भगतसिंह – अराजकतावाद: दो

सम्पत्ति बनाने का विचार मनुष्यों को लालची बना देता है। वह फिर पत्थर-दिल होता चला जाता है। दयालुता और मानवता उसके मन से मिट जाती है। सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए राजसत्ता की आवश्यकता होती है। इससे फिर लालच बढ़ता है और अन्त में परिणाम – पहले साम्राज्यवाद, फिर युद्ध होता है। ख़ून-ख़राबा और अन्य बहुत नुक़सान होता है। अगर सबकुछ संयुक्त हो जाये तो कोई लालच न रहे। मिल-जुलकर सभी काम करने लगें। चोरी, डाके की कोई चिन्ता न रहे। पुलिस, जेल, कचहरी, फ़ौज की ज़रूरत न रहे। और मोटे पेटवाले, हराम की खाने वाले भी काम करें। थोड़ा समय काम करके पैदावार अधिक होने लगे। सभी लोग आराम से पढ़-लिख भी सकें। अपनेआप शान्ति भी रहे, ख़ुशहाली भी बढ़े। अर्थात वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि संसार से अज्ञानता दूर करना बहुत आवश्यक है।

भगतसिंह – अराजकतावाद: एक

अराजकतावाद एक नया दर्शन है जिसके अनुसार एक नया समाज बनेगा। जनता का रहन-सहन या भ्रातृत्व ऐसा होगा जिसमें कि मनुष्य के बनाये नियम कोई अवरोध न पैदा कर सकेंगे। उनके अनुसार किसी भी शासन की ज़रूरत नहीं महसूस होती, क्योंकि प्रत्येक सरकार दमन पर टिकी होती है। इसलिए यह अनावश्यक है।

भगतसिह – स्वाधीनता के आन्दोलन में पंजाब का पहला उभार

ऐसा लगता है कि उस समय इस प्रान्त (पंजाब) के युवक इन भावनाओं से प्रभावित होकर ही स्वतन्त्रता संघर्ष में कूद पड़ते थे। तीन मास पहले जहाँ बिल्कुल ख़ामोशी थी, वहाँ अब स्वदेशी और स्वराज्य का आन्दोलन इतना बलशाली हो गया कि नौकरशाही घबरा उठी। उधर लायलपुर इत्यादि ज़िलों में नये कलोनी एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन चल रहा था। वहाँ किसानों की हमदर्दी में रेलवे के मज़दूरों ने भी हड़ताल की और उनकी सहायता के लिए धन भी एकत्रित किया जाने लगा।

भगतसिह – शहीद ख़ुशीराम!

लोग डर गये। कौन कहता था कि निहत्थों पर भी गोली चलायी जा सकती है। आम लोगों ने गिरते-पड़ते पीठ में ही गोलियाँ खायीं। लेकिन उनमें भी श्री ख़ुशीराम जी शहीद ने छाती पर गोलियाँ खा-खाकर क़दम आगे ही बढ़ाया और बहादुरी की लाजवाब मिसाल क़ायम कर दी।

भगतसिह – दिल्ली-केस के शहीद!

पिछली बार हमने दिल्ली-साज़िश का कुछ हाल भाई बालमुकुन्द जी के जीवन से दिया। भाई बालमुकुन्द जी, जैसाकि पिछली बार बताया गया था, गिरफ्तारी के समय महाराजा जोधपुर के लड़कों को पढ़ाते थे। एक दिन मोटर में राजकुमार के साथ बैठे सैर को जा रहे थे कि अंग्रेज़ अधिकारी उनके गिरफ्तारी के वारण्ट लेकर पहुँच गया।

भाई बालमुकुन्द जी

आपको फाँसी की सज़ा हुई। आपने बड़ी प्रसन्नता से सुनी। अपील ख़ारिज हो चुकने के बाद आपको 1915 में फाँसी पर लटका दिया गया। लोग बताते हैं कि आप बड़े चाव से दौड़े-दौड़े गये। फाँसी के तख़्ते पर चढ़ गये और अपने हाथों से ही फाँसी की रस्सी को गले में डाल लिया।

भगतसिह – दस मई का शुभ दिन

इस बात का ख़याल करके स्वतन्त्र व्यक्तियों को शर्म आयेगी कि वे लोग भी, जिनके बुज़ुर्ग इस जंग में लड़े थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी की बाज़ी पर सबकुछ लगा दिया था और जिन्हें इस पर गर्व होना चाहिए था, वे भी, इस जंग को आज़ादी की जंग कहने से डरते हैं। कारण यह कि अंग्रेज़ी अत्याचार ने उन्हें इस क़दर दबा दिया था कि वे सर छुपाकर ही दिन काटते थे। इसलिए उन बुज़ुर्गों की यादगार मनानी या स्थापित करनी तो दूर, उनका नाम लेना भी गुनाह समझा जाता था।

भगतसिह – श्री मदनलाल ढींगरा

ऐसे विचित्र विद्रोही जीव जो पूरे विश्व से टकरा जाते हैं और स्वयं को जलती आग में झोक देते हैं, अपना ऐशो-आराम सब भूल जाते हैं और दुनिया की सुन्दरता, शृंगार में कुछ वृद्धि कर देते हैं और उनके बलिदानों से ही विश्व में कुछ प्रगति होती है। ऐसे ही वीर हर देश में हर समय होते हैं। हिन्दुस्तान में भी यही पूजनीय देवते जन्म लेते रहे हैं, ले रहे हैं और लेते रहेंगे। हिन्दुस्तान में से भी पंजाब ने ऐसे रत्न अधिक दिये हैं, बीसवीं शती के ऐसे ही सबसे पहले शहीद श्री मदनलाल जी ढींगरा हैं।

भगतसिह – चित्र-परिचय

एक तो इटली के नवयुवकों का – प्रत्येक बालक मुसोलिनी बनने का प्रयत्न कर रहा है। भारत में भी चार दिन के लिए स्काउट दल, महावीर दल और स्वयं-सेवक दल बने थे, अखाड़े स्थापित हुए थे परन्तु वह सब दूध का उफान रहा। नेताओं को चाहिए कि कौंसिलों में स्पीचें झाड़ने की अपेक्षा इन भावी नेताओं को कुछ बनायें।

भगतसिह – सम्पादक ‘महारथी’ के नाम पत्र

चित्रों के बग़ैर इन लेखों की महानता कम हो जाती है। बाक़ी, लेख जो जल्दी ही आपकी सेवा में भेजूँगा, सचित्र ही छपने चाहिए। बहुतों के तो ब्लॉक बने हुए ही मिल सकेंगे। उनका डाक ख़र्च व कुछ माया ही देनी होगी। यदि आप उचित समझो तो लिखें, मैं प्रबन्ध करवा दूँगा।