जंतर मंतर पर भगाना में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना के विरोध में जनवादी संगठनो का प्रदर्शन

जंतर मंतर पर भगाना में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना के विरोध में जनवादी संगठनो का प्रदर्शन

27 अप्रैल, दिल्ली।  जंतर मंतर पर भगाना में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना का विरोध कर जनवादी संगठनो ने गृह मंत्री सुशील शिंदे को अपना ज्ञापन सौंपा। ग्राम भगाना के ग्रामीणो के साथ नौजवान भारत सभा, समता मूलक समाज समिति, पी.यू.डी.आर., स्त्री मज़दूर संगठन, दिशा छात्र संगठन, जे.एन.यु.एस.यु. आदि संगठन इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। भगाना की दलित बच्चियों के साथ बर्बर सामूहिक बलात्‍कार की घटना के बाद भी पुलिस का रूख किसी भी बेहद ढीला था।ज्ञात हो कि सामूहिक बलात्कार को अंजाम देने वाले जाट किसानों के पांच जवान लड़के हैं जिन्हें खुद पंचायत का समर्थन प्राप्त है। शिंदे को दिए ज्ञापन में इस घटनाकेजिम्मेदार मुजरिमों को फास्टट्रेक कोर्ट बनाकर सजा-ए-मौत की मांग की गयी है। यह वही भगाना गाँव है जहाँ जाटों के द्वारा ज़मीन छीने जाने व शोषण से तंग आकर मजबूरन 70 दलित परिवारों को अपना गाँव छोड़कर आंदोलन के रास्ते पर उतरना पड़ा परन्तु 2012 से उनके ऊपर हुए अन्याय की दास्ताँ को सुनने वाला कोई भी सरकारी कान नहीं है। जंतर मंतर पर भी पुलिस ने बैरिकेड लगाकर लोगो को यहीं रोकने के प्रयासकिए लेकिन प्रदर्शनकारी जंतर मंतर से पहले बैरिकेड को गिरा कर आगे बढे और थाना पार्लियामेंटरी रोड पर शांतिपूर्ण ढंग से अपनी सभा चलायी।
स्त्री मज़दूर संगठन की शिवानी ने मीडिया की आलोचना करते हुये कहा कि मीडिया को इस घटना का ब्लैक आउट बंद कर इस खबर को लोगो तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि इस संघर्ष को जातिवादी संगठनो के खेल से भी बचाना होगा क्योंकि तमाम चुनावबाज़ दलितवादी पार्टयों और संगठनों ने दलित मुक्ति के संघर्ष को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश की है। जो बुर्जुआ पार्टियों के दलित नेता और तथाकथित दलित बुर्जुआ पार्टियों के नेता हैं, उनकी भूमिका तो और अधिक घृणास्‍पद है। सुशील कुमार शिंदे, कुमारी शैलजा, मीरा कुमार, उदितराज, अठावले, मायावती, रामविलास पासवान, पी.एल. पुनिया- पूँजी के ये सभी टुकड़खोर सिर्फ दलित वोट बैंक का लाभ लेते हैं, पर बर्बर से बर्बर से दलित उत्‍पीड़न की घटनाओं पर न तो सड़क पर उतरते हैं और न ही कारगर कदम उठाने के लिए सरकार पर दबाव बनाते हैं। नौजवान भारत सभा के अरविन्द ने कहा की सबसे जरूरी यह है कि मेहनतकशों के विभिन्‍न संगठनों में दलित भागीदारी बढ़ाई जाये, गैर दलित मेहनतकशों की जातिवादी मिथ्‍याचेतना के विरुद्ध सतत् संघर्ष किया जाये और उनके बीच का पार्थक्‍य एवं विभेद तोड़ा जाये। वर्ग संगठनों के अतिरिक्‍त जनवादी संगठनों को “जाति-उन्‍मूलन मंच” जैसे संगठन अवश्‍य बनाने चाहिए। साथ ही, उन्‍हें जातिगत उत्‍पीड़न विरोधी मोर्चा भी गठित करना चाहिए। अंत में आयोजकों द्वारा तय किया गया की सभी संगठन मिलकर इस आंदोलन को व्यापक बनाये व उसके लिए एक कमिटी का गठन भी किया जाएगा।

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