Naujawan Bharat Sabha condemns the attack carried out by the RSS-BJP goons against activists who were peacefully protesting the inhuman war the Israel is waging on Gaza and its children. We demand that a fair and transparent inquiry and strict action is taken against the sanghi goons.
Category: फासीवाद
Pahalgam Terror Attack: Who Is Responsible for the Lapses in the Safety of Tourists and Ordinary Citizens!?
So Much for the Claims of Peace in Kashmir! Who Is Responsible for the Lapses in the Safety of Tourists and Ordinary Citizens!?
Expose and Defeat the Sangh’s Conspiracies Aimed at Using the Pahalgam Terror Attack to Stoke Communal Fire Across the Country!
पहलगाम आतंकी हमला : सैलानियों और आम नागरिकों की सुरक्षा में चूक के लिए कौन है ज़िम्मेदार !?
कश्मीर में शान्ति स्थापना के दावे हुए हवा! सैलानियों और आम नागरिकों की सुरक्षा में चूक के लिए कौन है ज़िम्मेदार !?
पहलगाम चरमपन्थी हमले को बहाना बनाकर देशभर को साम्प्रदायिकता की आग में
झोंकने की संघी साज़िशों को नाकाम करो !
मन्दिर-मस्ज़िद के नाम पर फ़र्ज़ी विवाद खड़े करके जनता को दंगाई भीड़ में तब्दील करने की संघी साज़िशों को नाकाम करो !
अतीत का हिसाब लेने का निरर्थक प्रयास करने पर कोई आमादा हो ही जाये तो उसे ऐसे हज़ारों हिन्दू मन्दिर मिल जायेंगे जिन्हें बौद्ध और जैन धर्म के मठों और उपासना स्थलों को ध्वस्त करके तथा उनकी मूर्तियों तक का स्वरूप बदलकर बनाया गया है। चोल-चालुक्य-राष्ट्रकूट शासकों से लेकर हर्षवर्धन तक अनेक राजा हुए हैं जिन्होंने एक-दूसरे के राज्य के मन्दिरों को लूटा, तोड़ा और उनका स्वरूप बदला। यदि सल्तनत व मुग़ल काल में भी ऐसी कुछ घटनाएँ हुई होंगी तो इसमें नया कुछ भी नहीं था। और असल में सल्तनत व मुग़ल दौरों का तो राज ही मुस्लिम-राजपूत शासन का मिला-जुला रूप रहा है। अतीत में हुए किसी तथाकथित अन्याय का वर्तमान में हिसाब लिया जाना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि यह देश की जनता के धार्मिक सौहार्द्र में पलीता लगाने की कोशिश भी है। अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ने की लड़ी एक जगह नहीं रुकने वाली है। यह हमें दक्षिण अफ़्रीका तक पहुँचा देगी!
नौजवानों के लिए जुमलों से भरा आम बजट 2024-25
इस बजट के ज़रिये मोदी सरकार ने एक बार फिर नौजवानों के भविष्य पर हमला बोला है। मीडिया में उछाले जा रहे आंँकड़ों के मुताबिक़ इस बार स्कूली शिक्षा के बजट में पिछले साल की तुलना में 561 करोड़ की वृद्धि कर 73008 करोड़ आवंटित किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर इस बजट को कुल बजट की तुलना में देखें तो 2023 की अपेक्षा इसमें 0.17 फ़ीसदी की कमी आयी है और इसी तरह इस बजट को महंँगाई से प्रतिसंतुलित करने पर आंँकड़ों की सारी बाज़ीगरी खुल कर सामने आ जाती है। इसी प्रकार उच्च शिक्षा में पिछले साल के संशोधित बजट की तुलना में 17 फ़ीसदी और यूजीसी के बजट में 60 फ़ीसदी की भारी भरकम कटौती की गयी है। इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप योजना, कॉलेजों-विश्वविद्यालय के छात्रों को मिलने वाली तमाम स्कॉलरशिप योजनाओं को प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा प्रोत्साहन योजना के साथ मिला दिया गया है। मतलब साफ़ है एक तरफ़ उच्च शिक्षा बजट में कटौती से विश्वविद्यालयों में फ़ीस वृद्धि होगी, इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह होगा और परिणामस्वरूप ग़रीब परिवार से आने वाले छात्र परिसर से दूर हो जायेंगे तथा निजी विश्वविद्यालयों को फलने-फूलने का मौका मिलेगा। दूसरी तरफ़ स्कॉलरशिप योजनाओं के मर्जर और यूजीसी के बजट में कटौती से छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप पर भी तलवार लटकेगी।
भाजपाई-संघी निकले दो माह पहले बीएचयू में हुए सामूहिक बलात्कार के तीनों आरोपी! संस्कार और चरित्र की दुहाई देने वालों का यही है असल चाल-चेहरा-चरित्र !
इस मामले में संलिप्त तीनों आरोपियों पर भाजपा के बड़े नेताओं का हाथ था। जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी तक के साथ बत्तीसी दिखाते हुए इनके फ़ोटो मौजूद हैं। शायद यही कारण हो कि पुलिस को इन्हें “काबू” करने में दो महीने लग गये! उल्टा इस मामले में न्याय की माँग कर रहे बीएचयू के छात्रों के साथ पुलिस की शह पर संघी लम्पटों द्वारा मारपीट की गयी थी। यही नहीं प्रदर्शनकारी छात्रों पर ही मुक़दमें दर्ज कर लिये गये थे जबकि अपराधी दो महीने जुगाड़ लगाते फिरते रहे। इस बीच ‘ऑन द स्पॉट’ “इन्साफ़” करने में कुख्यात यूपी पुलिस की बन्दूकें ठण्डी पड़ी रही और योगी जी का न्याय देवता बुलडोज़र भी जंग खाये खड़ा रहा! ज़ाहिर तौर पर हम “न्याय” के इस तालिबानी संस्करण के कत्तई हिमायती नहीं हैं। ऐसी घटनाएँ यही साफ़ करती हैं कि आमतौर पर इस “न्याय प्रणाली” का शिकार ग़रीब, दलित और मुस्लिम ही बनते हैं। इस घटना में भी यही दिखता है।
“लव जिहाद” कुछ और नहीं बल्कि फ़ासीवादी गिरोह के पास दुष्प्रचार का हथियार है!
जुझारू जन एकजुटता अभियान – गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के कारणों को पहचानो!
शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि आम ग़रीब मेहनतकश जनता का एक ही मज़हब होता हैः वर्गीय एकजुटता! हमें हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथियों को सिरे से नकारना होगा और उनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा! हमें प्रण कर लेना चाहिए कि हम अपने गली-मुहल्लों में किसी भी धार्मिक कट्टरपंथी को साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की इजाज़त नहीं देंगे और उन्हें खदेड़ भगाएँगे!
कोई नहीं बचेगा!
पिछले 4 सालों में जो सवा दो करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं उनमें से कितने हिन्दू थे और कितने मुसलमान थे क्या इसका हिसाब किसी ने लगाया है? कितने सवर्ण थे और कितने दलित थे? क्या नौकरी से निकालते हुए किसी ने जात धर्म पूछा था? नोटबंदी में जिन 200 लोगों की मौत हुयी उनमें से कितने हिन्दू थे और कितने मुसलमान थे? कितने सवर्ण थे और कितने दलित थे? क्या नोटबंदी के कारण हुयी मौतों ने जात धर्म पूछा था? जीएसटी लागू होने के बाद जितने उद्योग बर्बाद हुए और इसके कारण जितने लोग सड़कों पर चप्पल फटकारने को मजबूर हुए उनमें कितने हिन्दू थे? मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण जो देश में बर्बादी फैली है उसने हिन्दू मुसलमान के आधार पर फर्क नहीं किया है! पर जब वोट लेने की बारी आती है तो हमें हिन्दू मुसलमान में बाँट दिया जाता है।
देश की जनता के नाम एक ज़रूरी अपील – दंगों की राजनीति और मजहबी जुनून का विरोध करो!
तमाम तरह की फ़िरकापरस्त और साम्प्रदायिक ताकतों को तभी हराया जा सकता है जब लोगों को उनके जीवन से जुड़े असली सवालों के आधार पर एकजुट किया जाये। शहीदे आज़म भगतसिंह के कहे अनुसार देश की युवा आबादी को न केवल स्वयं जागरूक और संगठित होना होगा बल्कि आम जनता को भी यह बताना होगा कि उनके असली दुश्मन कौन हैं। मौजूदा साम्प्रदायिक हमले के ख़िलाफ़ जनसाधारण को सचेत और लामबद्ध करना आज वक्त की ज़रूरत है।