भगतसिंह – युगान्तकारी माँ

युगान्तकारी माँ

सितम्बर, 1928 के ‘किरती’ में सुप्रसिद्ध देशभक्त शचीन्द्रनाथ सान्याल की माँ के बारे में प्रकाशित एक सम्पादकीय नोट। – स.

हमारे पाठक हिन्दुस्तान के प्रमुख युगान्तकारी श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल जी के नाम-काम से अच्छी तरह परिचित हैं। हम उनका चित्र भी ‘किरती’ में प्रकाशित कर चुके हैं। उनका सम्पूर्ण परिवार ही युगान्तकारी है। 1914-15 वाले ग़दर आन्दोलन में उनके दो भाई गिरफ्तार किये गये थे, जिनमें से एक नज़रबन्द है और दूसरे को दो साल की क़ैद हुई और स्वयं उन्हें आजीवन कारावास की सज़ाएँ हो गयी थीं। अब उन्हें काकोरी केस में फिर आजीवन क़ैद की सज़ा हो गयी है। साथ ही उनके सबसे छोटे भाई श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल जी को पाँच बरस की क़ैद हो गयी है। यह भी अपने बड़े भाइयों की तरह दिलेर हैं और ख़ुशदिल रहने वाले हैं।

ऐसे वीर पुत्रों की जननी माँ धन्य है। लेकिन हमें अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि 52 साल की उम्र में लगभग एक माह पूर्व उनका देहान्त हो गया था। वह कोई सामान्य स्त्री नहीं थी। वह स्वयं भी पढ़ी-लिखी और क्रान्तिकारी विचारों वाली थी।

इनका जन्म बंगाल के सबसे अधिक शिक्षित विद्वान और भक्ति के गढ़ शान्तिपुर के एक बड़े परिवार में हुआ। इनके एक बहन और एक भाई और थे। इनके बड़े भाई श्री योगेशचन्द्र राय अब तक जीवित हैं। वे 1907 के स्वदेशी आन्दोलन में काफ़ी सक्रिय रूप से काम करने वालों में हैं। बाद में राजपरिवर्तनकारी आन्दोलनों के सम्बन्ध में उनकी अनेकों बार तलाशियाँ हुईं और पुलिस उनके पीछे लगी रहती थी।

श्री शचीन्द्रनाथ की माता श्रीमती क्षीरोदवासिनी देवी काफ़ी शिक्षित थीं। आपको पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से वज़ीफ़ा मिलता रहा। आप हमेशा समाचारपत्र, पत्रिकाएँ और नयी-नयी पुस्तकें पढ़ती रहती थीं।

श्री शचीन्द्र के पिता श्री हरिनाथ सान्याल भी स्वदेशी आन्दोलन के सक्रिय समर्थक थे। 1907 के स्वदेशी आन्दोलन के बहुत पहले से ही वह स्वदेशी वस्तुओं का ही उपयोग करने लगे थे। श्री शचीन्द्र की माता उनके ऐसे विचारों और कार्यों में बहुत सहायता करती थीं और स्वदेशी आन्दोलन चलने पर दोनों इसी काम में लग गये। हालाँकि हरिनाथ सान्याल सरकारी नौकरी में थे और अच्छा-ख़ासा वेतन पाते थे।

श्रीमती क्षीरोदवासिनी देवी अपने बच्चों को घर में स्वयं पढ़ाती थीं। स्वदेशी आन्दोलन के बाद में उन्होंने स्वयं ही अपने पुत्रों को अनुशीलन समिति में भरती करवाया। अनुशीलन समिति बंगाल की एक पार्टी थी, जो उस समय तक ख़ुफ़िया राजपरिवर्तनकारी दल नहीं बनी थी, लेकिन बाद में वही सबसे बड़ी और शक्तिशाली राजपरिवर्तनकारी पार्टी बन गयी थी।

बाद में माँ को यह भी पता लग गया कि शचीन्द्र युगान्तकारी दल में शामिल हुआ है। लेकिन वह कभी घबरायी नहीं, बल्कि हमेशा उनसे सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करती थीं। वह प्रसन्न थीं कि उनका बेटा देश-सेवा में संलग्न है।

उनके सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार के कारण काफ़ी दूर-दूर से युगान्तकारी उनके दर्शनों के लिए आते थे। उनमें श्री रासबिहारी बोस, हिन्दुस्तान के राजपरिवर्तनकारी शहीदों के सिरमौर श्री जतीन्द्रनाथ मुकर्जी तथा श्री शशांक हाजरा आदि शामिल थे। वह बंगाल के युगान्तकारियों में ‘युगान्तकारी माँ’ के रूप में मशहूर थीं। दूर अण्डमान के बन्दियों के बीच भी उनकी ख्याति पहुँच चुकी थी।

1915 में जब ग़दर पार्टी ने चारों तरफ़ ज़बरदस्त बग़ावत करने की तैयारियाँ की थीं, उस समय श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके दोनों युवा भाई इस काम में जुटे हुए थे। स्मरण रहे कि इनके पिता का देहावसान हो चुका था। इस कारण परिवार का बोझ भी इनके सिर आ पड़ा। जब फ़रवरी में विद्रोह पैदा करने की तारीख़ भी तय हो चुकी थी, तब इन भाइयों में आपस में विवाद चल पड़ा कि कौन पीछे रहकर परिवार की देखभाल करे, क्योंकि कोई भी पीछे रहने के लिए सहमत नहीं होना चाहता था। दोनों की यह इच्छा थी कि देश के स्वतन्त्रता-संघर्ष में वे सक्रिय रूप से मैदान में कूद पड़ें। तब उनकी वीर माता ने आगे आकर कहा कि वह किसी की राह में नहीं आना चाहती, जिस किसी की भी इच्छा हो, वह उनकी चिन्ता छोड़कर देश-सेवा के कार्य में जुट जाये।

पर वह सारा काम तो बीच में ही रह गया। ग़दर की सारी योजना फेल हो गयी। मुक़दमा चला। श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल को आजीवन क़ैद हो गयी। जब वह बनारस जेल से अण्डमान (कालेपानी) भेजे गये, उस समय उनकी आयु 22 बरस की थी। माँ उनसे मिलने गयी और प्रसन्नतापूर्वक कहा – “मेरा पुत्र सचमुच संन्यासी हो गया है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि उसने अपना जीवन देश-सेवा के लिए अर्पित कर दिया है।” इसके पश्चात पुलिस उनका पीछा करने लगी और बहुत परेशान करती रही।

अब काकोरी केस चला और जब उनका छोटा पुत्र श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल भी गिरफ्तार कर लिया गया तो इनको बहुत घबराहट हुई, क्योंकि वह अभी बिल्कुल बच्चा था और पढ़ रहा था। ज़्यादा चिन्ता यह थी कि संकट में कहीं वह घबरा न जाये। लेकिन मालूम हुआ कि वह जेल में बिल्कुल निश्चिन्तता से रह रहा है। इस बात से इन्हें बहुत ख़ुशी हासिल हुई। कहने लगीं, “मुझे अपने भूपेन्द्र से यही आशाएँ थीं।”

लेकिन उनका सारा जीवन कठिनाइयों में ही गुज़र गया। उन्हें कभी चैन का समय ही नहीं मिला। देखते-देखते काकोरी का मुक़दमा समाप्त हो गया। और कोई ठोस सबूत न मिलने के बावजूद श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल को आजीवन क़ैद और भूपेन्द्रनाथ को पाँच साल की सज़ा हो गयी। यह झटका उनसे बरदाश्त न हो सका। यह चोट उनसे सही न गयी। वह फिर कभी न सँभल सकीं। लेकिन अपने पुत्रों पर उन्हें बहुत फ़ख्र रहा। उन्होंने शचीन्द्रनाथ सान्याल को अपने अन्तिम पत्र में लिखा था कि दुनियादारी के हिसाब से भले ही मैं बहुत ग़रीब हूँ, लेकिन मेरे जैसा अमीर कौन है जिसके पुत्र सत्यपथ पर चल रहे हैं और देश-सेवा में जिन्होंने अपनी ज़िन्दगियाँ अर्पण कर दी हैं, मुझे अपने पर बहुत नाज़ है।

आह! ऐसी और कितनी माताएँ आज हमारे देश में हैं? धन्य है यह माँ और धन्य-धन्य हैं इनके सुपुत्र!


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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