जातिअंत का रास्‍ता सुधारवाद, संविधानवाद नहीं बल्कि क्रांतिकारी वर्गीय एकजुटता है

जाति उन्‍मूलन अभियान
बिना क्रान्ति जाति उन्मूलन सम्भव नहीं
बिना जाति-विरोधी संघर्ष क्रान्ति सम्भव नहीं!
जातिअंत का रास्‍ता सुधारवाद, संविधानवाद नहीं बल्कि क्रांतिकारी वर्गीय एकजुटता है

साथियो,

जाति के आधार पर एक बड़ी आबादी की आर्थिक रूप से भयंकर लूट, समाज में हर जगह पल-पल उनके साथ भेदभाव, अन्‍तर्जातीय प्रेम पर हत्‍याएं, ये हमारे आज के समय की एक कड़वी सच्‍चाई है। हर इंसाफपसन्‍द व्‍यक्ति इस जाति व्‍यवस्‍था को खत्‍म होते देखना चाहता है और इसके लिए हर सम्‍भव प्रयास करता है और हर शासक वर्ग इस जाति व्‍यवस्‍था को बनाये रखने के पूरे प्रयास करता है। भारत में बाहर से जितने भी शासक आये, उन्‍होंने इस नायाब हथियार को ईर्ष्या से देखा और जनता को बांटकर रखने में भरपूर इस्‍तेमाल किया। चाहे वो मध्‍यकालीन मुगल शासक हों या फिर आधुनिक ब्रिटिश साम्राज्‍यवादी, या फिर आज के हमारे तथाकथित लोकतांत्रिक शासक, सबने अलग-अलग तरीके से जाति व्‍यवस्‍था को मजबूत किया।

इसी का परिणाम है कि आज भारत असंख्‍य जातियों में बंटा है। हर जाति के पास अपने से नीचे देखने के लिए एक जाति है। देश में जाति आधारित अनगिनत संगठन हैं। हर वक्‍त देश में दलितों के प्रति हिंसा जारी रहती है। राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हर दिन देश में तीन दलित महिलाओं के साथ बलात्‍कार होता है, हर दिन दो दलितों की हत्‍या होती है। उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में दलित छात्रों के प्रति होने वाला भेदभाव कितना है, ये इसी तथ्‍य से पता चलता है कि 2007 से उत्‍तर भारत व हैदराबाद के विश्‍वविद्यालयों में हुई 25 आत्‍महत्‍याओं में 23 दलित छात्रों की थी। आरक्षण की नीति से दलितों के बीच से एक छोटा मध्‍यम वर्ग व कुलीन तबका पैदा हुआ है  और इनमें से जो सत्‍ता का लाभकर्ता बन गया है वो स्‍वर्णवाद को उखाड़ फेंकने की बजाय ओर भी वफादारी से स्‍वर्ण सत्‍ता की हिफाजत करता है। अधिकांश जातीय अत्‍याचार गरीब दलितों के विरूद्ध होते हैं और अत्‍याचारी बिना किसी सजा या बहुत कम सजा पाकर छूट जाते हैं। लक्ष्‍मणपुर बाथे, खैरलांजी, चुंदुर, बथानी टोला, मिर्चपुर इन सब हत्‍याकाण्‍डों में बेहद गरीब दलित मारे गये और ज्‍यादातर हत्‍यारे “सबुतों के अभाव” में हमेशा की तरह छूट गये। हालांकि जातीय भेदभाव और अपमान खाती-पीती मध्‍यवर्गीय दलित आबादी को भी सहना पड़ता है पर भयंकर और बर्बर अपराध सिर्फ गरीब दलितों पर ही होते है। इस जातिगत अपमान के खिलाफ भी ये मध्‍यमवर्गीय तबका कोई रैडिकल संघर्ष नहीं करता बल्कि मात्र जुबानी जमाखर्च करता है। कोई भी रैडिकल संघर्ष खड़ा करने का माद्दा सिर्फ गरीब दलित आबादी में ही है।

आजादी के बाद सत्‍ता में आये भूरे अंग्रेजों ने जाति का इस्‍तेमाल हर बार जनअसंतोष को दबाने के लिए किया है। 90 के दशक में जब उदारीकरण और निजीकरण के माध्‍यम से देश की जनता से बहुत कुछ छिना जा रहा था तब मण्‍डल कमीशन की राजनीति के माध्‍यम से पूरे समाज की जातीय गोलबन्‍दी कर दी गयी थी। आज जब आर्थिक संकट चरम पर है और सरकारी नौकरियां लगभग खत्‍म हो रही हैं तब भी जाट, गुर्जर, मराठा, पटेल आदि को जाति के आधार पर एकजुट कर शासक वर्ग अपना दांव खेल रहा है। 29 मार्च को लोकसभा में कार्मिक मंत्री जितेन्‍द्र सिंह ने बताया कि 2013 के मुकाबले 2015 में 89 प्रतिशत सरकारी भर्ती बन्‍द हो गयी है। 2013 में जहां 1,51,841 सीधी भर्तियां हुई वहीं 2015 में मात्र 15,877। स्‍पष्‍ट है कि आरक्षण की जो लडा़ई जाट, गुर्जर, मराठा, पटेल आदि आबादी लड़ रही है उससे फायदा सिर्फ शासकों का ही है।

जाति उन्‍मूलन की पूरी परियोजना इन्‍हीं परिस्थितियों को ध्‍यान में रखकर बनायी जा सकती है। जाति आधारित संगठन बनाकर, बहुजन एकता का खोखला नारा देकर या फिर संविधान के रास्‍ते कुछ कानून बनाकर जाति का अंत नहीं किया जा सकता। हर जाति में आज एक छोटी सी आबादी ऐसी है जो संसाधनों पर कब्‍जा किये हुए है। उदाहरण के लिए, महाराष्‍ट्र में जो मराठा आबादी आरक्षण के लिए लड़ रही थी, उसमें से सिर्फ 200 मराठा परिवारों के पास राज्‍य के अधिकांश संसाधन है। गरीब मराठाओं को अपने खेतों, कारखानों में लूटने का काम भी यही आबादी करती है। इसलिए सभी जातियों के गरीबों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है। निश्चित रूप से ये रास्‍ता आसान नहीं है। अगर आसान होता तो अब तक सभी जातियों के गरीब अपने आप ही एकजुट हो जाते और तब जाति व्‍यवस्‍था खत्‍म हो जाती। हजारों सालों से भारत में जाति व्‍यवस्‍था है और ऐसे में थोड़े से प्रचार से गरीब साथ नहीं आ जायेंगे पर ये भी सच है कि इसके अलावा ओर कोई रास्‍ता नहीं है।

सभी मेहनतकश दलित भाइयों और बहनों को शहीदे-आज़म भगतसिंह के ये शब्द याद रखने होंगे, “उठो, अपनी शक्ति पहचानो! संगठनबद्ध हो जाओ! असल में स्वयं कोशिश किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा। स्वतन्त्रता के लिए स्वाधीनता चाहने वालों को यत्न करना चाहिए—कहावत है, ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’ अर्थात् संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना, कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इंकार करने की जुर्रत नहीं कर सकेगा। तुम दूसरों की खुराक न बनो। दूसरों के मुँह की ओर मत ताको। लेकिन ध्यान रहे, नौकरशाही के झाँसे में मत फँसना। यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्हें अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूँजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गरीबी और गुलामी का असली कारण है। इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना। उसकी चालों से बचना—तुम असली सर्वहारा हो। संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्हारी कुछ भी हानि न होगी। बस गुलामी की ज़ंजीरें कर जाएँगी। उठो, और वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बग़ावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आन्दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो और राजनीतिक व आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो। सोए हुए शेरो! उठो और ब़गावत खड़ी कर दो!” (‘अछूत समस्या’, भगतसिंह) शहीदे-आज़म के ये शब्द मानो आज के लिए ही लिखे गये हों। आज इसी कार्यदिशा को समझने की ज़रूरत है।

सभी मज़दूर भाइयों और बहनों को भी ये याद रखना होगा कि अगर तुम दलित मेहनतकश साथियों को गुलाम समझोगे तो तुम स्वयं भी पूँजी की गुलामी करते रहने के लिए अभिशप्त होगे! शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि मज़दूर क्रान्ति और मज़दूर सत्ता के लिए मज़दूरों की वर्ग एकजुटता पहली शर्त है। यह वर्ग एकजुटता तभी कायम हो सकती है, जब हम जात-पाँत के विचारों को हमेशा के लिए दफ्ना दें!

गरीब आबादी में जो जातिगत संस्‍कार और जातिगत पूर्वाग्रह व्‍याप्‍त हैं, उनके खिलाफ भी क्रांतिकारी आन्‍दोलन को निर्मम लड़ाई लड़नी पड़ेगी लेकिन ऐसी कोई भी लडा़ई संघर्षों के दौरान ही खड़ी की जा सकती है। उन मुद्दों पर हमें एकसाथ संघर्ष के लिए उतरना ही पड़ेगा जो हर जाति के गरीब के मुद्दे हैं। जब हर जाति के गरीब साझा संघर्षों में साथ उतरेंगे, उसी प्रक्रिया में जातिगत पूर्वाग्रह और जातिगत भेदभाव के संस्‍कारों का वर्चस्‍ववाद तोड़ने की शुरूआत की जा सकती है।

हम एक शुरुआत कर रहे हैं साथियो! हमें आपके साथ और सहयोग की ज़रूरत है। आइये दोस्तो! इस जाति-विरोधी जनमुहिम का हिस्सा बनें! यह हम सब की मुहिम है। यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है।

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!

जाति उन्मूलन का रास्ता-इंक़लाब का रास्ता!

ब्राह्मणवाद का नाश हो! जातिवाद का नाश हो!

  • अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच
  • नौजवान भारत सभा
  • बिगुल मज़दूर दस्ता
  • यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फ़ॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी (यूसीडीई)

मुम्बई सम्पर्क : शहीद भगतसिंह पुस्तकालय, रूम न-103, बिल्डिंग 61 ए, लल्लूभाई कम्पाउण्ड, मानखुर्द (पश्चिम), मुम्बई
फोन न. – 9619039793, 9819672801

अहमदनगर संपर्क  : शहीद भगतसिंह पुस्तकालय, सिद्धार्थनगर, गुगळे क्लिनिकच्या पाठीमागे, अहमदनगर
सम्पर्क : 9156824706, 8888350333, 7058197729, 9156323976

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