालत में क्रान्तिकारियों, ख़ासकर भगतसिंह को संवाददाताओं और जनता के सामने लाठियों और जूतों से मारा गया। भगतसिंह ने भारतीयों को गाली देने पर आपत्ति करते हुए जस्टिस आग़ा हैदर के भारतीय होने पर सवाल किया और पूछा कि ऐसी मानसिक स्थिति वाले जज न्याय कैसे करेंगे? जस्टिस आग़ा हैदर ने उस दिन की कार्रवाई पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। इस घटना की दुनियाभर में चर्चा हुई। सारे भारत में भगतसिंह-दिवस मनाया गया, जिसके फलस्वरूप जस्टिस कोल्डस्ट्रीम को लम्बी छुट्टी पर जाना पड़ा और 21 जून को ट्रिब्यूनल नये सिरे से गठित किया गया। अब जस्टिस जी.सी. हिल्टन को अध्यक्ष व जस्टिस जे.के. टैप और जस्टिस अब्दुल कादिर को सदस्य बनाया गया।

इस पर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने निम्नलिखित पत्र में अपने विचार प्रकट किये। – स.

कमिश्नर,

विशेष ट्रिब्यूनल

लाहौर षड्यन्त्र केस, लाहौर

श्रीमान जी,

जबकि ट्रिब्यूनल के दो न्यायाधीशों को हटा दिया गया है या वे हट गये हैं और दो नये न्यायाधीश उनके स्थान पर नियुक्त कर दिये गये हैं, इसलिए हम अपना स्पष्टीकरण दर्ज़ कराना आवश्यक समझते हैं, ताकि हम अपना पक्ष स्पष्ट कर सकें और किसी भी प्रकार की शंकाएँ पैदा होने से बचा जा सके।

12 मई, 1930 को न्यायाधीश कोल्डस्ट्रीम ने जोकि अध्यक्ष भी हैं, एक अदालती आदेश पास किया जिसके अन्तर्गत हमें अदालत में हथकड़ियाँ पहनाने का आदेश दिया गया। इस आदेश का पालन कराने के लिए पुलिस को बल-प्रयोग करने के लिए भी कहा गया।

इस अचानक और असाधारण आदेश का कारण जानने के लिए हमने इस अदालत से निवेदन किया था, जिसे सुनने की आवश्यकता महसूस नहीं की गयी। ऐसी स्थितियों में पुलिस हमें ज़बरन हथकड़ियाँ लगाकर वापिस जेल ले आयी। अगले दिन तीन में से एक न्यायाधीश आग़ा हैदर ने अध्यक्ष के इस आदेश से अपने को अलग कर लिया। उस दिन से हम न्यायालय में नहीं जा रहे।

जिन शर्तों पर हम न्यायालय में आने को तैयार हैं, वे अगले दिन न्यायालय के समक्ष रखी गयी थीं। शर्तें थीं कि या तो अध्यक्ष क्षमा माँगें या फिर उन्हें बदल दिया जाये। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं था कि उनकी जगह पर ऐसे एक न्यायाधीश को बैठा दिया जाये जो उस आदेश में भागीदार था।

पाँच हफ्ते तक तो अपराधियों की शिकायत को विचार-योग्य ही नहीं समझा गया।

वर्तमान ट्रिब्यूनल के निर्माण में दोनों अध्यक्ष और दूसरे न्यायाधीश – जो उनके साथ सहमत नहीं हुए थे – को बदलकर दो नये न्यायाधीश लगाये गये हैं। इस तरह एक न्यायाधीश को जो उस आदेश में भागीदार था, क्योंकि आदेश बहुमत के आधार पर दिया गया था, ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसी स्थिति में हम पुरज़ोर यह कहना चाहते हैं कि न्यायाधीश कोल्डस्ट्रीम से व्यक्तिगत स्तर पर हमारा कोई शिकवा नहीं था और न ही शिकायत थी। हमारे विरोध का कारण तो न्यायाधीश कोल्डस्ट्रीम की ओर से पास किया बहुमत का आदेश और उसके बाद हमारे साथ हुआ दुर्व्यवहार था। न्यायाधीश कोल्डस्ट्रीम और न्यायाधीश हैमिल्टन का हम सम्मान करते हैं, जैसाकि एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का किया जाना चाहिए। हमारा रोष एक विशेष आदेश के विरोध में था जिसके कारण ट्रिब्यूनल, जोकि उस आदेश के लिए ज़िम्मेदार है, के अध्यक्ष से क्षमा माँगने की माँग की गयी थी। अध्यक्ष को हटा देने से कोई अन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि अब जज हैमिल्टन, जो उस आदेश में शरीक थे, न्यायाधीश कोल्डस्ट्रीम के स्थान पर अध्यक्षता कर रहे हैं। हम तो केवल यह कह सकते हैं कि बदली हुई स्थितियों ने अब ज़ख़्म पर नमक छिड़कने का ही काम किया है।

आपके,

भगतसिंह, बी.के. दत्त

25 जून, 1930


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

जनचेतना से पुस्तकें मँगाने का तरीका:

  • जनचेतना पर उपलब्ध पुस्तकों को आप डाक के ज़रिये मँगा सकते हैं ।
  • पुस्तकें ऑर्डर करने के लिए ईमेल अथवा फोन से सम्पर्क करें।
    • ईमेल : info@janchetnabooks.org
    • फोन : 08853093555; 0522-2786782
    • पता: डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020
    • वेबसाइट: http://janchetnabooks.org/
  • जनचेतना का बैंक अकाउंट (ऑनलाइन या चेक/ड्राफ्ट से भुगतान के लिए):
    जनचेतना पुस्तक प्रतिष्ठान समिति
    अकाउंट नं: 0762002109003796
    पंजाब नेशनल बैंक
    निशातगंज
    लखनऊ
    IFSC Code: PUNB0076200

Related posts

Leave a Comment

12 − 7 =