काकोरी के वीरों से परिचय
9 अगस्त, 1925 को शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़उल्ला और उनके अन्य क्रान्तिकारी साथियों ने क्रान्तिकारी पार्टी के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से लखनऊ के क़रीब काकोरी के पास रेलगाड़ी रोक सरकारी ख़ज़ाना लूटा। इसके बाद चन्द्रशेखर आज़ाद के अलावा बाक़ी सभी क्रान्तिकारी पकड़े गये। भगतसिंह भी तब कानुपर निवास के समय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन पार्टी में भरती हो चुके थे।
‘विद्रोही’ नाम से मई, 1927 में भगतसिंह ने ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ शीर्षक लेख पंजाबी में छपवाया। उस लेख के छपते ही भगतसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। चारपाई पर हथकड़ी लगे बैठे भगतसिंह का प्रसिद्ध चित्र इसी गिरफ्तारी के समय लिया गया। इससे पहले भगतसिंह पंजाब लौटकर शचीन्द्रनाथ सान्याल की पुस्तक ‘बन्दी जीवन’ का पंजाबी अनुवाद छपवा चुके थे। – स.
पहले ‘किरती’ (पंजाबी पत्रिका) में काकोरी से सम्बन्धित कुछ लिखा जा चुका है। आज हम काकोरी षड्यन्त्र और उन वीरों के सम्बन्ध में कुछ लिखेंगे जिन्हें उस सम्बन्ध में कड़ी सज़ाएँ मिली हैं।
9 अगस्त, 1925 को एक छोटे-से स्टेशन काकोरी से एक पैसेंजर ट्रेन चली। यह स्टेशन लखनऊ से आठ मील की दूरी पर है। ट्रेन मील-डेढ़ मील चली होगी कि सेकेण्ड क्लास में बैठे हुए तीन नौजवानों ने गाड़ी रोक ली और दूसरों ने मिलकर गाड़ी में जा रहा सरकारी ख़ज़ाना लूट लिया। उन्होंने पहले ही ज़ोर से आवाज़ देकर सभी यात्रियों को समझा दिया था कि वे डरें नहीं, क्योंकि उनका उद्देश्य यात्रियों को तंग करने का नहीं, सिर्फ़ सरकारी ख़ज़ाना लूटने का है। ख़ैर, वे गोलियाँ चलाते रहे। वह (कोई यात्री) आदमी गाड़ी से उतर पड़ा और गोली लग जाने से मर गया।
सरकारी अधिकारी हार्टन, सी.आई.डी. इसकी जाँच में लगा। उसे पहले से ही यक़ीन हो गया था कि यह डाका क्रान्तिकारी जत्थे का काम है। उसने सभी सन्दिग्ध व्यक्तियों की छान-बीन शुरू कर दी। इतने में क्रान्तिकारी जत्थे की राज्य परिषद की एक बैठक मेरठ में होनी तय हुई। सरकार को इसका पता चल गया। वहाँ ख़ूब छानबीन की गयी।
फिर सितम्बर के अन्त में हार्टन ने गिरफ्तारियों के वारण्ट जारी किये और 26 सितम्बर को बहुत-सी तलाशियाँ ली गयीं और बहुत-से व्यक्ति पकड़ लिये गये। कुछ नहीं पकड़े गये। उनमें से एक श्री राजेन्द्र लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बम केस में पकड़े गये और वहीं उन्हें दस बरस क़ैद हो गयी। और श्री अशफ़ाक़उल्ला और शचीन्द्र बख्शी बाद में पकड़े गये, जिन पर अलग मुक़दमा चला।
जज के फ़ैसले से यह पता चलता है कि असहयोग आन्दोलन दब जाने से देशभक्त युवकों का शान्ति से विश्वास उठ गया और उन्होंने युगान्तर दल स्थापित किया। श्री जोगेशचन्द्र चट्टोपाध्याय बंगाल से इस दल का संगठन बनाने यू.पी. आये और पक्का काम कर सितम्बर, 1924 में लौट गये। उस समय बंगाल में आर्डिनेंस पास हो चुका था और आप लौटते ही हावड़ा पुल पर पकड़े गये। तलाशी लेने पर आपकी जेब से एक काग़ज़ मिला, जिस पर यू.पी. की राज्य परिषद की किसी बैठक का और यू.पी. में अपने दल के संगठन का हाल लिखा हुआ था। ख़ैर, फिर काम चल पड़ा और काम चलाने की ख़ातिर कई डकैतियाँ भी की गयीं। जज के विचार में इस दल के नेता हैं – श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल।
श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल का नाम किससे छिपा है। आप ही ‘बन्दी जीवन’ जैसी प्रसिद्ध व शानदार पुस्तक के लेखक हैं। बनारस के निवासी हैं और 1915 के ग़दर आन्दोलन में आपने ख़ूब काम किया था। आप बनारस षड्यन्त्र के नेता व श्री रासबिहारी जी का दायाँ हाथ थे। तब उम्रक़ैद हुई थी लेकिन 1920 में छूट गये थे। फिर आप अपने पिछले काम पर ही जुट गये और सन् 1925 के शुरू में ‘दि रेवल्यूशनरी’ परचा एक ही दिन में सारे हिन्दुस्तान में बँटा। उसकी भाषा व अच्छे विचारों की अंग्रेज़ी अख़बारों ने भी ख़ूब तारीफ़ की थी। आप फ़रवरी में पकड़े गये। आप पर उस सम्बन्ध में मुक़दमा चलाया गया और आपको दो साल क़ैद की सज़ा मिली। वहीं से आपको काकोरी के मुक़दमे में घसीट लिया गया। आप बडे़ ज़िन्दादिल हैं। कोर्ट में स्वयं ख़ुश रहना और दूसरों को ख़ुश रखना ही आपका काम था। आप ने अपना मामला स्वयं लड़ा। जज आपको ही सबका गुरु कहता है। ‘बन्दी जीवन’ का गुजराती व पंजाबी में अनुवाद हो चुका है।
आप अंग्रेज़ी और बंगाली के उच्च कोटि के लेखक हैं। अब आपको दो उम्रक़ैद हो गयी है।
आपके साथ आपका छोटा भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल भी घसीट लिया गया। वह क़रीब बी.ए. में पढ़ता था। पकड़ा गया और उसे पाँच साल की क़ैद हो गयी।
श्री शचीन्द्र के बाद अत्यन्त प्रसिद्ध वीर श्री रामप्रसाद हैं। आप जैसा सुन्दर, मज़बूत जवान खोजने से मिलना भी मुश्किल है। बहुत योग्य आदमी है। हिन्दी का बड़ा लेखक है। आपने ‘कैथराइन’, ‘बोल्शेविकों के काम’, ‘मन की लहर’ आदि अनेक पुस्तकें लिखीं। आप उर्दू के माने हुए शायर हैं। आपकी उम्र 28 बरस की है। पहले 1919 में मैनपुरी षड्यन्त्र में आपके वारण्ट निकले और आपके गुरु श्री गेंदालाल जी आदि पकड़े गये, लेकिन आप नेपाल की ओर चले गये और वहाँ बड़ी मुश्किलें सहन कर गुज़ारा करते रहे। पूरा दिन हल चलाना, कुदाल चलाना, मेहनत-मशक्क़त करना और रात में सिर्फ़ डेढ़ आना पाना, जिससे पेटभर रोटी भी नहीं खा सकते थे। कई बार तो घास तक खाना पड़ा। लेकिन मज़ा यह, फिर भी बैठकर कविता लिखना, और भारतमाता की याद और प्रेम में आँसू बहाने और गीत गाने। ऐसे नौजवान कहाँ से मिल सकते हैं? आप युद्ध-विद्या में बड़े कुशल हैं और आज उन्हें फाँसी का दण्ड मिलने का कारण भी बहुत हद तक यही है। इस वीर को फाँसी का दण्ड मिला और आप हँस दिये। ऐसा निर्भीक वीर, ऐसा सुन्दर जवान, ऐसा योग्य और उच्चकोटि का लेखक और निर्भय योद्धा मिलना मुश्किल है।
तीसरे वीर श्री राजिन्द्रनाथ लाहिड़ी हैं। 24 वर्ष का अत्यन्त सुन्दर जवान एम.ए., बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था। जज कहता है कि यह युगान्तर दल का एक मज़बूत स्तम्भ है। आप गाड़ी रोकने वालों में थे। बाहर से था – कमज़ोर सूखा-सा। कलकत्ते के पास दक्षिणेश्वर बम फ़ैक्टरी में पकड़ा गया, वहीं दस साल क़ैद हुई। ख़ुशी में मोटा होने लगा। काकोरी के मुक़दमे में तो शरीर ख़ूब भर गया था और अब फाँसी की सज़ा हो गयी है।
वीर रोशन सिंह को भी फाँसी की सज़ा हुई है। आप पहले पुलिस की मदद करते थे और बहुत-से डकैत आपने पकड़वाये थे। आप भी फँस गये। लेकिन कोई डकैत तो नहीं है। जज भी कहता है, यह नौजवान सच्चे देशसेवक थे! अच्छा! इस वीर को भी बार-बार नमस्कार।
इसके बाद श्री मन्मथनाथ गुप्त की बारी है। आप काशी विद्यापीठ के बी.ए. के विद्यार्थी थे। 18 बरस की उम्र है। बंगाली, गुजराती, मराठी, उड़िया, हिन्दी, अंग्रेज़ी और फ़्रेच आदि अनेक भाषाएँ आपने सीख ली थीं। जज ने आपको भी डकैतियों में शामिल कर 14 साल की सख़्त सज़ा दी है। आप बड़े निर्भय हैं और यह सज़ा सुनकर हँस दिये। आजकल जेल में भूख हड़ताल किये बैठे हैं। आपसे ग़ैर-सरकारी सदस्य ने जेल में आकर पूछा कि खाना क्यों नहीं खाते, तो आपने उत्तर दिया कि हम मनुष्य हैं। हमारे साथ मनुष्यों जैसा व्यवहार होना चाहिए। मैं नहीं समझता कि इस पशुओं जैसे व्यवहार को सहन कर मैं 14 साल तक जी सकूँगा। तिल-तिल कर मरने से एक बार मर जाना अच्छा है। आप पहले असहयोग में भी जेल जा चुके हैं।
अब जिस नौजवान का ज़िक्र होगा उसे यदि हम महापुरुष कह दें तो कुछ झूठ न होगा। वह वीर श्री जोगेशचन्द्र चटर्जी हैं। आप कोमिल्ला (ढाका) के रहने वाले हैं। वह बी.ए. में फ़िलासफ़ी के विद्यार्थी थे। प्रोफ़ेसर आप पर बहुत ख़ुश थे और कहते थे कि लड़का बड़ा होनहार है। लेकिन आपने कॉलेज तो क्या, पूरी दुनिया की फ़िलासफ़ी पर लात मार दी और सबकुछ छोड़कर युगान्तर दल में जा मिले। आपको डिफ़ेंस ऑफ़ इण्डिया एक्ट के अनुसार गिरफ्तार किया गया और अकथनीय व असहनीय कष्ट दिये गये। एक दिन आपके सर पर पाखाना डाल दिया गया और चार दिन तक कोठरी में बन्द रखा गया। मुँह धोने तक के लिए पानी नहीं दिया गया और बुरी तरह मार-मारकर पूरा बदन ज़ख़्मी कर दिया गया। लेकिन आपके पास चुप से अधिक क्या रखा था।
1920 में छूटे तो एक मामूली कार्यकर्ता की तरह कांग्रेस में काम करते रहे। घर से ग़रीब हैं, लेकिन अपना घर तबाह करके भी दुनिया में सेवा होती है। आप 1923 में यू.पी. आये और फिर ‘युगान्तर’ दल की नींव रखी। 1924 में बंगाल लौट गये और पकड़े गये। पहले आपको आर्डिनेंस के तहत पकड़ा था, फिर यहाँ काकोरी लाया गया। आपको दस बरस क़ैद हुई है। बेहद ख़ूबसूरत नौजवान हैं। जज ने आपकी बड़ी तारीफ़ की है।
श्री गोविन्द चरणकार उर्फ़ डी.एन. चौधरी लखनऊ से पकड़े गये थे। आप बहुत पुराने क्रान्तिकारी हैं। 1918 या 1919 में ढाका में पुलिस आपको पकड़ने आयी। आपने गोलियों का जवाब गोलियों से दिया और गोलियों में से लड़ते-लड़ाते भाग निकले, लेकिन गोलियाँ ख़त्म हो चुकी थीं और आप घायल हो गये थे। पकड़े गये, कालापानी मिला। 1922 में बहुत बीमार हो गये थे, तब छोड़े गये। 1925 में फिर पकड़े गये और अब 10 साल क़ैद हो गयी है।
अब श्री सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य सम्बन्धी कुछ लिखेंगे। आप भी बनारस के रहने वाले थे। बनारस षड्यन्त्र के समय आपकी उम्र 16 बरस की थी, पकड़े गये। लेकिन कुछ प्रमाणित न होने से छूट गये और फिर नज़रबन्द कर बुन्देलखण्ड में रखे गये। आप हिन्दी के बड़े प्रसिद्ध लेखक हैं। कानपुर के ‘प्रताप’ जैसे प्रसिद्ध अख़बार के सहायक सम्पादक थे। आप बनारस से पकड़े गये और अब आपको सात साल क़ैद हुई है। आप बहुत सुन्दर गाते हैं। जेल में आप योगाभ्यास करते थे।
श्री राजकुमार कानपुर के रहने वाले हैं। आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बी.ए. में पढ़ते थे। पकड़े गये। आपके कमरे से दो रायफ़लें निकलीं। बहुत सुन्दर गाने वाले और देखने में भी आप काफ़ी सुन्दर हैं। जोशीले बहुत हैं। श्री दामोदर स्वरूप जब बहुत बीमार होने पर भी कोर्ट में बुलाये गये तो आपको जोश आ गया और आपने जज को ख़ूब सुनायी। जज ने कहा कि फ़ैसले के समय तुम्हें इसका मज़ा चखाया जायेगा। वीर युवक को दस साल की सज़ा हो गयी! जीवन एक तरह से तबाह हो गया, लेकिन आप हँस दिये। धन्य हैं ये वीर और इन्हें जन्म देने वाली वीर माताएँ।
श्री विष्णु शरण दुबलिस मेरठ के रहने वाले हैं। वैश्य अनाथालय के अधीक्षक थे। बी.ए. में असहयोग कर दिया गया था और मेरठ को उन्होंने दूसरा बारदोली बना दिया था। सिविल नाफ़रमानी के लिए तैयार हो गये थे। बड़े सुन्दर वक्ता थे। आपके घर युगान्तरकारियों की बैठक हुई थी। आपको सात साल की सज़ा हो गयी है।
श्री रामदुलारे को भी 7 साल की सज़ा हुई है। आप कानपुर निवासी थे। स्काउट मास्टर, कांग्रेस के जोशीले सेवक थे।
6 अप्रैल को फ़ैसला सुनाया गया, उस दिन सभी वीर गाते आये थे –
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है!
सज़ाएँ लापरवाही से सुनीं और हँस दिये। उसके बाद दुख की घड़ी आ गयी। जिन वीरों ने एक साथ समुद्र में किश्तियाँ डाली थीं, उनके ही अलग होने का पल आ गया। “क्रान्तिकारी लोगों में जो अगाध और गम्भीर प्रेम होता है, उसे साधारण दुनियादार आदमी अनुभव नहीं कर सकते,” श्री रासबिहारी के इस वाक्य का अर्थ भी हम लोग नहीं समझ सकते। जिन लोगों ने ‘सिर रख तली प्रेम की गली’ में पैर रख दिया हो, उनकी महिमा को हमारे जैसे निकृष्ट आदमी क्या समझ सकते हैं? उनका परस्पर प्रेम कितना गहन होता है, उसे हम सपने में भी नहीं जान सकते। डेढ़ साल से अपने जीवन के अन्धकारमय भविष्य के इन्तज़ार में मिलकर बैठे थे। वह पल आया, तीन को फाँसी, एक को उम्रक़ैद, एक को 14 बरस क़ैद, 4 को दस बरस क़ैद व बाक़ियों को 5 से 10 साल की सख़्त क़ैद सुनाकर जज उन्हें उपदेश देने लगा, “आप सच्चे सेवक और त्यागी हो। लेकिन ग़लत रास्ते पर चले हो।” ग़रीब भारत में ही सच्चे देशभक्तों का यह हाल होता है। जज उन्हें अपने कामों पर पुनर्विचार करने की बात कह चलता बना और फिर…फिर क्या हुआ? क्या पूछते हैं? जुदाई के पल बड़े बुरे होते हैं। जिन्हें फाँसी की सज़ा मिल गयी, जिन्हें उम्रभर के लिए जेल में बन्द कर दिया गया, उनके दिलों का हाल हम नहीं समझ सकते। क़दम-क़दम पर रोने वाले हिन्दुस्तानी, यों ही थर-थर काँपने लग जाने वाले कायर हिन्दुस्तानी, उन्हें क्या समझ सकते हैं? छोटों ने बड़ों के पैरों पर झुककर नमस्कार किया। उन्होंने छोटों को आशीर्वाद दिया, ज़ोर से गले मिले और आह भरकर रह गये। भेज दिये गये। जाते हुए श्री रामप्रसाद जी ने बड़े दर्दनाक लहजे में कहा –
दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं।
ख़ुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं।
यह कहकर वह लम्बी, बड़ी दूर की यात्रा पर चले गये। दरवाज़े से निकलते समय उस अदालत के बड़े भारी रैंकन थियेटर हाल की भयावह चुप्पी की एक आह भरकर तोड़ते हुए उन्होंने फिर कहा –
हाय, हम जिस पर भी तैयार थे मर जाने को।
जीते जी हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
हम लोग एक आह भरकर समझ लेते हैं कि हमारा फ़र्ज़ पूरा हो गया। हमें आग नहीं लग उठती, हम तड़प नहीं उठते, हम इतना मुर्दे हो गये हैं। आज वे भूख-हड़ताल कर बैठे हैं और तड़प रहे हैं और हम चुपचाप सब तमाशा देख रहे हैं। ईश्वर उन्हें बल व शक्ति दे कि वे वीरता से अपने दिन पूरे करें और उन वीरों के बलिदान रंग लायें।
लेखक
‘विद्रोही’
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्पर्क करें।
जनचेतना से पुस्तकें मँगाने का तरीका:
- जनचेतना पर उपलब्ध पुस्तकों को आप डाक के ज़रिये मँगा सकते हैं ।
- पुस्तकें ऑर्डर करने के लिए ईमेल अथवा फोन से सम्पर्क करें।
- ईमेल : info@janchetnabooks.org
- फोन : 08853093555; 0522-2786782
- पता: डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020
- वेबसाइट: http://janchetnabooks.org/
- जनचेतना का बैंक अकाउंट (ऑनलाइन या चेक/ड्राफ्ट से भुगतान के लिए):
जनचेतना पुस्तक प्रतिष्ठान समिति
अकाउंट नं: 0762002109003796
पंजाब नेशनल बैंक
निशातगंज
लखनऊ
IFSC Code: PUNB0076200