गृह मन्त्री, भारत सरकार को तार
ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध क्रान्तिकारियों ने जेल में भी प्रतिदिन संघर्ष जारी रखा। जेलों में सुधार के लिए जो भूख हड़ताल शुरू की गयी, वह कई मंज़िलों से गुज़री। यतीन्द्रनाथ दास शहीद हुए, सरकार ने कुछ वायदे किये। एक बार भूख हड़ताल छोड़ी गयी, और फिर शुरू कर दी गयी, क्योंकि सरकार के वायदे झूठे साबित हुए थे। जनता के सामने सरकार की असलियत लाना उस अभियान का हिस्सा था। फिर शुरू हुई भूख हड़ताल में सरकार ने कई बेहूदा ढंग अपनाये, लेकिन क्रान्तिकारी दृढ़ता से अपने विश्वासों पर स्थिर रहे। भगतसिंह और उनके साथी सभी कष्टों को हँसकर झेलने के सिद्धान्त पर चलते रहे।
20 जनवरी, 1930
प्रति,
गृहमन्त्री, भारत
भगतसिंह और अन्य क़ैदियों की ओर से।
समिति के इस आश्वासन पर कि राजनीतिक क़ैदियों के साथ व्यवहार का प्रश्न हमारे सन्तोष के अनुसार शीघ्र ही अन्तिम रूप में हल किया जा रहा है, हमने अपनी भूख हड़ताल स्थगित कर दी थी। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के भूख हड़ताल सम्बन्धी प्रस्तावों की प्रतियाँ जेल-अधिकारियों ने रोक ली हैं। कांग्रेस प्रतिनिधि मण्डल को क़ैदियों से मिलने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया गया है। षड्यन्त्र केस से सम्बन्धित विचाराधीन व्यक्तियों पर पुलिस-अधिकारियों की आज्ञा से 23, 24 अक्टूबर, 1929 को बुरी तरह हमले किये गये।
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्पर्क करें।
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