काकोरी एक्शन के शहीदों के शहादत दिवस के मौके पर – अमर शहीदों का पैगाम! जारी रखना है संग्राम!!

काकोरी एक्शन के शहीद अशफाक़ उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लहिड़ी, रोशन सिंह अमर रहें!
काकोरी एक्शन के शहीदों के शहादत दिवस के मौके पर

अमर शहीदों का पैगाम!
जारी रखना है संग्राम!!

भाइयो, बहनो और साथियो! 17 दिसम्बर व 19 दिसम्बर 1927 को देश के चार जाँबाज़ युवा आज़ादी के लिए कुर्बान हो गये थे। एच.आर.ए. (हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन) से जुड़े इन नायकों के नाम थे अशफाक़ उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह। भारत के आज़ादी आन्दोलन में ‘काकोरी एक्शन’ एक ख़ास घटना है। 9 अगस्त 1925 के दिन 10 नौजवानों ने काकोरी नामक जगह पर चलती रेल रोककर अंग्रेजी खजाने को लूट लिया था। खजाने की इस लूट का मकसद था हथियारबन्द क्रान्ति के लक्ष्य तक पहुँचना! भारत में लूट, शोषण और दमन पर टिके अंग्रेजी साम्राज्य के मुँह पर ‘काकोरी एक्शन’ एक करारा तमाचा था। दमन चक्र के बाद मुकदमे की नौटंकी करके कईयों को कठोर कारावास और चार को फाँसी की सजा सुनाई गयी जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद को कभी गिरफ्तार ही नहीं किया जा सका। एच.आर.ए. वही संगठन था जिसकी विरासत को लेकर भगतसिंह और उनके साथी आगे बढ़े और 1928 में उन्होंने एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) के रूप में दल को विकसित किया। चन्द्रशेखर आज़ाद इसके ‘कमाण्डर इन चीफ़’ बने।

हमारे लिए काकोरी एक्शन के शहीदों के महत्त्वपूर्ण होने की ख़ास वजह है। आज़ादी आन्दोलन के दौरान अंग्रेज अपनी फूट डालो और राज करो की नीतियों के द्वारा हिन्दू और मुस्लिम साम्प्रदायिकता को लगातार बढ़ावा दे रहे थे। तमाम राष्ट्रीय नेता अपने साम्प्रदायिक रुझान दिखला रहे थे। इस दौर में तबलीगी जमात, हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि जैसों के नेतृत्व में धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने की शुरुआत हो चुकी थी। वहीं उस समय हमारे ये क्रान्तिकारी अपने जीवन से मिसालें कायम कर रहे थे। ‘गदर’ आन्दोलन के क्रान्तिकारियों की तरह ही ‘एच.आर.ए.’ और ‘एच.एस.आर.ए.’ का भी यह स्पष्ट मानना था कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला होना चाहिए और उसका राज्य मशीनरी व राजनीति में इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। फाँसी पर लटकाये जाने से सिर्फ़ तीन दिन पहले लिखे ख़त में अशफ़ाक़ उल्ला खान ने देशवासियों को आगाह किया था कि इस तरह के बँटवारे आज़ादी की लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने लिखा ‘सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और इसी तरह यह सोचना भी फिजूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम कबूल करवाया जा सकता है। मगर हाँ, यह आसान है कि हम सब गुलामी की जंजीरें अपनी गर्दन में डाले रहें।’ इसी प्रकार रामप्रसाद बिस्मिल का कहना था कि ‘यदि देशवासियों को हमारे मरने का जरा भी अफ़सोस है तो वे जैसे भी हो हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें। यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।’

साम्प्रदायिकता और कट्टरता की राजनीति लाखों निर्दोषों की लाशों पर से होते हुए विभाजन तक पहुँची और आज पहले से भी भयानक रूप में फ़ैलायी जा रही है। जिस तरह से अंग्रेज़ लुटेरे अपनी सत्ता को बचाये रखने के लिए फूट डालो-राज करो के फ़ार्मूले के तहत भाई-भाई को लड़ा रहे थे उसी तरह से आज के शासक और सत्ता में बैठे लोग भी जनता को गैर मुद्दों के आधार पर आपस में लड़ा रहे हैं और साम्प्रदायिक-जातिवादी दंगों में बहे खून से वोट बैंक की फसल को सींच रहे हैं। सत्ता में आयी विभिन्न केन्द्रीय और क्षेत्रीय चुनावबाज पार्टियों ने आम जनता को लूटने का ही काम किया है किन्तु लूट के इस खेल में भाजपा ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा के तमाम जुमलों की बारिश में नंगी सच्चाई यह है कि रोज़गार पैदा होना तो दूर एफडीआई, नोटबन्दी, जीएसटी और निजीकरण की नीतियों ने संगठित-असंगठित क्षेत्र में से करोड़ों के रोज़गार छीन ज़रूर लिए हैं। अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से लोगों की जेब से एक-एक पैसा छीनकर धन्नासेठों के पो-बारह किये जा रहे हैं। आर्थिक नीतियाँ जनता की कमर तोड़ रही हैं किन्तु दूसरी ओर लोगों को गैर ज़रूरी मुद्दों पर लड़ाया जा रहा है।

आज हमारा देश बेरोज़गारी में पूरी दुनिया को पछाड़ रहा है। सरकारों के द्वारा ही हर वर्ष लाखों रोज़गार निगले जा रहे हैं। हाल ही में रेलवे सुरक्षाबलों के 10 हज़ार पदों के लिए 96 लाख आवेदन आये थे, वहीं कुछ दिन पहले चपड़ासी और डाकिये के 62 पदों के लिए 93 हज़ार आवेदन आये थे। खुद सरकारी आँकड़े कहते हैं कि देश में 2007 से 2016 के बीच 75 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या कर ली, इसका बड़ा कारण बेरोज़गारी है! इसके बावजूद भी हमारे नेताओं के लिए रोज़गार की बजाय मन्दिर-मस्जिद ही मुद्दा है! अक्टूबर 2018 के वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में भारत 103वें स्थान पर और सितम्बर 2018 में जारी मानवीय विकास सूचकांक में 189 देशों की सूची में भारत 130वें स्थान पर आ चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2017 में दुनिया में सबसे अधिक 8 लाख से ज़्यादा शिशुओं की कुपोषण से मृत्यु हुई यानी हर 2 मिनट में 3 बच्चों की मौत! इसके बावजूद भी चुनावी धन्धेबाजों के लिए कुपोषण और भुखमरी मुद्दे नहीं बनते! देश में 1990 के दशक के मध्य में सिर्फ़ 2 अरबपति (डॉलर अरबपति) थे, 2017 तक अरबपतियों की संख्या 111 तक पहुँच गयी। ऑक्सफैम की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल सम्पत्ति का 58 प्रतिशत ऊपर के 1 प्रतिशत धन्नासेठों के पास एकत्रित हो चुका है। यही नहीं 2017 में पैदा हुई कुल सम्पदा का तो 73 प्रतिशत हिस्सा ऊपर के 1 फ़ीसदी अमीरों के पास गया है। अमीर और गरीब की बढ़ती खाई, बढ़ती महँगाई, मज़दूर-किसान और जनता की लूट-दमन के बीच भी भारत में आज एक ही चीज़ का डंका बज रहा है और वो है जाति-धर्म के नाम पर दंगों की राजनीति! लगातार भड़काये जा रहे इन दंगों में मरता कौन है? आम गरीब और बेरोज़गार इंसान! इन दंगों में फायदा किसका होता है? दंगों की राजनीति करने वाले नेताओं, पार्टियों और जनता का खून-पसीना निचोड़ने वाले पूँजीपतियों का! तो फ़िर हम कब तक मन्दिर-मस्जिद, जाति-धर्म, आरक्षण, गाय के नाम पर आपस में ही लड़ते रहेंगे? हमें दंगों में झोंकने वाले तो सत्ता तक पहुँच जाते हैं किन्तु हमें सिवाय मौत और विनाश के आज तक मिला ही क्या है?

दोस्तो! आज हमारा समाज एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। यही वो हालात होते हैं जब समाज के अन्दर से बिस्मिल, अशफ़ाक, आज़ाद, सराभा और भगतसिंह जैसे नायक पैदा होते हैं। निश्चित तौर पर हमारे वो महान शहीद भी अवतार और मसीहा नहीं बल्कि परिस्थितयों की ही पैदावार थे। जैसा कि भगतसिंह ने कहा है ‘बम और पिस्तौल इन्क़लाब नहीं लाते बल्कि इन्क़लाब की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।’ आज जनता को जगाने का काम, जातिवाद-साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहे लोगों को असल समस्याओं के प्रति शिक्षित, जागरूक और संगठित करने का काम ही सबसे महत्त्वपूर्ण काम है। जान की बाजी लगाकर जनता के प्रति अपनी सच्ची मोहब्बत सिद्ध कर देने वाले हमारे महान शहीदों को आज की युवा पीढ़ी की यही असल सलामी हो सकती है।

साथियो! इतिहास बताता है कि कोई भी व्यवस्था अजर-अमर और सनातन नहीं है। हर समाज बदलता है और उसे इंसान ही बदलते हैं। देश के युवाओं को आज तमाम भ्रष्ट चुनावी पार्टियों व धार्मिक कट्टरपन्थी संगठनों का झण्डा धूल में फेंक कर ‘समान शिक्षा-सबको रोजगार’ का झण्डा अपने हाथ में उठा लेना चाहिए। पानी, बिजली, स्वास्थ्य आदि के मुद्दे पर आम जनता को गोलबन्द करना चाहिए। बेहतर विचारों, बेहतर आदर्शों को खुद आत्मसात करना चाहिए व देश के एक-एक इंसान तक पहुँचाने की मुहिम में जुट जाना चाहिए। अपने शहीदों के समता व न्याय पर टिके समाज के सपने को पूरा करने के लिए मैदान में उतर जाने का संकल्प ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा इस दिशा में प्रयासरत हैं। क्या आप तैयार हैं? हमसे सहमत हैं तो निम्न नम्बरों पर सम्पर्क ज़रूर करें। यदि आपकी सोच हमसे मेल खाती है तो हमें मिल-बैठ कर तमाम मुद्दों पर सोचना-विचारना चाहिए।

इन्क़लाबी अभिवादन के साथ,

जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!!

नौजवान भारत सभा

दिशा छात्र संगठन

हरियाणा सम्पर्क:- रोहतक: 8010156365, 9992130268, जीन्द: 9991908690, कैथल: 8685030984, कुरुक्षेत्र: 7404430984

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One Thought to “काकोरी एक्शन के शहीदों के शहादत दिवस के मौके पर – अमर शहीदों का पैगाम! जारी रखना है संग्राम!!”

  1. Dr Mohammad johar ali

    JAI JAAWAN JAI KISSAN
    HUM BHI AAP SE JOODNA CHAATE HAI, AUR AK AZAD DESH CHAATE HAI, JAHA DHARM KI NAHI BHAARTIYATA KE AADHAR PAR RAJNEETI KI NEEV RAKHI JAAYE, AUR DESH SAAMIRDH , AUR KUSHAL BAAN SAAKE

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