दि रिवोल्यूशनरी – हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र

दि रिवोल्यूशनरी

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का यह घोषणापत्र दिसम्बर 1924 के आसपास शचीन्द्रनाथ सान्याल द्वारा लिखा गया था। 31 दिसम्बर 1924 की रात और 1 जनवरी 1925 के बीच इसे उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में वितरित किया गया था। स.

हर इन्सान को निःशुल्क

न्याय चाहे वह

ऊँच हो या नीच

अमीर हो या ग़रीब

हरेक इन्सान को वास्तविक

समान अवसर, चाहे वह

ऊँच हो या नीच

अमीर हो ग़रीब

रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ़ इण्डिया का मुखपत्र

पहली जनवरी, 1925

भाग 1

(हर एक ईमानदार हिन्दुस्तानी को इसे पूरा पढ़ना चाहिए और अपने दोस्तों के बीच बाँटना चाहिए)

भारतीय क्रान्तिकारी पार्टी का घोषणापत्र

“नये तारे के जन्म के लिए उथल-पुथल ज़रूरी है।” और जीवन पीड़ा और व्यथा के साथ जन्म लेता है। हिन्दुस्तान का भी एक नया जन्म हो रहा है और यह उस उथल-पुथल और पीड़ा के दौर से गुज़र रहा है जिससे बचा नहीं जा सकता है। हिन्दुस्तानी जन अपनी नियत भूमिका अदा करेंगे और तब सारे अनुमान बेकार सिद्ध होंगे, सीधे-सादे और कमज़ोर लोगों से होशियारों और ताक़तवरों के हाथ-पैर फूल जायेंगे, विशाल साम्राज्य चकनाचूर हो जायेंगे और नये राष्ट्रों का उदय होगा जो अपनी शान और महिमा से मानवता को स्तब्ध कर देंगे।

यह नयी शक्ति, जो दुनिया की जड़ों तक को हिला रही है, यह नया जोश जो पर्दे के पीछे चमत्कार कर रहा है, हिन्दुस्तान के युवा रक्त में भी प्रकट हो रहा है और एक आन्दोलन को आकार दे रहा है। इस आन्दोलन से बुद्धिमान और विद्वान नफ़रत करते और इसकी उपेक्षा करते हैं और इसे चन्द सिरफिरे लोगों के पागलपन भरे सपने कहा जाता है। यह अनोखा आन्दोलन नौजवान हिन्दुस्तान का क्रान्तिकारी आन्दोलन है। इस क्रान्तिकारी आन्दोलन ने नाज़ुक लोगों के होश उड़ा दिए हैं और बलवान तथा स्वस्थ को प्रेरित किया है। इसने दुनियाभर और ज्ञानी लोगों को हैरान कर दिया है। जिस तरह आने वाले बसन्त को रोका नहीं जा सकता है उसी तरह से इस आन्दोलन को कभी कुचला नहीं जा सकता। जब तक यह उस मिशन को पूरा नहीं कर लेता जिसके लिए उसने जन्म लिया है, तब तक यह मर नहीं सकता। अत्याचारी इसे दबायेंगे। अविश्वासी इस पर ताने कसेंगे और सम्भ्रान्त इसकी निन्दा करेंगे, लेकिन विचारों और सपनों को कभी भी तलवार से हराया नहीं जा सकता और जो उदात्त संवेग इसके अस्तित्व की गहराई से पैदा हो गया है, उसको कभी न तो अनदेखा किया जा सकता है और न ही हँसी में उड़ाया जा सकता है।

क्रान्तिकारी आन्दोलन उस नए जीवन की अभिव्यक्ति है जो राष्ट्र में जन्म ले चुका है। इस जीवन की निन्दा अपनी ख़ुद की समझ की निन्दा करना है।

बीस साल का बेरहम दमन इसको कुचल नहीं पाया है। विख्यात जन-नेताओं द्वारा की गयी कठोर निन्दाएँ इसके बढ़ाव को रोक नहीं पायी हैं। क्रान्तिकारी पार्टी की सम्भावनाएँ जितनी उज्ज्वल आज हैं उतनी पहले कभी नहीं थीं। भविष्य सुनिश्चित है।

विदेशी शासकों के दमनकारी उपायों की निन्दा करने के लिए किसी भी भारतीय को इस क्रान्तिकारी पार्टी के अस्तित्व से इन्कार नहीं करना चाहिए। विदेशियों को भारत पर राज करने का कोई अधिकार नहीं है और इसलिए उनकी निन्दा करनी चाहिए और उनको निकाल बाहर करना चाहिए। बात यह नहीं कि उन्होंने हिंसा अथवा अपराध की कोई ख़ास कार्रवाई की है, विदेशी राज के कुछ स्वाभाविक परिणाम होते हैं। इस विदेशी राज को ख़त्म कर दिया जाना ज़रूरी है। भारत पर राज करने का उनका कोई औचित्य नहीं है सिवा तलवार के और इसलिए क्रान्तिकारी पार्टी ने तलवार उठा ली है। लेकिन क्रान्तिकारी पार्टी की तलवार पर विचारों की धार है।

राजनीति के क्षेत्र में क्रान्तिकारी पार्टी का फ़ौरी उद्देश्य संगठित एवं सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा भारत के मुक्त प्रान्तों के संघीय गणतन्त्र की स्थापना करना है। इस गणतन्त्र के संविधान को ऐसे समय अन्तिम रूप दिया और घोषित किया जायेगा जब भारत के प्रतिनिधियों के पास अपने फ़ैसले को अमल में लाने की शक्ति होगी। अलबत्ता, इस गणतन्त्र का मूलभूत सिद्धान्त सार्विक मताधिकार और ऐसी समस्त व्यवस्थाओं का उन्मूलन होगा जोकि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को सम्भव बनाती हैं। अर्थात रेलवे और परिवहन के दूसरे साधनों, खानों और इस्पात एवं जलयानों के विनिर्माण जैसे दूसरी तरह के बड़े-बड़े उद्योगों आदि का राष्ट्रीयकरण कर दिया जायेगा। इस गणतन्त्र में निर्वाचकों के पास अपने प्रतिनिधियों को ज़रूरत पड़ने पर वापस बुलाने का अधिकार होगा, ऐसा नहीं होने पर जनतन्त्र मख़ौल बनकर रह जायेगा। इस गणतन्त्र में विधायिका के पास कार्यपालिका को नियन्त्रित करने और आवश्यकता उत्पन्न होने पर उसे बदल देने का अधिकार होगा।

क्रान्तिकारी पार्टी राष्ट्रीय नहीं अपितु इन अर्थों में अन्तरराष्ट्रीय है कि उसका अन्तिम उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रों के भाँति-भाँति के हितों का सम्मान और उनकी गारण्टी के द्वारा दुनिया में मेल-मिलाप क़ायम करना है। इसका मक़सद विभिन्न राष्ट्रों और राज्यों के बीच प्रतियोगिता नहीं वरन सहयोग है और इस लिहाज़ से यह गौरवशाली अतीत के महान भारतीय ऋषियों और आधुनिक युग के बोल्शेविक रूस के पदचिह्नों का अनुसरण करती है। भारतीय क्रान्तिकारियों के लिए मानवता की भलाई बेकार के एवं खोखले शब्द नहीं हैं। लेकिन कमज़ोर कायर और शक्तिहीन अपनी या मानवता की कोई भलाई नहीं कर सकते।

साम्प्रदायिक प्रश्न के सम्बन्ध में क्रान्तिकारी पार्टी का विचार है कि विभिन्न समुदायों को उनकी माँग के अनुसार अधिकार प्रदान कर दिये जायें बशर्ते कि वे दूसरे समुदायों के हितों से न टकराते हों और निकट भविष्य में वे अन्ततोगत्वा विभिन्न समुदायों के बीच दिली और जैविक एकता की ओर ले जाते हों।

आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में पार्टी यथासम्भव बड़े से बड़े पैमाने पर सहयोग की भावना को बढ़ावा देगी। निजी एवं असंगठित कारोबारी उपक्रमों की बजाय पार्टी सहकारी यूनियन को तरजीह देती है।

आत्मिक क्षेत्र में पार्टी का उद्देश्य सत्य की स्थापना करना और इस बात का प्रचार-प्रसार करना है कि दुनिया माया-मोह नहीं है जिसे कि दरकिनार कर दिया जाये और जिससे नफ़रत की जाये, वरन यह एक ही आत्मा की अभिव्यक्ति है जोकि समस्त शक्ति, समस्त ज्ञान और समस्त सौन्दर्य का सर्वोपरि स्रोत है।

क्रान्तिकारी पार्टी के पास अपनी स्वयं की नीति और अपना स्वयं का कार्यक्रम है। सुस्पष्ट कारणों से यह अपनी समस्त गोपनीय बातों को प्रकट नहीं कर सकती। परन्तु जब यह बिल्कुल निश्चित हो जायेगा कि सरकार हमारे अपने लोगों से ज़्यादा जानती है तो जनसाधारण को भी बेहिचक उसकी योजना और तौर-तरीक़ों के बारे में जानकारी दे दी जायेगी।

यह क्रान्तिकारी पार्टी कांग्रेस और उसके विभिन्न दलों के साथ सम्भव होने पर सहयोग और आवश्यकता पड़ने पर विलगाव की नीति का अनुसरण करती है। अलबत्ता यह पार्टी इस देश में समस्त संवैधानिक आन्दोलन को नफ़रत और उपेक्षा की नज़र से देखती है। यह कहना हास्यास्पद है कि भारत की मुक्ति संवैधानिक उपायों के जरिये हासिल की जा सकती है जहाँ पर कि किसी संविधान का अस्तित्व ही नहीं है। यह कहना आत्मप्रवंचना है कि भारत की राजनीतिक स्वतन्त्रता को शान्तिपूर्ण एवं वैध तरीक़ों से हासिल किया जा सकता है। जब दुश्मन अपनी सुविधा के अनुसार शान्ति को भंग कर देने के लिए कटिबद्ध है तो “वैध” की सुन्दर उक्ति उस समय अपना समस्त आकर्षण और महत्त्व गँवा बैठती है जब हम अपने से हर क़ीमत पर शान्ति बनाये रखने की प्रतिज्ञा करते हैं।

हमारे जन-नेता दो-टूक शब्दों में यह कहने में हिचकिचाते हैं कि भारत विदेशी नियन्त्रण से मुक्त पूर्ण स्वायत्तता चाहता है। सम्भवतः वे इस तथ्य से अनजान हैं कि महान आदर्शों की प्रेरणा के जरिये राष्ट्र जन्म लेते हैं। यह आत्मिक आदर्श को, जोकि पूर्ण स्वायत्तता की भावना को स्वीकार करने से हिचकिचाता है, शायद ही आत्मिक कहा जा सकता हो; हालाँकि बहुत सम्भव है कि एक नज़र में वे बेहद उदात्त जान पड़े। अब समय आ गया है कि बेलाग-लपेट ढंग से सच कहा जाये और राष्ट्र के सम्मुख ऐसे आदर्श रखे जायें जिन्हें वास्तव में आदर्श कहा जा सकता है।

हमारा आदर्श संगठित तरीक़े से मानवता की सेवा करना है। भारत इस आदर्श को मूर्त रूप प्रदान नहीं कर सकता क्योंकि वह बन्धन या ग़ुलामी की अवस्था में बना हुआ है। भारत के ब्रिटिश भारत बने रहने तक इस आदर्श को कदापि प्राप्त नहीं किया जा सकता। भारत अपने आदर्श को मूर्त रूप दे सके इसके लिए उसका पृथक और स्वतन्त्र अस्तित्व बहुत ज़रूरी है। इस स्वतन्त्रता को कभी भी शान्तिपूर्ण एवं संवैधानिक तरीक़ों से हासिल नहीं किया जा सकता। कोई बच्चा भी इस बात को समझ सकता है कि ब्रिटिश भारत का शासन चलाने वाले क़ानून भारतीयों द्वारा नहीं बनाये जाते और न ही उनके ऊपर उनका कोई नियन्त्रण ही हो सकता है। ब्रिटिश भारत को कभी भी ब्रिटिश क़ानून और संविधान के जरिये कभी भी युक्त प्रान्तों के संघीय गणतन्त्र में रूपान्तरित नहीं किया जा सकता। भारत के युवाओं, अपने भ्रमों को दूर भगाओ और मज़बूत हृदय से वास्तविकता का सामना करो और संघर्ष कठिनाइयों एवं क़ुर्बानियों से बचो नहीं। जो होना है वह होकर रहेगा। अब और गुमराह नहीं होना है। आप शान्तिपूर्ण एवं वैध तरीक़े से शान्ति हासिल नहीं कर सकते। महान अंग्रेज़ लेखक श्री रॉबर्ट्सन ये स्मरणीय शब्द भारत के बुद्धिमान लोगों को और भी ज़्यादा समझदार बनाने का काम कर सकते हैं:

“सुधार का आन्दोलन और कार्यक्रम मुख्यतया आयरिश और प्रोटेस्टेण्ट नेताओं की उपलब्धि था; जिनके आगे ब्रिटिश वक्तव्य ने यह घातक रहस्य उजागर किया कि इंग्लैण्ड को धकियाया तो जा सकता है लेकिन उसे तर्क व विवेक से न्याय एवं उदारता के पक्ष में नहीं खड़ा किया जा सकता” इंग्लिश अण्डर हैनोवेरियंस, पृष्ठ 197)।

भारतीय जन-नेताओं को अभी भी इस घातक रहस्य की जानकारी नहीं या फिर वे जानबूझकर मूर्ख बने हुए हैं।

भारत के समझदार लोगों का कहना है कि इस बात की आशा पालना बेतुका है कि भारत को हथियारों की ताक़त से आज़ाद कराया जा सकता है, हालाँकि वे यह भूल जाते हैं कि यह मान लेना उतना ही या उससे भी ज़्यादा बेतुका है कि मुट्ठीभर अंग्रेज़ों ने हथियारों के दम पर समूची मानव जाति के पाँचवें हिस्से को अपने अधीन बनाकर रखा है। आगे आने वाली पीढ़ी बहुत सम्भव है कि इस तथ्य की प्रामाणिकता पर सन्देह करे कि मुट्ठीभर अंग्रेज़ों ने भारत के ऊपर एक शताब्दी तक शासन भी किया है; यह बात इतनी तो अकल्पनीय है।

आतंकवाद और अराजकतावाद के बारे में कुछ शब्द और। आज ये शब्द भारत में सर्वाधिक क्षतिकारक भूमिका अदा कर रहे हैं। इन शब्दों को निरपवाद रूप से क्रान्ति का सन्दर्भ आने पर ग़लत ढंग से प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि इन नामों की आड़ में क्रान्तिकारियों की भर्त्सना करना बहुत सुविधाजनक होता है। भारतीय क्रान्तिकारी न तो आतंकवादी हैं और न ही अराजकतावादी। इस देश में अराजकता फैलाना कभी भी उनका उद्देश्य नहीं रहा है और यही कारण है कि उन्हें कभी भी अराजकतावादी नहीं कहा जा सकता। आतंकवाद कभी भी उनका लक्ष्य नहीं रहा और उन्हें आतंकवादी नहीं कहा जा सकता। वे यह नहीं मानते कि अकेला आतंकवाद ही आज़ादी दिला सकता है और वे आतंकवाद के लिए आतंकवाद नहीं चाहते, हालाँकि यह सम्भव है कि वे समय-समय पर प्रतिकार के बहुत ही प्रभावी साधन के रूप में इस तरीक़े को काम में ले आयें। मौजूदा सरकार का अस्तित्व सिर्फ़ इसलिए क़ायम है कि विदेशी लोग भारतीय जनता को आतंकित करने में सफल रहे हैं। भारतीय जनता अपने अंग्रेज़ मालिकों से प्रेम नहीं करती, वह नहीं चाहती है कि वे यहाँ बने रहें, लेकिन वह अंग्रेज़ों के साथ सहयोग सिर्फ़ इसलिए करती है कि वह उनसे बुरी तरह से डरी हुई है और यही वह डर है जोकि भारतीयों को क्रान्तिकारियों के साथ सहयोग करने से रोकता है, ऐसा नहीं है कि वे उन्हें प्यार नहीं करते।

सरकारी आतंकवाद का जवाब प्रति आतंकवाद से दिया जाना तय है। हमारे समाज के प्रत्येक संस्तर में पूरी तरह से बेचारगी की भावना व्याप्त है और समाज में समुचित जज़्बे की बहाली के लिए आतंकवाद प्रभावी उपाय है, जिसके बग़ैर प्रगति मुश्किल होगी। इसके अलावा अंग्रेज़ मालिकों और उनके किराये के टट्टुओं को कभी भी निर्बाध ढंग से मनमानी करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। उनके रास्ते में हरसम्भव कठिनाई और प्रतिरोध खड़ा करना होगा। आतंकवाद का अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव भी होता है, क्योंकि इंग्लैण्ड के उत्कट शत्रु आतंकवाद और क्रान्तिकारी प्रदर्शनों के जरिये फ़ौरन भारत की ओर उन्मुख होते हैं, और क्रान्तिकारी पार्टी वर्तमान आन्दोलन में इस उग्र अभियान में शामिल होने से जानबूझकर ख़ुद को बचाये हुए है, इसका कारण बस यह है कि पार्टी निर्णायक प्रहार करने के लिए इन्तज़ार कर रही है।

यह स्थिति तो तब है जबकि विदेशी सरकार के एजेण्टों ने उसकी माताओं एवं बहिनों की मर्यादा भंग करके उकसावे की बड़ी-बड़ी कार्रवाइयाँ की हैं। अलबत्ता, समय आने पर पार्टी आतंकवाद के बेतहाशा अभियान में शामिल होने से हिचकिचायेगी नहीं, ऐसा होने पर ऐसे प्रत्येक अधिकारी और व्यक्ति का जीवन असहय बना दिया जायेगा, जोकि विदेशी शासकों की किसी भी रूप में मदद करेंगे फिर वे चाहे भारतीय हों या यूरोपीय, ऊपरी दर्जे के हों या निचले दर्जे के। लेकिन उस स्थिति में भी पार्टी कभी भी यह नहीं भूलेगी कि आतंकवाद लक्ष्य नहीं है और वे निरन्तर ऐसे निस्स्वार्थ एवं समर्पित कार्यकर्ताओं के दल संगठित करने की कोशिश करते रहेंगे जोकि अपने देश की राजनीतिक एवं सामाजिक मुक्ति के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक देंगे।

वे सदैव यह याद रखेंगे कि राष्ट्र-निर्माण के लिए हज़ारों ऐसे गुमनाम स्त्री-पुरुषों के आत्मबलिदान की आवश्यकता पड़ती है जोकि अपने ख़ुद के आराम या स्वार्थ अपने स्वयं के जीवन या अपने प्रियजनों के जीवन के मुक़ाबले अपने देश के विचार की अधिक परवाह करते हैं।

ह. वी.के.

अध्यक्ष, केन्द्रीय परिषद

भारत की क्रान्तिकारी पार्टी


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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