काकोरी काण्ड के शहीदों के 90वें शहादत दिवस पर पूर्वी उत्तर प्रदेश में निकाला गया परचा
काकोरी काण्ड के शहीदों की कुर्बानी आवाज़ दे रही है
बिस्मिल-अशफ़ाक को याद करो! साम्प्रदायिक ताकतों को ध्वस्त करो!!
देशवासियों को हमारे मरने का जरा भी अफसोस है तो वे जैसे भी हो हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें। यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।-रामप्रसाद बिस्मिल
सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और इसी तरह यह सोचना भी फिजूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम कबूल करवाया जा सकता है। मगर हाँ, यह आसान है कि हम सब गुलामी की जंजीरें अपने गर्दन में डाले रहें।-अशफ़ाक उल्ला खाँ
साथियो, काकोरी काण्ड के शहीदों को हम उस समय याद कर रहे हैं जब काकोरी के महान क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला खाँ की उल्लिखित वसीयत हमारे समय का अमली दस्तावेज़ बन गया है। शोषणमुक्त समाज का सपना लिए हुए ब्रिटिश जल्लादों से लड़ते हुए बिस्मिल, अशफाक, लाहिड़ी, रोशनसिंह जनता के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बन गये थे। लेकिन काकोरी काण्ड के शहीदों ने उस समय अंग्रेजों की ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति और हिन्दू-मुस्लिम कट्टरपन्थियों की करतूतों से शायद ये अंदाज लगा चुके थे कि ये काली ताकतें देश का जल्दी पीछा नहीं छोड़ने वाली।
साथियो! उन शहीदों का अंदाजा ग़लत नहीं था। वर्तमान समय में देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि युवा आबादी तक धर्म के ठेकेदारों के जाल में फंस चुकी है। हैवानियत भरी घटनाओं पर भी बहुत सारे युवा हिन्दू-मुसलमान बन कर सोचने लगते हैं। सोशल मीडिया पर गाली-गलौच शुरू हो जाता है। धार्मिक कट्टरपंथी अपने घिनौने विचारों की उल्टी शुरू कर देते हैं। अखबार, चैनल ऐसी घटनाओं को साम्प्रदायिक रंग देना षुरू कर देते हैं। अभी हाल ही में राजस्थान में अफराजुल नामक व्यक्ति भगवा गिरोहों द्वारा फैलाये गये साम्प्रदायिक उन्माद की भेंट चढ़ गया। हिन्दू-मुस्लिम, मन्दिर-मस्जिद, घर-वापसी, बीफ, लवजिहाद के नाम पर फैलाया गया ज़हर धीरे-धीरे लोगों में इस तरह घुल गया है कि व्यक्तिगत तौर पर या भीड़ द्वारा हत्याओं का दौर शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं कट्टरपंथी ताकतों द्वारा तमाम प्रगतिषील, तर्कशील लेखकों-बुद्धिजीवियों की हत्या की कई घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है।
साथियो! हम अशफ़ाक व बिस्मिल की दोस्ती व बेहतर समाज बनाने के लिए उनकी कुर्बानी की याद आपके दिलों में ताज़ा करना चाहते हैं। हम इन शहीदों के उस सबक को आपके एहसास में उतारना चाहते हैं, जो हमें यह बताता है कि हर धार्मिक झगड़े के पीछे मुट्ठी भर लुटेरों व शासक वर्ग का हाथ होता है। हर कोई जानता है कि अंग्रेज हिन्दू व मुस्लिम को इस लिए लड़ाना चाहते थे ताकि लोग अंग्रेजों की लूट के ख़िलाफ़ एकजुट न हो पायें। साथियो, अब हिन्दू-मुस्लिम झगड़े क्यों हैं? इन झगड़ों से किनको फायदा हो रहा है और कौन मर रहा है? आइये! इस पर सोचें और अपने विवेक को आवाज़ लगायें।
साथियो! हकीकत ये है कि ये शहीद जिस समतामूलक व्यवस्था का स्वप्न देखते थे, जिसे और अधिक परिपक्व व वैज्ञानिक रूप देने का काम भगतसिंह ने किया वो सपना पूरा न हुआ। अंग्रेज लुटेरों के जाने के बाद से पिछले 70 साल जनता की एक दुःखभरी दास्तान है। शासन-प्रशासन, कोर्ट-कचेहरी कहने के लिए सबके लिए समान है। लेकिन सच्चाई यह है कि ये सब पैसों वालों की जेब में है। चुनाव धन्नासेठों की तिजोरी भरने वाले विभिन्न लुटेरों के गिरोहों के बीच अदला-बदली के अलावा और कुछ नहीं है। यानि साँपनाथ-नागनाथ का खेल है। गरीबी हटाने, समता लाने, आम आदमी भला करने, अच्छे दिन दिखाने के नाम पर लगातार जनता को धोखा दिया जा रहा है। इन लोकलुभावने नारों के पीछे की सच्चाई यह है कि रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, जैसे जनता के मूलभूत अधिकारों पर डकैती डाली जा रही है। संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गये ‘‘समाजवाद’’ की सच्चाई इन आँकड़ों से समझी जा सकती है कि देश की ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल परिसम्पत्ति का 89 प्रतिशत इकट्ठा हो गया है, जबकि देश की नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 2 प्रतिशत है। सारे पब्लिक सेक्टर निजी हाथों में बेचे जा रहे हैं। रोजगार उपलब्ध कराने का जुमला फेंक सत्ता में आई मोदी सरकार ने सातवें वेतन आयोग की रिपार्ट के मुताबिक रेलवे में 2 लाख से ज़्यादा पद एक झटके में समाप्त कर दिया। देश में 30 करोड़ नौजवान बेरोजगारी में धक्के खा रहे हैं जबकि सरकारी रोजगार लगातार ख़त्म किये जा रहे हैं। इसी तरह से शिक्षा के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। चिकित्सा को भी निजी क्षेत्रों के हवाले किया जा रहा है। गोरखपुर में इतने बच्चों की मौत बाद भी चिकित्सा पर सरकारी खर्च नहीं बढ़ेगा। हाँ! चुनावी रैलियों, धार्मिक आयोजनों पर अरबों रूपये ख़र्च ज़रूर ख़र्च किया जायेगा। देश के करोड़ों मेहनतकश गन्दी बस्तियों में रहते हैं और किसी तरह पेट भरने के लिए बारह-2 घण्टे अपनी हड्डियाँ गलाने को मजबूर हैं। सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती जारी है। खाने-पीने के सामान, गैस सिलेण्डर से लेकर पेट्रोल तक की कीमतों में आग लगी हुई है जबकि जनता को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती कर बड़े-बड़े उद्योगपति घरानों को बेल आउट पैकेज व तमाम अन्य माध्यमों से छूट दी जा रही है।
वास्तव में पूरी दुनिया में पूँजीवादी लुटेरों द्वारा पैदा किये गये आर्थिक संकट की वजह से मुनाफे की दर में कमी आ गयी है। इस कमी को पूरा करने के लिए दुनिया के लुटेरे ऐसी पार्टियों को आगे ला रहे हैं जिनमें जनता के असंतोष को धर्म-नस्ल-राष्ट्र आदि के नाम पर आपस में कटने-मरने की तरफ मोड़ने और संघर्ष को कुचलने की क्षमता हो। भारत में भी यही स्थिति है। भारत के पूँजीपति वर्ग को भी ऐसी सरकार चाहिए थी। भाजपा समेत संघ परिवार इस पूरे काम को सबसे अच्छी तरह से कर सकता था। नतीजा सामने है। अभी हाल ही आये आँकड़ों के मुताबिक कारपोरेट घरानों से मिलने वाले चंदा का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा की झोली में आया। अब भाजपा इन कारपोरेट घरानों की तिजोरी भरने में जुट गई है। भाजपा देशी लुटेरों द्वारा श्रम व प्राकृतिक संसाधनों को लूटने में मदद के लिये विदेशी लुटेरों को भी आमंत्रित कर रही है जबकि जनता के बीच ‘राष्ट्रभक्ति’ का प्रचार कर रही है। तमाम भ्रष्टाचारियों, अपराधियों को पार्टी में शामिल करने वाली भाजपा देश को भ्रष्टाचार व अपराध से मुक्त करने का दावा कर रही है। अब जब भाजपा की कलई खुलने लगी है तो वह ‘विकास’ के नारे का दामन छोड़ फिर ‘मन्दिर-मस्जिद’ का राग छेड़ रही है ताकि लोगों का ध्यान भटक जाय। सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक साम्प्रदायिक उन्माद भड़काया जा रहा है। ऐसी ही स्थिति के सन्दर्भ में काकोरी के शहीदों की अगली पीढ़ी के क्रान्तिकारी शहीद-ए-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि ‘-जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रान्तिकारी स्पिरिट पैदा करने की ज़रूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ जनता को ग़लत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती हैं। इससे इंसान की प्रगति रुक जाती है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह ज़रूरी है कि क्रान्ति की स्पिरिट ताज़ा की जाय, ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो।’
साथियो! आइये काकोरी काण्ड के महान शहीदों की शहादत दिवस के मौके पर हम यह संकल्प लें कि मुट्ठी भर शोषकों-शासकों के द्वारा फैलाये जा रहे साम्प्रदायिक उन्माद में हम नहीं बहेंगे! हम समान शिक्षा व सबको रोजगार जैसी बुनियादी अधिकारों की लड़ाई के लिए जाति-धर्म-क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठ कर लड़ेंगे। हम किसी चुनावी पार्टी के बहकावे में नहीं आयंगे। चुनाव बीतते ही उनके वायदे को पूरा करवाने व एक-एक पैसे का हिसाब लेने के लिए घेरेंगे। हमारे देश में इतना कुछ है कि अगर मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफे पर टिकी व्यवस्था की जगह समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय तो हरेक इंसान को बेहतर जीवन दिया जा सकता है। यही इन शहीदों का सपना था। आइये, इस सपने को पूरा करने के लिए जान लगा दिया जाय। हमारे हमसफर बनने के लिए कमेंट बॉक्स में सम्पर्क करें।