यह सत्याग्रह सरकार के साथ संघर्ष के विचार से नहीं आरम्भ किया गया वरन केवल यह शिकायत दूर करने के लिए था। नेताओं ने यह स्वीकार भी किया है। लेकिन समझ में नहीं आता कि एक-एक शिकायत के लिए लड़ने-झगड़ने के बजाय मूल या जड़ का क्यों नहीं इलाज किया जाता? असल में ज़िम्मेदार नेता तो ज़िम्मेदारी से भागते हैं और तुरन्त समझौते पर उतर आते हैं। तो यह बात स्पष्ट है कि इस तरह लाभ हमेशा ताक़तवर को ही होता है। हम समझते हैं कि जब तक नेता युगान्तकारी भावना और उत्साह के साथ ऐसा क्रान्तिकारी संघर्ष नहीं छेड़ेंगे, तब तक आज़ादी-आज़ादी का शोर करना दूर की बात है।
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भगतसिंह – अराजकतावाद: तीन
दरअसल जब दमन और शोषण सीमा से अधिक हो जाये, जब शान्तिमय और खुले काम को कुचल दिया जाये, तब कुछ करने वाले हमेशा गुप्त रूप से काम करना शुरू कर देते हैं और दमन देखते ही प्रतिशोध के लिए तैयार हो जाते हैं। यूरोप में जब ग़रीब मज़दूरों का भारी दमन हो रहा था, उनके हर तरह के कार्य को कुचल डाला गया था या कुचला जा रहा था, उस समय रूस के सम्पन्न परिवार से माईकल बैकुनिन को जो रूस के तोपख़ाने में एक बड़े अधिकारी थे, पोलैण्ड के विद्रोह से निबटने के लिए भेजा गया था। वहाँ विद्रोहियों को जिस प्रकार ज़ुल्म करके दबाया जा रहा था, उसे देखकर उनका मन एकदम बदल गया और वे युगान्तकारी बन बैठे। अन्त में उनके विचार अराजकतावाद की ओर झुक गये। उन्होंने सन् 1834 में नौकरी त्याग दी। उसके पश्चात बर्लिन और स्विट्ज़रलैण्ड के रास्ते पेरिस पहुँचे। उस समय आमतौर पर सरकारें इनके विचारों के कारण इनके विरुद्ध थीं। 1864 तक वह अपने विचार पुख़्ता करते रहे और मज़दूरों में प्रचार करते रहे।
भगतसिंह – अराजकतावाद: दो
सम्पत्ति बनाने का विचार मनुष्यों को लालची बना देता है। वह फिर पत्थर-दिल होता चला जाता है। दयालुता और मानवता उसके मन से मिट जाती है। सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए राजसत्ता की आवश्यकता होती है। इससे फिर लालच बढ़ता है और अन्त में परिणाम – पहले साम्राज्यवाद, फिर युद्ध होता है। ख़ून-ख़राबा और अन्य बहुत नुक़सान होता है। अगर सबकुछ संयुक्त हो जाये तो कोई लालच न रहे। मिल-जुलकर सभी काम करने लगें। चोरी, डाके की कोई चिन्ता न रहे। पुलिस, जेल, कचहरी, फ़ौज की ज़रूरत न रहे। और मोटे पेटवाले, हराम की खाने वाले भी काम करें। थोड़ा समय काम करके पैदावार अधिक होने लगे। सभी लोग आराम से पढ़-लिख भी सकें। अपनेआप शान्ति भी रहे, ख़ुशहाली भी बढ़े। अर्थात वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि संसार से अज्ञानता दूर करना बहुत आवश्यक है।
भगतसिंह – अराजकतावाद: एक
अराजकतावाद एक नया दर्शन है जिसके अनुसार एक नया समाज बनेगा। जनता का रहन-सहन या भ्रातृत्व ऐसा होगा जिसमें कि मनुष्य के बनाये नियम कोई अवरोध न पैदा कर सकेंगे। उनके अनुसार किसी भी शासन की ज़रूरत नहीं महसूस होती, क्योंकि प्रत्येक सरकार दमन पर टिकी होती है। इसलिए यह अनावश्यक है।
भगतसिह – स्वाधीनता के आन्दोलन में पंजाब का पहला उभार
ऐसा लगता है कि उस समय इस प्रान्त (पंजाब) के युवक इन भावनाओं से प्रभावित होकर ही स्वतन्त्रता संघर्ष में कूद पड़ते थे। तीन मास पहले जहाँ बिल्कुल ख़ामोशी थी, वहाँ अब स्वदेशी और स्वराज्य का आन्दोलन इतना बलशाली हो गया कि नौकरशाही घबरा उठी। उधर लायलपुर इत्यादि ज़िलों में नये कलोनी एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन चल रहा था। वहाँ किसानों की हमदर्दी में रेलवे के मज़दूरों ने भी हड़ताल की और उनकी सहायता के लिए धन भी एकत्रित किया जाने लगा।