साण्डर्स की हत्या के बाद : दो नोटिस
17 नवम्बर, 1928 को लाला लाजपत राय का देहान्त हुआ। अक्टूबर में साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में हुए विशाल प्रदर्शन का लाला जी ने नेतृत्व किया था और पुलिस ने उन पर लाठियाँ बरसायी थीं। यही लाठियाँ लाला जी की मृत्यु का कारण बनीं। लाला जी की मृत्यु से देश में दुख व आतंक छा गया। श्रीमती चितरंजन दास ने ऐसे माहौल में सवाल किया था, ‘क्या देश में मानवता व जवानी अभी बाक़ी है?’
लाला लाजपत राय के प्रति बहुत अच्छी राय न होने के बावजूद, क्रान्तिकारियों ने लाला जी की मृत्यु को राष्ट्रीय अपमान का मुद्दा बनाया और इसका बदला लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले ब्रिटिश पुलिस अधिकारी साण्डर्स को मारकर लिया। हालाँकि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्काट क्रान्तिकारियों से बच गया।
साण्डर्स की हत्या 17 दिसम्बर को की गयी। 18 दिसम्बर को पूरे लाहौर में हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना के कमाण्डर इन चीफ़ के हस्ताक्षर से एक परचा बाँटा गया। 23 दिसम्बर को फिर एक नोटिस लगाया गया। – स.
‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना’
नोटिस
नौकरशाही सावधान!
जे.पी. साण्डर्स की मृत्यु से लाला लाजपत राय जी की हत्या का
बदला ले लिया गया।
यह सोचकर कितना दुख होता है कि जे.पी. साण्डर्स जैसे एक मामूली पुलिस अफ़सर के कमीने हाथों देश की तीस करोड़ जनता द्वारा सम्मानित एक नेता पर हमला करके उनके प्राण ले लिये गये। राष्ट्र का यह अपमान हिन्दुस्तानी नवयुवकों और मर्दों को चुनौती थी।
आज संसार ने देख लिया है कि हिन्दुस्तान की जनता निष्प्राण नहीं हो गयी है, उनका (नौजवानों) ख़ून जम नहीं गया, वे अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए प्राणों की बाज़ी लगा सकते हैं। और यह प्रमाण देश के उन युवकों ने दिया है जिनकी स्वयं देश के नेता निन्दा और अपमान करते हैं।
अत्याचारी सरकार सावधान!
इस देश की दलित और पीड़ित जनता की भावनाओं को ठेस मत लगाओ! अपनी शैतानी हरकतें बन्द करो। हमें हथियार न रखने देने के लिए बनाये तुम्हारे सब क़ानूनों और चौकसी के बावजूद पिस्तौल और रिवाल्वर इस देश की जनता के हाथ में आते ही रहेंगे। यदि वह हथियार सशस्त्र क्रान्ति के लिए पर्याप्त न भी हुए तो भी राष्ट्रीय अपमान का बदला लेते रहने के लिए तो काफ़ी रहेंगे ही। हमारे अपने लोग हमारी निन्दा और अपमान करें। विदेशी सरकार चाहे हमारा कितना भी दमन कर ले, परन्तु हम राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करने और विदेशी अत्याचारियों को सबक सिखाने के लिए सदा तत्पर रहेंगे। हम सब विरोध और दमन के बावजूद क्रान्ति की पुकार को बुलन्द रखेंगे और फाँसी के तख़्तों पर से भी पुकार कर कहेंगे –
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद!
हमें एक आदमी की हत्या करने का खेद है। परन्तु यह आदमी उस निर्दयी, नीच और अन्यायपूर्ण व्यवस्था का अंग था जिसे समाप्त कर देना आवश्यक है। इस आदमी की हत्या हिन्दुस्तान में ब्रिटिश शासन के कारिन्दे के रूप में की गयी है। यह सरकार संसार की सबसे अत्याचारी सरकार है।
मनुष्य का रक्त बहाने के लिए हमें खेद है। परन्तु क्रान्ति की वेदी पर कभी-कभी रक्त बहाना अनिवार्य हो जाता है। हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रान्ति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अन्त कर देगी।
‘इन्क़लाब ज़िन्दाबाद!’
ह. बलराज
18 दिसम्बर, 1928 ‘सेनापति, पंजाब हि.स.प्र.स.’
हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना
नोटिस
17 दिसम्बर की घटना सम्बन्धी
अब कोई रहस्य नहीं! कोई अनुमान नहीं!
जे.पी. साण्डर्स मारा गया!
लाला लाजपत राय का बदला ले लिया गया!!
हि.स.प्र.स. की नियमावली (नियम 10-बी व सी) के अनुसार इस बात की सूचना दी जाती है कि यह सीधी राजनीतिक प्रकृति की बदले की कार्रवाई थी। भारत के महान बुज़ुर्ग लाला लाजपत राय पर किये गये अत्यन्त घृणित हमले से उनकी मृत्यु हुई। यह इस देश की राष्ट्रीयता का सबसे बड़ा अपमान था और अब इसका बदला ले लिया गया है।
इसके बाद सभी से यह अनुरोध है कि हमारे शत्रु पुलिस को हमारा पता-ठिकाना बताने में किसी क़िस्म की सहायता न दें। जो कोई इसके विपरीत काम करेगा, उस पर सख़्त कार्रवाई की जायेगी।
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद!
हस्ताक्षर बलराज
23 दिसम्बर, 1928 कमाण्डर-इन चीफ़
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
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