जुझारू जन एकजुटता अभियान – गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के कारणों को पहचानो!

गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के कारणों को पहचानो!
साम्प्रदायिक फासीवादियों द्वारा जनता को बांटने की साजिश को नाकाम करो!!

साथियो,

भारत को आजाद हुए 71 साल से ज्यादा बीत चुुका है। इन 71 सालों में अब तक 16 लोकसभा चुनाव हुए है जिसमे से कांग्रेस ने 49 साल राज़ किया। जहाँ कांग्रेस की सरकार ने भ्रष्टाचार, कॉर्पोरेट लूट, देश के संसाधनों को निजी हाथों में देने की शुरुआत की वहीं साढ़े चार साल पहले आई मोदी सरकार ने भी इसे आगे बढ़ाने का ही काम किया है। मोदी सरकार और कांग्रेस की आर्थिक नीतियों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है। देश के खजाने का एक बड़ा हिस्सा अप्रत्यक्ष करों के रूप में आम जनता से ही जुटाया जाता है। न्‍याय तो यह है कि इसे आम जनता की बुनियादी जरूरतें पूरा करने के लिए खर्च किया जाए पर आम जनता के दम पर बने देश के खजाने को अम्बानी, अडानी, टाटा, बिरला, रामदेव जैसे पूंजीपतियों को टैक्स माफ़ी और अन्य सुविधा देने में खर्च कर दिया जाता है। आम जनता घटती आमदनी, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी से परेशान है। जनता के बढते असंतोष को मोदी सरकार द्वारा डंडे-बन्दूक के दम पर दबाने की कोशिश की जा रही है और साथ ही जनता की एकजुटता तोड़ने के लिए सांप्रदायिक रंग-रूप दिया जा रहा है। देशभर में धार्मिक कट्टरता व जातिवादी उन्माद पैदा किया जा रहा है जिसका मकसद एकदम साफ है – मेहनतकश जनता मोदी सरकार से हर साल दो करोड़ रोजगार का सवाल न पूछे; छात्र-नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में फण्‍ड कटौती पर सवाल न पूछें; ‘अच्छे दिन’ के वादे पर, काला धन, महँगाई पर रोक लगाने से लेकर बेहतर दवा-इलाज के मुद्दों पर बात न हो। बल्कि जनता हिन्दू – मुस्लिम, गौरक्षा, लव जिहाद, राम मन्दिर जैसे सवालों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहे।

पूंजीपतियों से यारी है, जनता से गद्दारी है!

अपने आप को ईमानदार दिखाने की नौटंकी के बावजूद सच यह है कि राफेल, व्‍यापम, सृजन जैसे घोटालों में तथाकथित ईमानदार संघी पूरी तरह संलिप्‍त हैं। व्‍यापम घोटाले के तो अब तक इतने गवाह मारे जा चुके हैं कि उस पर पर एक थ्रिलर फिल्‍म बनायी जा सकती है। राफेल में भी इनके झूठ पर झूठ पकड़े जा रहे हैं। साथ ही इनके द्वारा घोषित की गयी योजनाओं की असलियत भी जनता के सामने आ रही है। जन धन योजना, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, मुद्रा योजना, उज्जवला योजना, नमामि गंगे की कलई जनता के सामने धीरे-धीरे खुलने लगी है। भाजपा द्वारा 2014 के चुनावी भाषणों में काले धन और भ्रष्टाचार की बात खूब होती थी। मगर सत्ता में आने पर पनामा और पैराडाइज पेपर में हुए खुलासे के बाद भी किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टे नोटबंदी जैसा कदम उठाया गया जिसके कारण काला धन सफेद हो गया और बैंक में 99% पैसा वापस लौट गया। इसका नुकसान भी आम जनता को ही उठाना पड़ा। जहाँ नोटबंदी के दौरान लाइन में लगने से 200 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी वहीं आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी की नीतियों के कारण 55 लाख से ज्यादा रोजगार छिन गए। जो हर साल 2 करोड़ नौकरी देने की बात करते थे, उनके शासन के पिछले एक साल 2018 में ही  करीब 1 करोड़ 10 लाख रोजगार कम हो गये। वहीं एक RTI रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के सरकारी विभागों में ही लाखों नौकरियां है पर सरकार द्वारा इन जगहों पर स्‍थायी भर्ती की जगह कॉन्ट्रैक्ट, ठेका, केजुअल पर भरती की जाती है ताकि उन्हें कभी भी निकाला जा सके और तनख्वाह भी कम देनी पड़े। बेरोजगारी का आलम ये है कि महाराष्ट्र में 69 MPSC सीटों के लिए 7 लाख से ज्यादा आवेदन आये थे। देश स्तर पर भी अगर देखे तो रेलवे के 1 लाख पदों के लिए 3 करोड़ आवेदन आये थे। दूसरी तरफ दिल्ली में UPSC की तैयारी कर रहे छात्र पिछले 4 साल में लगातार परीक्षा पैटर्न में बदलाव के खिलाफ सड़क पर उतर कर आन्दोलन कर रहे है। इन सब का असर नौजवानों की मानसिक अवस्था पर भी पड़ा है। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि देश में 2007 से 2016 के बीच 75 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या की, जिसका बड़ा कारण बेरोज़गारी था! जहाँ आज एक तरफ नौकरियां घट रही है वहीं दूसरी तरफ महंगाई आसमान छू रही है। पेट्रोल-डीजल और खाना पकाने की गैस के दाम बढ़ने का असर आम ज़िन्दगी पर भी साफ़ तौर पर दिख रहा है। आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2018 के वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में भारत 103वें स्थान पर और सितम्बर 2018 में जारी मानवीय विकास सूचकांक में 189 देशों की सूची में भारत 130वें स्थान पर आ चुका है। आज जहाँ जनता एक तरफ गरीबी, महंगाई,बेरोजगारी से त्रस्त है, वही मोदी सरकार के आने के बाद पूंजीपतियों की सम्पति में कई गुना वृद्धि हुई है। गौतम अडानी की संपत्ति में 1 साल में 48% की वृद्धि हुई, वही बर्कुलाय्स हूरण की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल मुकेश अंबानी की संपत्ति मे हर दिन 300 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी। यह त्रासदी ही है कि जिस देश में अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 84 करोड़ आबादी 20 रूपए से कम पर गुजारा करती है उस देश में अम्बानी ने अपनी बेटी की शादी में 700 करोड़ रूपए खर्च किये, जिसके निमंत्रण कार्ड का दाम ही 3 लाख रूपए था। अमीर-गरीब के बीच की खाई अब कहीं ज्‍यादा बढ़ गयी है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल सम्पत्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा ऊपर के 1 प्रतिशत धन्नासेठों के पास एकत्रित हो चुका है। यही नहीं 2017 में पैदा हुई कुल सम्पदा का तो 73 प्रतिशत हिस्सा ऊपर के 1 फ़ीसदी अमीरों के पास गया है। देश के पूंजीपति बैंकों का क़र्ज़ डुबोकर विदेश भाग रहे है। नीरव मोदी जो पीएनबी घोटाले के तहत 11000 करोड़ रूपए लेकर विदेश भागा था, वो दावोस में प्रधानमंत्री मोदी के पीछे ही खड़ा था। विजय माल्या द्वारा 9000 करोड़ रूपए बैंक से क़र्ज़ लेकर विदेश भागने पर भी भाजपा के नेता नितिन गडकरी कहते हैं कि  विजय माल्या को चोर कहना सही नहीं है। इससे भाजपा की पूंजीपतियों से घनिष्टता साफ पता चलती है। पूंजीपतियों को दिये गये क़र्ज़ का बोझ भी आम जनता पर डाला जा रहा है। इसी का नतीजा है कि इस साल रिकॉर्ड 1 लाख 44 हजार करोड़ रूपए के क़र्जे माफ़ किए गए। मोदी सरकार इससे भी संतुष्‍ट नहीं है और रिजर्व बैंक के रिज़र्व से 3 लाख करोड़ रूपए लेकर इनको और नए क़र्ज़ देना चाहती है। वैसे तो सत्ता में आयी राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय चुनावबाज पार्टियों ने आम जनता को लूटने का ही काम किया है किन्तु लूट के इस खेल में भाजपा ने सभी को पीछे छोड़ दिया है।

फासीवाद का एक जवाब -इन्कलाब जिंदाबाद

आज जब जनता के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ भारत में जनता के बीच हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर नकली दुश्मन खड़े किये जा रहे हैं! आज मीडिया यानी टीवी, अखबार और सोशल मीडिया यानी फेसबुक,  व्हाट्सअप्प आदि के माध्यम से जनता में फेक (नकली) न्यूज़ फैलाकर हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर ज़हर घोलने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। इसी का नतीजा है कि पिछले चार सालों में लोकसभा में पेश किए जाने वाले रिपोर्ट के अनुसार 2,920 साम्प्रदायिक घटनाएं घटी जिनमे 389 लोगों की मौत हुई और 8,890 लोग घायल हुए। एक अन्य आंकड़े के अनुसार 2012 से अब तक साम्प्रदायिक विद्वेष के कारण गाय से सम्बंधित 78 घटनाएं घटी है, जिनमे से 97% घटनाए मोदी सरकार के आने के बाद घटी है। हाल ही में बुलंदशहर में घटी घटना सबके लिए चेतावनी है, जिसमे पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह जब दंगों को रोकने गए तो बजरंग दल के गुंडों ने उन्‍हें गोली से मार दिया। इससे पहले हिन्दू संत स्वामी अग्निवेश को भी इन्‍हीं की उकसाई भीड़ द्वारा पीटा गया था ऐसे में साथियो, जरा सोचिये, जब भी चुनाव नजदीक होता है तब राम मंदिर की बात क्यों निकल कर आती है? लगातार भड़काये जा रहे इन दंगों में मरता कौन है? आम गरीब और बेरोजगार लोग! इन दंगों में फायदा किसका होता है? फायदा होता है दंगों की राजनीति करने वाले नेताओं, पार्टियों और जनता का खून-पसीना निचोड़ने वाले पूँजीपतियों का! तो फ़िर हम कब तक मन्दिर-मस्जिद, जाति-धर्म, आरक्षण, गाय के नाम पर आपस में ही लड़ते रहेंगे? हमें दंगों में झोंकने वाले तो सत्ता तक पहुँच जाते हैं किन्तु हमें सिवाय मौत और विनाश के आज तक मिला ही क्या है?

महान क्रान्तिकारी शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि आम ग़रीब मेहनतकश जनता का एक ही मज़हब होता हैः वर्गीय एकजुटता! हमें हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथियों को सिरे से नकारना होगा और उनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा! हमें प्रण कर लेना चाहिए कि हम अपने गली-मुहल्लों में किसी भी धार्मिक कट्टरपंथी को साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की इजाज़त नहीं देंगे और उन्हें खदेड़ भगाएँगे! हमें यह माँग करनी चाहिए कि केन्द्र सरकार और तमाम राज्य सरकारें धर्म को राजनीति और सामाजिक जीवन से अलग करने के लिए सख़्त कानून बनायें! धर्म भारत के नागरिकों का व्यक्तिगत मसला होना चाहिए और किसी भी पार्टी, दल, संगठन या नेता को धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय के नाम पर राजनीति करने, बयानबाज़ी करने और उन्माद भड़काने पर सख़्त से सख़्त सज़ा दी जानी चाहिए और उन पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। हमें ऐसी व्यवस्था क़ायम करने के लिए लड़ने का संकल्प लेना चाहिए जिसकी कल्पना भगतसिंह और उनके इंक़लाबी साथियों ने की थीः एक ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन, राज-काज और समाज के ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का हक़ हो और फैसला लेने की ताक़त उनके हाथों में हो! जिसमें जाति और धर्म के बँटवारे न हों! जिसमें आदमी के हाथों आदमी की लूट असम्भव हो! जिसमें सारी पैदावार समाज के लोगों की ज़रूरत के लिए हो न कि मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफ़े के लिए! एक ऐसी व्यवस्था ही हमें एक ओर ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी और बेघरी से निजात दिला सकती है और वहीं दूसरी ओर धार्मिक उन्माद, साम्प्रदायिकता और दंगों से भी मुक्ति दिला सकती है! एक ऐसी व्यवस्था में ही हम सुकून और इज़्ज़त-आसूदगी की ज़िन्दगी बसर कर सकते हैं! अगर हम अभी इसी वक़्त इस बात को नहीं समझते तो आने वाले समय में देश खण्ड-खण्ड में टूट जायेगा और दंगों और जातिवाद की आग में धू-धू जलेगा!

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!

साम्प्रदायिक फासीवाद का एक जवाब-इंक़लाब ज़िन्दाबाद!

नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्‍ता, दिशा छात्र संगठन

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