पंजाब के क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह ‘पाश’ को हमारा इंक़लाबी सलाम

पंजाब के क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह ‘पाश’ को हमारा इंक़लाबी सलाम
जन्म – 09 सितम्बर 1950
शहादत – 23 मार्च 1988
पेश हैं पाश की कुछ कविताएँ:
तूफ़ान कभी मात नहीं खाते
हवा का रुख बदलने से
बहुत उछले, बहुत कूदे
वे, जिनके शामियाने डोल चुके थे
उन्होंने ऐलान कर दिया
अब दरख़्त शान्त हो गये हैं
तूफ़ान का दम अब टूट चुका है
जैसे कि जानते ही न हों
ऐलानों का तूफानों पर
कोई असर नहीं होता
जैसे कि जानते ही न हों
वह उमस बहुत गहरी थी
जहाँ से तूफ़ान ने जन्म लिया
जैसे कि जानते ही न हों
तूफ़ानों की वजह
दरख़्त नहीं होते
वरन वह घुटन होती है
धरती का मुखड़ा जो

धूल में मिलाती है

ओ भ्रमपुत्रो, सुनो
हवा ने दिशा बदली है
हवा थम नहीं सकती
जब तक कि धरती का मुखड़ा
टहक गुलज़ार नहीं बनता
तुम्हारे शामियाने आज गिरे कल गिरे
तूफ़ान कभी भी मात नहीं खाते
– पाश
देश की असुरक्षा
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये
आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे

तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिगंन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा

हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा

लेकिन ’गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
’गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है
’गर देश का अमन ऐसा होता है
कि क़र्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो

तो हमें अमन से ख़तरा है

’गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
– पाश

सपने

 

सपने, हर किसी को नहीं आते

बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़िमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नज़र होना लाज़िमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते
– पाश
सबसे ख़तरनाक
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना—बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना—बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना—बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना—बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक़्त निकाल लेना—बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना….
– पाश

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