भगतसिंह से मज़हबी फ़िरकापरस्तों को ख़तरा क्यों है ?

भगतसिंह से मज़हबी फ़िरकापरस्तों को ख़तरा क्यों है ?

नौजवान भारत सभा
हाल ही में सँगरूर के नवनिर्वाचित अकाली दल (अमृतसर) के सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने भगतसिंह के ख़िलाफ़ एक बार फ़िर से ज़हरबुझा कुत्साप्रचार शुरू किया है। मान का कहना है कि भगतसिंह बेगुनाहों के हत्यारे और आतंकवादी थे तथा उन्होंने उनकी तुलना जरनैल सिंह भिण्डरावाले के साथ करते हुए भिण्डरावाले को कौम का शहीद बताया है। सिमरनजीत मान जैसों की राजनीति का मूल एजेण्डा मज़हबी फिरकापरस्ती है। ये प्रमुख तौर पर सिख धर्म की पहचान की राजनीति के झण्डाबरदार हैं और खालिस्तान के समर्थक हैं। इनका बस यह कहना है कि खालिस्तान “कानूनी” तरीके से बनना चाहिए। भगतसिंह के बारे में सिमरनजीत मान का मुँह खोलना था कि हरियाणा में मज़हबी पहचान की प्रतिक्रियावादी राजनीति करने वाले मनोज दूहन जैसे लोग भी बल्लियों उछल पड़े और भगतसिंह के प्रति दुष्प्रचार में जुट गये। जिस तरह से पागलों को बीच-बीच में पागलपन के दौरे पड़ते हैं वैसे ही मज़हबी फ़िरकापरस्ती में विक्षिप्त दिमाग भी सुर्ख़ियों में बने रहने और अपने चेले-चपाटों के बीच सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए समय-समय पर अपने एजेण्डे के तहत ऐसी ओछी हरक़तें करते रहते हैं।
शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की शहादत को 91 साल हो चुके हैं। भगतसिंह एक नाम नहीं बल्कि अन्याय अत्याचार और शोषण पर टिकी व्यवस्था के ख़िलाफ़ दिलेराना बहादुरी और क्रान्ति के प्रतीक हैं। भगतसिंह जाति-धर्म-भाषा-रंग-नस्ल से ऊपर उठ वर्गीय एकजुटता कायम करके शोषकों के ख़िलाफ़ क्रान्ति का बिगुल फूँकने के लिए जनता का आह्वान करते थे। उन्होंने और उनके दल ने न सिर्फ़ औपनिवेशिक लुटेरों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ी बल्कि जमींदारों, सामंतों और देसी पूँजीपतियों की असलियत के प्रति भी जनता को शिक्षित और आगाह किया। हर प्रकार की साम्प्रदायिकता, जातिवाद और ज़हालत के ख़िलाफ़ भगतसिंह और उनके साथियों का दृष्टिकोण काबिलेतारीफ़ था। वे हिन्दू-मुस्लिम-सिख या किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिकता के सख्त ख़िलाफ़ थे। भगतसिंह जनता की आकाँक्षाओं के मूर्तरूप थे और यही कारण है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के करोड़ों लोग आज भी भगतसिंह को दिल-ओ-जान से चाहते हैं। चुनावबाज पार्टियों के नेता मजबूरी में भले ही भगतसिंह के बुतों पर माला डाल लेते हों, अपनी जनविरोधी घटिया राजनीति के प्रचार के लिए भगतसिंह के नाम व फ़ोटो का इस्तेमाल भी कर लेते हों किन्तु आज की पूँजीवादी भारतीय राज्यसत्ता अन्दरखाते भगतसिंह को आतंकवादी ही मानती है और इसलिए मज़हबी कट्टरपन्थी भी कोई नयी बात नहीं बोल रहे हैं।
इस समय रोज़गार और अर्थव्यवस्था के मामले में पूरे देश का ही बंटाधार हुआ पड़ा है। पंजाब की हालत भी कुछ अलग नहीं है। पंजाब में भी विचारहीन आवारा भीड़ की तरह लोग कभी इस या कभी उस फ़र्जी विकल्प की ओर बदहवास दौड़ लगा रहे हैं। साम्प्रदायिकता, जातिवाद, बन्दूक संस्कृति, अपराध, भोण्डे नायकवाद और अश्लीलता में लिथड़े गुबरैलों को मुक्तिदाता बताया जा रहा है। शोषणकारी व्यवस्था भी यही चाहती है कि लोग हमेशा छद्म चेतना और भ्रम का शिकार बने रहें और जनता व्यवस्था की असलियत समझकर इसके विकल्प तक पहुँच बनाकर बगावती ना हो जाये। ऐसे में जनता को जाति-सम्प्रदाय और भाषा-क्षेत्र के नाम पर बाँटने वाले लोग लुटेरी व्यवस्था के लिए ही सुषेण वैद्य साबित होते हैं। साम्प्रदायिक कट्टरता चाहे जिस भी धर्म की हो वह एक-दूसरे धर्म की साम्प्रदायिक कट्टरता को बढ़ावा ही देती है। 1984 में भारतीय राज्य द्वारा सिखों का कत्लेआम और नस्लकुशी बेशक भारतीय इतिहास पर एक बदनुमा धब्बा है और इसका जितना विरोध किया जाये उतना कम है लेकिन इसके बावजूद साम्प्रदायिकता किसी का भी भला नहीं करती सिवाय राज्यसत्ता के। किसी भी धार्मिक राज्य में अन्य धर्म के लोग दोयम दर्जे के रहवासी ही होते हैं। हरेक इन्सान को धार्मिक राज्य के हर प्रयास का कड़ा प्रतिकार करना चाहिए और मानवीय मूल्यों पर आधारित समाज व जनवाद का हामी होना चाहिए। साम्प्रदायिक मार-काट के जुनून और फ़ासीवादी मानसिकता का मुक़ाबला भी जनता की वर्गीय एकजुटता से ही किया जा सकता है।
भगतसिंह के विचार लोगों को वर्गचेतना से ओतप्रोत कर सकते हैं इसीलिए ठगों-लुटेरों और उनके लग्गू-भग्गुओं द्वारा उनकी शहादत के इतने साल बाद भी उनके ख़िलाफ़ कुत्साप्रचार फैलाया जाता है। अतीत में जिस तरह से औपनिवेशिक लुटेरों, देसी पूँजीपतियों के प्रतिनिधियों, साम्प्रदायिक घाघों और अंग्रेजों से सर-सुर की उपाधि प्राप्त लोगों को भगतसिंह फूटी आँखों नहीं सुहाते थे वैसे ही आज़ाद भारत में भी देसी लुटेरों और उनके मददगारों यानी अलग-अलग किस्म की फिरकापरस्ती करने वालों के दिल भगतसिंह के नाम मात्र से दहल जाते हैं। भगतसिंह को पढ़कर लोग अपनी समस्याओं के असली कारण जान जायेंगे तो इन ठगों का धन्धापानी कैसे चलेगा?
ऐसे में भगतसिंह को चाहने वालों का यह फ़र्ज़ बनता है कि अपने महान शहीद की विरासत और उनके विचारों को हम जनता के बीच दोगुनी ताकत के साथ लेकर जायें। भगतसिंह के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करने वाले लोग जनता के शत्रु हैं। ये नहीं चाहते कि लोग वर्गचेतना से लैस हो जायें और अपने हक़-अधिकारों को हासिल करने के लिए मुकम्मिल संघर्ष छेड़ दें। मज़हबी जुनूनी लोग ‘फूट डालो और राज करो’ की औपनिवेशिक नीति की पोषक मौजूदा राज्यसत्ता के ज़बरदस्त मददगार हैं। इनके कुत्सित इरादों को नाकामयाब करने का हरसम्भव प्रयास किया जाना चाहिए। बाकी मज़हबी फ़िरकापरस्तों की दुष्प्रचार मुहिम से भगतसिंह के नायकत्व में बाल बराबर भी फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। उल्टा इनका धन्धापनी लदने के दिन और नज़दीक लग जायेंगे। कुत्साप्रचारकों का चाँद पर थूका हुआ उल्टा इनके ही मुँह पर गिरना तय है।
कुछ महत्वपूर्ण लिंक :
दस्तावेज़ी फ़िल्म *इन्क़लाब*
भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़
शहीदेआज़म भगतसिंह की जेल नोटबुक
साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज – भगतसिंह
धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम – भगतसिंह
अछूत का सवाल – भगतसिंह

Related posts

Leave a Comment

eleven − two =