नौजवान भारत सभा के सदस्य बनो! भगतसिंह के सपनों को साकार करो !!

नौजवान भारत सभा के सदस्य बनो! भगतसिंह के सपनों को साकार करो !!
उठो जवानों आगे आओ ! शोषण मुक्त समाज बनाओ !!

साथियो,

नौजवान भारत सभा का नाम अपने आप में एक महान क्रान्तिकारी विरासत को पुनर्जागृत करने और आगे बढ़ाने के संकल्प का प्रतीक है। महान युवा विचारक, क्रान्तिकारी भगतसिंह ने ब्रिटिश गुलामी के खिलाफ संघर्ष के लिये अपने साथियों के साथ मिलकर जब एक नयी शुरुआत की तो उनका पहला महत्वपूर्ण कदम था-1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना। इसके दो वर्षों बाद भगतसिंह और उनके साथियों ने एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) नामक नए क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की और स्पष्ट शब्दों में घोषणा की -कि केवल अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ फेंकना ही हमारा मकसद नहीं है। केवल अंग्रेजों के चले जाने से आम जनता की समस्यायें खत्म नहीं होंगीं। आम जनता की समस्याएं तभी खत्म हो सकती हैं जब देशी मुनाफाखोरों को भी उखाड़ फेंका जाय और एक ऐसी समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय जिसमें एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का शोषण असम्भव बना दिया जाय। कांग्रेस के बारे में भगतसिंह ने उसी समय कहा था कि कांग्रेस देशी मुनाफाखोरों की पार्टी है जो विदेशी लुटेरों से सौदेबाजी करके अपने लिए सत्ता हासिल करना चाहती है। उन्होंने आजादी की परिभाषा 90 प्रतिशत लोगों की आजादी के रूप में, देशी-विदेशी हर किस्म की पूँजी द्वारा जनता के शोषण के खात्मे के रूप में की थी और एक समानतापूर्ण सामाजिक ढाँचे के निर्माण को क्रांति का लक्ष्य बताया था।

लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि जनता के आंसुओं के सागर में मुट्ठी भर धनिकों के विलासिता की मीनारें खड़ी हैं। कहने को तो यह लोकतन्त्र है यानी जनता का राज, परन्तु इस लोकतन्त्र का एक-2 खम्भा जनता के सीने में बेदर्दी से धँसा हुआ है। संसद-विधानसभा की कार्यवाही में अरबों रुपये सालाना खर्च होते हैं। परन्तु नेता-मन्त्री वहाँ एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं, कुर्सियाँ तोड़ते हैं और जनता के खिलाफ नीतियाँ बनाते हैं। चुनाव की प्रक्रिया इतनी खर्चीली है कि आम आदमी चुनाव लड़ने के बारे में सोच तक नहीं सकता। सांसद-विधायक से लेकर ग्राम प्रधान तक के चुनाव में धनबलियों-बाहुबलियों का बोलबाला रहता है। चुनाव जाति-धर्म का समीकरण बैठाकर, साम्प्रदायिक दंगे भड़काकर, झूठे वायदे करके, बूथ कब्जा करके लड़े और जीते जाते हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति और धनकुबेर अपनी तिजोरी उन पार्टियों के लिए खोल देते हैं जो उनके हितों में काम करने में सबसे अधिक समर्थ हों। इसीलिए चुनाव में चाहे जो पार्टी जीते जनता की जीवन स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता के लिए चुनाव का केवल यही मतलब है कि वो साँपनाथ से डसी जायेगी या फिर नागनाथ से। अंग्रेजों ने भारतीय जनता को लूटने के लिए जिन नियम-कानूनों, शासन-प्रशासन की मशीनरी का इस्तेमाल किया था, उन सबको न केवल ज्यों का त्यों अपना लिया गया बल्कि जनान्दोलनों एवं सच्चे जनप्रतिनिधियों के निर्मम दमन के लिए ऐसे नये-2 कुख्यात काले कानूनों जैसे-टाडा, पोटा, मकोका, यूएपीए आदि का निर्माण किया है, जिसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलेगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की सच्चाई यह है कि एक आम आदमी बिना पैसे और सिफारिश के थाने में प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) तक दर्ज नहीं करा सकता। लोअर कोर्ट में नियम है-जिसका पैसा, उसको न्याय और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में पैसे के अभाव में एक सामान्य आदमी कोर्ट की देहरी तक नहीं लाँघ पाता। पूरे देश में श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाकर खेतों-कारखानों के मेहनतकशों की मेहनत लूटी जा रही है। उद्योगपति-नेताओं और लेबर अधिकारियों की मिलीभगत के चलते श्रम कानून अमल में आ ही नहीं पाते। अब श्रम कानूनों में सुधार के बहाने रहे सहे श्रम कानूनों को ही ख़त्म किया जा रंहा है ताकि उद्येागपतियों को मेहनतकशों की मेहनत लूटने में कोई कानूनी अड़चन न आये। बाकी मेहनतकशों के आन्दोलन को कुचलने के लिए सत्ता का डंडा हमेशा तैयार रहता है। खाने-पीने, ऐशो-आराम से लेकर सारी चीज़ों को पैदा करने वाले करोड़ों मेहनतकश जानवरों की तरह हड्डी तोड़ मेहनत करने के बावजूद किसी तरह पेट भर पाते हैं। मेहनतकश आबादी अपना काम कुछ दिनों के लिए रोक दे तो हर चीज़ ठप्प हो जायेगी। परन्तु इन मेहनतकशों को किसी तरह की सुरक्षा हासिल नहीं है।

  लोकतन्त्र का चौथा खम्भा यानि मीडिया पूरी तरह से बड़े-2 धनकुबरों के नियन्त्रण में है। लोग अपने हालात पर न सोच सकें इसके लिए निर्मम-निरंकुश लोभ-लाभवादी, ‘खाओ-पीओ मौज करो’ की संस्कृति के ड्रग्स की विषैली खुराकें देकर पूरे समाज के दिल-ओ-दिमाग को कुन्द किया जा रहा है। तमाम झूठे विज्ञापन, अश्लील फिल्म-गाने-कार्यक्रम, भ्रष्ट नेताओं की छवि चमकाने, संवेदनशील मामलों को सनसनीखेज बनाने या ऐसा बनाकर पेश करने में, जिससे कि लोगों में विद्वेष बढ़े, मीडिया चैबीस घण्टों लगी रहती है। जनता के दुःख-दर्द को ‘विकास’, ‘नेताओं की उपलब्धियों’, ‘अच्छे दिन’ के भ्रामक प्रचार के नीचे ढंक दिया जाता है।

  अंग्रेजों से आजादी मिलने के 69 सालों बाद भी स्थिति ये है कि देश के करोड़ों लोग महँगाई, बेरोजगारी, छंटनी, तालाबन्दी, लूट और भ्रष्टाचार की मार झेल रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ हासिल कर पाना जनता के लिए और दूभर हो गया है। देश की ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल परिसम्पत्ति का 85 प्रतिशत इकट्ठा हो गया है जबकि नीचे की 60 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 2 प्रतिशत है। सबसे ऊपर के 22 पूँजीपति घरानों की परिसम्पत्तियों में दूने-चैगुने नहीं बल्कि 1000 गुने से भी अधिक की वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन हजारों बच्चे भूख व कुपोषण से मर जाते हैं जबकि सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता है। 84 करोड़ से भी अधिक लोग एक दिन में 20 रूपये से ज़्यादा खर्च नहीं कर पाते। करीब 36 करोड़ लोग झुग्गियों-फुटपाथों पर रहने के लिए मजबूर हैं। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही खाने-पीने के सामान पर सब्सिडी में 1000 करोड़ रूपये और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के बजट में करीब 6000 करोड़ रूपये की कटौती कर दी है। इससे सरकारी अस्पतालों में दवा ईलाज पहले से दुगना मँहगा मिलेगा। जबकि वहीं दूसरी ओर देशी-विदेशी कम्पनियों का 1 लाख 14 हजार करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया गया। जनता का पैसा अमीरों पर लुटाया जा रहा है। देशभक्ति का शोर मचाने वाले विदेशी पूँजी को न्यौत रहे हैं ताकि उनके साथ मिलकर देश के सस्ते श्रम और प्राकृतिक सम्पदा का अच्छी तरह दोहन किया जा सके। अप्रत्यक्ष कर बढ़ा दिये गये हैं । इससे मँहगाई तेजी से बढ़ी है। आम जनता की थाली से दाल-सब्जी तक गायब होती जा रही है।

  कहा जाता है कि नौजवान किसी देश का भविष्य होते हैं। लेकिन हमारे देश में लगभग 30 करोड़ नौजवान बेरोजगारी की हालत में धक्के खा रहे हैं। पूँजीवाद के इस बर्बर मानवद्रोही दौर में व्यापक आम नौजवान आबादी के सामने जो सबसे ज्वलन्त और फौरी सवाल ला खड़े किये हैं, वे हैं-लगातार मंहगी और पहुँच से दूर होती शिक्षा तथा रोजगार के अवसरों में लगातार कमी। इस व्यवस्था के अंतर्गत यह चीजें और बढेंगी। क्योंकि सरकार सारे सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेंचती जा रही है और शिक्षा को देशी-विदेशी लुटेरों के हाथ सौंपती जा रही है। सरकारी लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट से चलें तो 2015 की दो तिमाहियों में 0.43 लाख और 0.20 लाख रोजगार कम हो गए। सरकार और भाड़े के बुद्धिजीवी यह बताते हैं कि बेरोजगारी का कारण जनसंख्या है। लेकिन यह एक सफेद झूठ है क्योंकि गाँवों-शहरों में शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन आदि क्षेत्र ही ले लिए जायं तो विकास के असंख्य कार्य बचे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की हमारे देश में कोई कमी नहीं है। रूपया देश के अमीरजादों के तकियों, बोरों, गद्दों के आलावा विदेशी बैंकों में ठूंसा पड़ा है। अगर इन सब का सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो न केवल आम जनता की सुविधाएँ बढेंगी बल्कि बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान संभव है। लेकिन बेरोजगारी देश के धनपशुओं के लिए फायदेमन्द है क्योंकि इससे उन्हंे सस्ते से सस्ते दरों पर श्रमशक्ति निचोड़ने का मौका मिलता है। यही स्थिति शिक्षा की भी है। उच्च शिक्षा की हालत पहले से ही खस्ता थी। अबकी बार यूजीसी के बजट में 55 प्रतिशत की कटौती करने से उच्च शिक्षा का कबाड़ा होना तय है। घटती सीटों और बढ़ती फीसों का आम चलन गरीब और औसत मध्यवर्गीय युवाओं को उच्च शिक्षा के कैम्पसों से बाहर धकेल देता है। जिस शिक्षा से रोजगार की गुंजाइश होती है, वह मुट्ठीभर धनिकों की औलादों की बपौती हो गयी है।

  इन वजहों से आज आम नौजवानों में बहुत पस्तहिम्मती और निराशा है। कोई भी नौजवान अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं है। निराशा व अवसाद में बहुत सारे नौजवान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। बहुत सारे नौजवान नशा व अपराध की गिरफ्त में फँस रहे हैं। पूरी स्थितियों की सही समझदारी न होने के चलते बहुत सारे नौजवानों को तमाम चुनावी पार्टियाँ धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय झगड़ों में उलझा रही हैं और उनकों असली मुद्दों से भटका रही हैं।

  अब इस देश के नौजवानों के सामने खड़ा है एक जलता हुआ प्रश्नचिन्ह-शासक वर्ग के छलावों, भ्रमों-भटकावों, कुछ प्रारम्भिक प्रयासों की तात्कालिक विफलता से घबरा जाने या मायूस हो जाने की प्रवृत्ति तथा व्यक्तिवाद और स्वार्थपरता की प्रवृत्तियों से मुक्त होकर कब हम भगतसिंह के आह्वान पर ध्यान देंगे? गतिरोध में फँसा इतिहास गर्म युवा रक्त के ईंधन से ही फिर गतिमान हो सकता है। आम जनता के विचारसम्पन्न, साहसी और हर कुर्बानी के लिए तैयार बेटे-बेटियों का आगे आना होगा और क्रान्ति का सन्देश कश्मीर से कन्याकुमारी तक, असम से कच्छ की खाड़ी तक-घर-घर तक और जन-जन तक पहुँचाना होगा। उन्हें न सिर्फ एकजुट होकर अपने हर न्यायसंगत अधिकार के लिए लड़ना होगा, बल्कि समाज में जारी न्याय और अधिकार के हर संघर्ष में शामिल होना होगा। अपनी हड्डियाँ गलाकर और रसातल के अँधेरे नर्क में जीते हुए समाज की बुनियाद का निर्माण करने वाले मेहनतकशों की उन्हें न सिर्फ सेवा करनी होगी, बल्कि उनके जीवन और संघर्षां के साथ घुल-मिल जाना होगा।

  ‘नौजवान भारत सभाका गठन इसी मकसद से किया गया है कि वह देश भर के युवाओं को संगठित करे और एक नई क्रान्ति की तैयारी करे। नौभास उन सभी नौजवानों को अपने साथ जोड़ेगी जो जातिवाद और धार्मिक कट्टरता से मुक्त हैं, जो किसी भ्रष्ट चुनावी पार्टी का झण्डा नहीं ढोते, जो स्त्रियों को पैर की जूती या उपभोग की वस्तु नहीं मानते बल्कि उन्हें अपने बराबर का इंसान मानते हैं। नौजवान भारत सभा का सर्वप्रमुख नारा है-सबके लिए समान शिक्षा और सबको रोजगार। सरकार जब तक हर काम करने वाले योग्य व्यक्ति को काम न दे सके, नौभास की यह माँग होगी कि तब तक भरण-पोषण योग्य बेराजगारी भत्ता तो अवश्य ही दे। नौजवान भारत सभा चिकित्सा, पानी, बिजली आदि जनवादी अधिकारों के लिए लोगों को जागरूक करेगी और उनको हासिल करने के लिए संघर्ष में उतरेगी। नौजवान भारत सभा जनसहयोग के दम पर पुस्तकालयों, अध्ययन-मण्डलों, प्रचार अभियानों, पर्चों, पत्रिकाओं-पुस्तकों आदि के माध्यम से नौजवानों के बीच एक नये क्रान्तिकारी प्रबोधन की मुहिम पैदा करेगी, और उन्हें वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि और इतिहास-बोध से लैस करेगी। नौभास शराबखोरी, दहेजप्रथा, जाति-पाँति, छुआछूत और सभी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्यापक प्रचार अभियान चलायेगी। लेकिन इतने से ही सब नहीं हो जायेगा। नौजवान भारत सभा इन सब संघर्षों और कार्यों को वर्तमान मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंक एक समता मूलक व्यवस्था की स्थापना की कड़ी में तब्दील करेगी। यही हमारे शहीदों का सपना भी था।

 साथियो, अब थोड़ा भी इंतजार हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत घातक होगा। आज़ादी के जिस पौधे को भगतसिंह जैसे महान शहीदों ने अपने रक्त से सींचा था वो मुरझा रहा है। इन शहीदों का सपना हमारी आँखों में झांक रहा है। आइये इन शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण के संघर्ष में प्राण-प्रण से जुट जांय। भगतसिंह के ही शब्दों में हम देश के नौजवानों का आह्वान करते हैं – भारतीय रिपब्लिकन के नौजवानो, नहीं सिपाहियों, कतारबद्ध हो जाओ। आराम के साथ न खड़े रहो और न ही निरर्थक कदमताल किये जाओ। लम्बी दरिद्रता को, जो तुम्हें नकारा बना रही है, सदा के लिए उतार फेंको। तुम्हारा बहुत ही नेक मिशन है। देश के हर कोने और हर दिशा में बिखर जाओ और भावी क्रान्ति के लिए, जिसका आना निश्चित है, लोगों को तैयार करो। फर्ज़ के बिगुल की आवाज़ सुनो। वैसे ही खाली ज़िन्दगी न गँवाओ। बढ़ो, तुम्हारी ज़िन्दगी का हर पल इस तरह के तरीके और तरतीब ढूँढ़ने में लगना चाहिए, कि कैसे अपनी पुरातन धरती की आँखों में ज्वाला जागे और एक लम्बी अँगड़ाई लेकर वह जाग उठे।

भगतसिंह और उनके साथियों के लिखे लेख से कुछ उद्धरण…

  • हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह युद्ध तब तक चलता रहेगा, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर एकाधिकार जमाये रहंेगे।…यदि शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों द्वारा ही निर्धनों का ख़ून चूसा जा रहा हो तब भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता।

फाँसी के तीन दिन पहले पंजाब के गवर्नर को लिखे गये पत्र से

  • लोगों को आपस में लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की ज़रूरत होती है। ग़रीब मेहनतकश व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल व राष्ट्रीयता के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथ में लेने का यत्न करो। इन यत्नों में तुम्हारा कुछ नुकसान नहीं होगा, इनसे किसी दिन तुमहारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।       साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाजलेख से
  • उठो, और वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-2 होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आन्दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो। तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो, सोये हुए शेरों! उठो, और बगावत खड़ी कर दो।

-‘अछूत समस्यालेख से

  • नौजवानों से हम ये नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठायें।… नौजवानों को क्रान्ति का सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में इस क्रान्ति की अलख जगानी है जिससे आज़ादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भ्सव हो जायेगा।
  • कानून की पवित्रता तभी तक रखी जा सकती है जब तक वह जनता के दिल यानि भावनाओं को प्रकट करता है। जब यह शोषणकारी समूह के हाथों में एक पुर्जा बन जाता है तब वह अपनी पवित्रता खो बैठता है।

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नौजवान भारत सभा

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One Thought to “नौजवान भारत सभा के सदस्य बनो! भगतसिंह के सपनों को साकार करो !!”

  1. डॉ रोबिन कुमार, विद्या-वाचस्पति

    शुभ कामना पवित्र कार्य के लिए

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