बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज (उ.प्र.) में 60 से अधिक बच्चों की सरकारी हत्या
आम मेहनतकश आबादी के स्वास्थ्य का पंचनामा और मोदी-योगी की जुमलेबाजी का नंगा सच
जब लोग स्वतंत्रता की इकहत्तरवीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहे थे व साथ में आ रही छुट्टियों की योजना बना रहे थे तब गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) के ‘बाबा राघवदास मेडीकल कॉलेज’ (बीआरडी मेडिकल कॉलेज) में कुछ मां-बाप अपने मासुमों को अपनी आंखों के सामने तड़पकर मरते हुए देख रहे थे। आजाद भारत में मेहनतकश जनता के हिस्से में क्या आया है, इसकी एक बार फिर याद दिलाने वाली ये एक प्रतीक घटना है।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इन्सेफेलाइटिस के 400-700 रोगी हर महीने आते हैं। सरकारी अस्पताल होने के कारण आसपास के राज्यों से भी अनेक मरीज यहां आते हैं। प्राइवेट अस्पताल का इलाज महंगा होने के कारण देश की मेहनतकश आम आबादी ऐसे ही सरकारी अस्पतालों का सहारा ढूँढती रहती है। इन्सेफेलाइटिस नामक रोग के लिए बीआरडी कॉलेज में विशेष विभाग व सुविधाएं है जिसकी वजह से अगस्त से अक्टूबर के बीच रोगियों की संख्या अस्पताल में दोगुनी हो जाती है। कर्मचारियों के अनुसार, पिछले लम्बे समय से मेडिकल कॉलेज को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके नतीजे के तौर पर ‘अत्यावश्यक सेवा’ यानि ऑक्सीजन सिलेंडर सप्लाई करने वाली कंपनी ने 9 अगस्त को ऑक्सीजन की आपुर्ति रोक दी थी। निर्लज्ज प्रशासन व सरकार ने इसकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नही की व 11 अगस्त को ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म होने के कारण कुछ घण्टों के अन्तर में 30 से ज्यादा बच्चों ने दम तोड़ दिया।
जिस लोकसभा क्षेत्र में ये घटना घटी है, वहां से पिछले 5 कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सांसद रहे हैं। आम लोगों की अपेक्षा गाय की चिन्ता उन्हे ज्यादा है। इसी लोकसभा क्षेत्र में पहली गोवंश चिकित्सा मोबाइल एम्बुलेंस योगी ने शुरू की थी। ये वही जगह है जहां मोदीजी ने 2014 में अपनी छाती 56 इंच की बतायी थी व इन्सेफेलाइटिस के कारण मरने वाले बच्चों के लिए गला भारी कर शोक व्यक्त किया था। उन्होने सत्ता में आने पर सब ठीक करने का सपना भी दिखाया था। इसी इन्सेफेलाइटिस के विरोध में संघर्ष करने का ढोल बजाकर योगी आदित्यनाथ ने सत्ता पायी। यही योगीजी लोकसभा में अनेक बार सार्वजनिक स्वास्थ्य व बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रश्न पुछते रहते हैं। पर फिर भी ऑक्सीजन आपुर्ति सुचारू करने के लिए भाजपा की दोनों सरकारें (केन्द्र व राज्य) 68 लाख रूपयों की जरूरत पूरी नहीं कर सकी। अभी भी आईसीयू विभाग के लिए 10 करोड़ रूपये का प्रावधान ये कर नहीं पाये हैं। उल्टा इस साल के बजट में राज्य के मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों का बजट 2344 करोड़ रूपये से घटाकर 1148 करोड़ कर दिया है। बीआरडी कॉलेज को मिलने वाले 15.9 करोड़ को घटाकर 7.8 करोड़ कर दिया है। इसमें मशीन व उपकरणों के लिए मिलने वाले 3 करोड़ रूपये को घटाकर 75 लाख कर दिये हैं। ऊपर से इंसेफलाइटिस वार्ड में कार्यरत 378 चिकित्सा कर्मियों (चिकित्सक, शिक्षक, नर्स व कर्मचारी) को मार्च 2017 से तनख्वाह नहीं मिली है व 11 पीएमआर कर्मचारियों को 27 महीने से सैलरी नहीं मिली है। इस तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च में कटौती कर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस सबकी सजा निर्दोष बच्चे भुगत रहे हैं। स्पष्ट है कि इनके लिए “गौप्रेम”, “जनता का स्वास्थ्य” आदि वोट पाने व सत्ता का मार्ग प्रशस्त करने के मुद्दे हैं, उससे ज्यादा कुछ नहीं।
इतना सब होने के बाद भी सत्ता के नशे में अंधे कई वरिष्ठ भाजपाई नेताओं ने बयान दिया कि ये कोई गम्भीर घटना नहीं है और दिन में 20 बच्चों की मृत्यु सामान्य बात है। एक मंत्री ने कहा कि अगस्त के शुरूआत में तो बच्चे ऐसे ही मरते हैं। उन्हीं के एक जोड़ीदार ने कहा कि अत्याधुनिक सेवाएं सरकारी अस्पतालों में देना सम्भव नहीं है। इनके ऐसे घटिया, मानवद्रोही बयानों पर कोई आश्चर्य करने की जरूरत नहीं है। कारण, ये उसी हिटलर के वारिस हैं जिसने लाखों निर्दोषों, जिसमें छोटे मासूम बच्चे भी शामिल थे, को गैस चैम्बरों में मरवा दिया था।
फासीवादियों का मूल चरित्र ही झूठ बोलना है। उसी को चरितार्थ करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बोला कि ऑक्सीजन सप्लाई कम्पनी के भुगतान के बारे में उन्हें पता नहीं था। अब जो पत्र सामने आ रहे हैं, उससे स्पष्ट पता चल रहा है कि योगी आदित्यनाथ को भी कम्पनी ने भुगतान के बारे में पत्र प्रेषित किये थे।
असल में आज सारी स्वास्थ्य प्रणाली ही बीमार है। भारतीय संविधान का भाग 3, अनुच्छेद 21 ‘जीने का अधिकार’ तो देता है पर जीने की पूर्वशर्त यानि अन्न, वस्त्र, मकान, स्वास्थ्य व शिक्षा की जवाबदेही से हाथ खीच लेता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के नाम पर अब स्वास्थ्य सेवाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है। नतीजतन स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं। एक तरफ 1 प्रतिशत अमीरों के पास भारत की 58 प्रतिशत संपत्ति इकट्ठी हो गयी है व अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की बात की जा रही है वहीं दूसरी तरफ 5000 बच्चे हर दिन भूख व कुपोषण के कारण मर जाते हैं। मुनाफे की इस व्यवस्था यानि पूँजीवाद में हर चीज बाजार में बिकती है। इसके लिए मेहनतकश आम जनता की जान भी लेनी पड़े तो इस व्यवस्था को हर्ज नहीं है। गोरखपुर की घटना से ये एकदम स्पष्ट हो रहा है।
इससे पहले जून महीने में मध्यप्रदेश के इंदौर में भी ऑक्सिजन की आपुर्ति 15 मिनट के लिए बन्द हो गयी थी। इसके कारण 2 बच्चों सहित 17 लोगों की मौत हो गयी थी। तब भाजपा ने अपने मीडिया प्रचार के दम पर इस बात को ही दबा दिया था। भोपाल गैस काण्ड, निठारी काण्ड से गोरखपुर के इस हत्याकाण्ड तक, कब तक हम यूँ ही अपने देश के भविष्य को क्षुद्र कारणों के लिए व पूँजीपतियों की मुनाफे की हवस के लिए मरने देते रहेंगे? क्या देश के मासुमों की जान की जिम्मेदारी हम सब की नहीं है? कभी गाय, कभी मंदिर, कभी नकली देशभक्ति के नाम पर राजनीतिक वितण्डा करने वाले ये लोग मूल सवालों से हमारा ध्यान भटकाने के लिए भ्रम निर्माण करते हैं। क्या कारण है कि गाय की एम्बुलेंस के लिए तो पैसा है पर ऑक्सीजन आपुर्ति करने या जनस्वास्थ्य के लिए तिजोरी हमेशा खाली रहती है।
क्या हमें तब तक इंतजार करना चाहिए जब ये ढांचागत हिंसा हमारा भी शिकार कर लेगी? नहीं! शिक्षा और स्वास्थ्य हमारा अधिकार है और इसे छीनने वालों से हमें लड़ना होगा। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन के अभाव में मरे मासूम हमें पुकार रहे हैं।
जब निरपराध बच्चे मरते हैं
और बड़े लोग
उनके मरने पर तर्क करते हैं
उनके भीतर भी मरता है कुछ
जिनके भीतर कुछ नहीं मरता
वे मर चुके होते हैं
ऐसे ही लोग
समझाते हैं हमें
“मरते रहते हैं बच्चे हर साल”
जयनारायण
क्रांतीकारी अभिवादन के साथ
नौजवान भारत सभा, यूसीडीई, बिगुल मजदूर दस्ता
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