सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र

सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र

मार्च, 1929 में पब्लिक सेफ्टी बिल को असेम्बली में भारतीय सदस्यों द्वारा रद्द करने पर दोबारा लाया गया। यद्यपि बिल मतगणना से पास नहीं हो सकता था, तो भी वायसराय उसे आर्डिनेंस द्वारा लागू करना चाहते थे। राष्ट्रीय नेता एक बार फिर ब्रिटिश सरकार की ताक़त के सामने लाचारी और अप्रभावी होने की स्थिति पेश कर रहे थे। ऐसे समय पर भगतसिह ने सुझाव दिया कि असेम्बली हॉल में बम का धमाका किया जाये और क्रान्तिकारी पार्टी के विचारों से जनता को शिक्षित किया जाये। इसके लिए दो साथियों – शिव वर्मा और जयदेव कपूर को चुना गया। सुखदेव उस मीटिग में नहीं थे। जब उन्हें इस फ़ैसले की जानकारी हुई तो उन्होंने भगतसिह से कुछ ऐसे सवाल किये कि पार्टी की मीटिग दोबारा बुलायी गयी। इस मीटिग में भगतसिह और बटुकेश्वर दत्त को असेम्बली हॉल में बम का धमाका करने के लिए चुना गया। 8 अप्रैल, 1929 को हॉल में बम का धमाका किया गया।

सुखदेव और भगतसिह में काफ़ी घनिष्ठता थी और बमकाण्ड में जाने वाले व्यक्ति को लेकर दोनों में कुछ ग़लतफ़हमी भी हुई। उसी ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए भगतसिह ने सुखदेव को एक पत्र लिखा। नीचे उद्धृत यह पत्र 11 अप्रैल, 1929 को सुखदेव की गिरफ्तारी के समय उनसे बरामद हुआ और मुक़दमे की कार्रवाई का हिस्सा बन गया। – स.

प्रिय भाई,

जब तक तुम्हें यह ख़त मिलेगा, मैं दूर मंज़िल की ओर जा चुका होऊँगा। मेरा यक़ीन कर, आजकल मैं बहुत प्रसन्नचित्त अपने आखि़री सफ़र के लिए तैयार हूँ। अपनी ज़िन्दगी की सारी ख़ुशियों और मधुर यादों के बावजूद मेरे दिल में एक बात आज तक चुभती रही। वह यह कि मुझे भाई ने ग़लत समझा और मुझ पर कमज़ोरी का बहुत ही गम्भीर आरोप लगाया। आज मैं पहले से कहीं ज़्यादा पूरी तरह से सन्तुष्ट हूँ। मैं आज भी महसूस करता हूँ कि वह बात कुछ भी नहीं, बस ग़लतफ़हमी थी। ग़लत शक था। मेरे खुले व्यवहार के कारण मुझे बातूनी समझा गया और मेरे द्वारा सबकुछ स्वीकार कर लेने को कमज़ोरी माना गया। लेकिन आज मैं महसूस कर रहा हूँ कि कोई ग़लतफ़हमी नहीं, मैं कमज़ोर नहीं, अपनों में से किसी से भी कमज़ोर नहीं।

letter to sukhdevभाई मेरे, मैं साफ़ दिल से विदा लूँगा और तुम्हारी शंका भी दूर करूँगा। इसमें तुम्हारी बहुत कृपालुता होगी। ध्यान रहे, तुम्हें जल्दबाज़ी से कोई क़दम नहीं उठाना चाहिए। सोच-समझकर और शान्ति से काम को आगे बढ़ाना। अवसर पा लेने की जल्दबाज़ी न करना। जनता के प्रति जो तुम्हारा फ़र्ज़ है उसे निभाते हुए काम को सावधानीपूर्वक करते रहना। सलाह के तौर पर मैं कहना चाहता हूँ कि शास्त्री मुझे पहले से अधिक अच्छा लग रहा है। मैं उसे सामने लाने की कोशिश करता, बशर्ते कि वह साफ़गोई से अपनेआप को एक अँधेरे भविष्य के लिए अर्पित करने के लिए सहमत हो। उसे साथियों के नज़दीक आने दो ताकि वह उनके आचार-विचार का अध्ययन कर सके। यदि वह अर्पित भाव से काम करेगा तो काफ़ी लाभदायक और मूल्यवान सिद्ध होगा। लेकिन जल्दबाज़ी न करना। तुम स्वयं अच्छे पारखी हो। जिस तरह जँचे, देख लेना। आ मेरे भाई, अब हम ख़ुशियाँ मना लें।

ख़ैर, मैं कह सकता हूँ कि बहस के मामले में मुझसे अपने पक्ष पेश किये बिना नहीं रहा जाता। मैं पुरज़ोर कहता हूँ कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर जीवन की समस्त रंगीनियों से ओतप्रोत हूँ, लेकिन वक़्त आने पर मैं सबकुछ क़ुर्बान कर दूँगा। सही अर्थों में यही बलिदान है। ये वस्तुएँ मनुष्य की राह में कभी भी अवरोध नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह इन्सान हो। जल्द ही तुम्हें इसका प्रमाण मिल जायेगा। किसी के चरित्र के सन्दर्भ में विचार करते समय एक बात विचारणीय होनी चाहिए कि क्या प्यार किसी इन्सान के लिए मददगार साबित हुआ है? इसका जवाब मैं आज देता हूँ – हाँ वह मेजिनी था, तुमने अवश्य पढ़ा होगा कि अपने पहले नाकाम विद्रोह, मन को कुचल डालने वाली हार का दुख और दिवंगत साथियों की याद – यह सब वह बरदाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या ख़ुदकशी कर लेता। लेकिन प्रेमिका के एक पत्र से वह दूसरों जितना ही नहीं, बल्कि सबसे अधिक मज़बूत हो गया।

जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बन्ध है, मैं यह कह सकता हूँ कि यह अपने में एक भावना से अधिक कुछ भी नहीं और यह पशुवृत्ति नहीं बल्कि मधुर मानवीय भावना है। प्यार सदैव मानव चरित्र को ऊँचा करता है, कभी भी नीचा नहीं दिखाता बशर्ते कि प्यार प्यार हो। इन लड़कियों (प्रेमिकाओं) को कभी भी पागल नहीं कहा जा सकता है जैसाकि हम फ़िल्मों में देखते हैं – वे सदैव पाशविक वृत्ति के हाथों में खेलती हैं। सच्चा प्यार कभी भी सृजित नहीं किया जा सकता। यह अपने ही आप आता है – कब, कोई कह नहीं सकता?

मैं यह कह सकता हूँ कि नौजवान युवक-युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं। अपनी पवित्रता क़ायम रखे रह सकते हैं। मैं यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जब मैंने प्यार को मानवीय कमज़ोरी कहा था तो यह किसी सामान्य व्यक्ति को लेकर नहीं कहा था, जहाँ तक कि बौद्धिक स्तर पर सामान्य व्यक्ति होते हैं पर वह सबसे उच्च आदर्श स्थिति होगी जब मनुष्य प्यार, घृणा और अन्य सभी भावनाओं पर नियन्त्रण पा लेगा। जब मनुष्य कर्म के आधार पर अपना पक्ष अपनायेगा। एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से प्यार की मैंने निन्दा की है, वह भी एक आदर्श स्थिति होने पर। मनुष्य के पास प्यार की एक गहरी भावना होनी चाहिए जिसे वह एक व्यक्ति विशेष तक सीमित न करके सर्वव्यापी बना दे।

मेरे विचार से मैंने अपने पक्ष को काफ़ी स्पष्ट कर दिया है। हाँ, एक बात मैं तुम्हें ख़ासतौर पर बताना चाहता हूँ कि बावजूद क्रान्तिकारी विचारों के हम नैतिकता सम्बन्धी सभी सामाजिक धारणाओं को नहीं अपना सके। क्रान्तिकारी बातें करके इस कमज़ोरी को बहुत सरलता से छिपाया जा सकता है, लेकिन वास्तविक जीवन में हम तुरन्त ही थर-थर काँपना शुरू कर देते हैं।

मैं तुमसे अर्ज़ करूँगा कि यह कमज़ोरी त्याग दो। अपने मन में बिना कोई ग़लत भावना लाये अत्यन्त नम्रतापूर्वक क्या मैं तुमसे आग्रह कर सकता हूँ कि तुममें जो अति आदर्शवाद है उसे थोड़ा-सा कम कर दो। जो पीछे रहेंगे और मेरी जैसी बीमारी का शिकार होंगे, उनसे बेरुख़ी का व्यवहार न करना, झिड़ककर उनके दुख-दर्दों को न बढ़ाना, क्योंकि उनको तुम्हारी हमदर्दी की ज़रूरत है। क्या मैं यह आशा रखूँ कि तुम किसी विशेष व्यक्ति के प्रति खुन्दक रखने के बजाय उनसे हमदर्दी रखोगे, उनको इसकी बहुत ज़रूरत है। तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक कि स्वयं इस चीज़ का शिकार न बनो। लेकिन मैं यह सबकुछ क्यों लिख रहा हूँ? दरअसल मैं अपनी बातें स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूँ। मैंने अपना दिल खोल दिया है।

तुम्हारी सफलताओं और जीवन के लिए शुभकामनाओं के साथ।

तुम्हारा,

भगतसिह


शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं। 


Bhagat-Singh-sampoorna-uplabhdha-dastavejये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।

व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्‍पर्क करें।

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