भगतसिंह को सज़ा-ए-मौत की तामीली का ट्रिब्यूनल द्वारा जारी वारण्ट
WARRANT OF EXECUTION ON SENTENCE OF DEATH
Section 381 of the Criminal Procedure Code. Sections 8 and II of Ordinance No. III of 1930.
In the Court. of the Lahore Conspiracy Tribunal, Lahore, constituted under Ordiance No. III of 1930.
TO THE SUPERINTENDENT OF THE CENTRAL JAIL AT LAHORE
WHEREAS Bhagat Singh, son of Kishen Singh, resident of Khawasrian, Lahore, one of the prisoners in the Lahore Conspiracy Case, having been found guilty by us of offence under section 121 and section 302 of te Indeian Penal Code and also under section 4(b) of the Explosive Substances Act read with section 5 of that Act and with section 12-F of the Indian Penal Code at a trial commencing from the 5th May, 1930 and ending with the 7 October, 1930, is hereby sentenced to death.
This is to authorise and requrire you, the said Superintendent, to carry the said sentence into execution by causing the said BHAGAT SINGH to be hanged by the neck until he to be dead at Lahore on the 17th day of October, 1930, and to return this warrant to the High Court with an endorsement certifying that the sentence hasbeen executed.
Given under our hands and the seal of the Court this day 7th day of October, 1930.
Seal of the tribunal,
Sd/- PRESIDENT OF THE TRIBUNAL
Sd/- Member of the Tribunal
Sd/- Member of the Tribunal
मृत्युदण्ड पर अमल का वारण्ट
अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 381, 1930 के अध्यादेश सं. III की धारा 8 एवं II.
1930 के अध्यादेश सं. III के तहत गठित लाहौर षड्यन्त्र केस ट्रिब्यूनल की अदालत में।
लाहौर सेण्ट्रल जेल के सुपरिण्टेण्डेण्ट के लिए
भगतसिंह, वल्द किशनसिंह, निवासी खवासरियाँ, लाहौर, जो लाहौर षड्यन्त्र केस के क़ैदियों में से एक है, को 5 मई, 1930 को शुरू होकर 7 अक्टूबर, 1930 को ख़त्म हुए मुक़दमे में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 121 और धारा 302 के तहत और विस्फोटक पदार्थ क़ानून की धारा 5 के साथ पठित उस क़ानून की धारा 4(बी) और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120-एफ़ के तहत अपराध का दोषी पाया गया है और एतद्द्वारा मृत्युदण्ड दिया जाता है।
इस आदेश द्वारा आपको, उपरोक्त सुपरिण्टेण्डेण्ट को, अधिकृत किया जाता है और अपेक्षा की जाती है कि इस आदेश पर अमल करते हुए 17 अक्टूबर के दिन लाहौर में उपरोक्त भगतसिंह को गरदन से तब तक लटकाया जाये जब तक उसकी मृत्यु न हो जाये, और आदेश पर अमल के प्रमाणपत्र के साथ इस वारण्ट को हाईकोर्ट को वापस भेज दें।
हमारे हाथों से तथा अदालत की मुहर के साथ आज 7 अक्टूबर 1930 को दिया गया।
ट्रिब्यूनल की मुहर
ह. ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष
ह. ट्रिब्यूनल के सदस्य
ह. ट्रिब्यूनल के सदस्य
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
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