पिता के नाम भगतसिंह का पत्र

पिता के नाम भगतसिंह का पत्र

यह पत्र भगतसिंह ने असेम्बली हॉल में बम फेंकने के बाद दिल्ली जेल से अपने पिता जी को लिखा था। – स.

दिल्ली जेल, 26 अप्रैल, 1929

पूज्य पिता जी,

अर्ज़ यह है कि हम लोग 22 अप्रैल को पुलिस की हवालात में दिल्ली जेल में तब्दील कर दिये गये हैं। लगभग एक महीने में सारा नाटक समाप्त हो जायेगा। ज़्यादा चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं। मुझे पता चला था कि आप यहाँ आये थे और किसी वकील आदि से बातचीत की थी, लेकिन कोई इन्तज़ाम न हो सका। परसों मुझे कपड़े मिल गये थे। जिस दिन आप आयेंगे अब मुलाक़ात हो जायेगी। वकील आदि की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है। हाँ, एक-दो नुक्तों पर थोड़ा-सा मशवरा लेना चाहता हूँ, लेकिन वे कोई ख़ास महत्त्व नहीं रखते। आप बिना वजह ज़्यादा कष्ट न करें। अगर आप मिलने आयें तो अकेले ही आना। बेबे जी (माँ) को साथ न लाना। ख़ामख़ाह में वे रो पड़ेंगी और मुझे भी कुछ तकलीफ़ ज़रूर होगी। घर के सब हालात आपसे मुलाक़ात पर मालूम हो जायेंगे। हाँ, अगर सम्भव हो तो ‘गीता रहस्य’, ‘नेपोलियन की जीवनगाथा’ जो आपको मेरी किताबों में से मिल जायेंगी और अंग्रेज़ी के कुछ अच्छे उपन्यास लेते आना। बेबे जी (माँ), मामी जी, माता जी और चाची जी को चरणस्पर्श। कुलबीर सिंह, कुलतार सिंह को नमस्ते। बापू जी को चरणस्पर्श। इस समय पुलिस हवालात और जेल में हमसे बहुत अच्छा व्यवहार हो रहा है। आप किसी क़िस्म की फ़िक्र न करना। मुझे आपका पता नहीं मालूम, इसलिए इस पते पर लिख रहा हूँ।

आपका आज्ञाकारी,

भगतसिंह


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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