दिल्ली विधानसभा चुनाव-2015 : जीते चाहे कोई भी, हारेगी जनता ही!

दिल्ली विधानसभा चुनाव-2015
जीते चाहे कोई भी, हारेगी जनता ही!
हमारे पास चुनने के लिए क्या है?

साथियो!

Kejriwal bediदिल्ली विधानसभा चुनाव की महानौटंकी पूरे ज़ोरों पर है। भाजपा, कांग्रेस से लेकर ‘आप’ में “तू नंगा-तू नंगा” का खेल शुरू हो गया है। लेकिन सभी जानते हैं कि इस चुनावी हम्माम में सभी नंगे हैं! भाजपा दिल्ली के लोगों से हवा-हवाई वायदे करते हुए अभी भी मोदी का “अच्छे दिन” का बासी पड़ चुका गाना गा रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) अपनी सरकार के 49 दिनों के बारे में झूठा प्रचार करते हुए पाँच साल बने रहने की कसम खा रही है। कांग्रेस इस चूहा-दौड़ में अपने आपको सबसे पीछे पाकर सबसे ज़्यादा झूठे वायदे करने में लग गयी है। ऐसे में हमें फिर से चुनने के लिए कहा जा रहा है। चुनावी पार्टियों के इन हवाई दावों के बीच जब आज महँगाई आसमान छू रही है, थाली से दाल-सब्ज़ी गायब हो रही है; शिक्षा, चिकित्सा, रिहायश आम मेहनतकश आदमी की पहुँच से बाहर होता जा रहा है तो सवाल यह उठता है कि क्या हमारे पास चुनावों में वाकई कोई विकल्प है?

किसे चुनें-साँपनाथ, नागनाथ या बिच्छूप्रसाद को ?

Election_Exhibition_12भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी या अन्य चुनावी पार्टियों के केवल झण्डों और नारों में ही फर्क हैं। सभी की आर्थिक नीतियाँ एकसमान हैं। ये ही वे आर्थिक नीतियाँ हैं जिनके कारण आज बेरोज़गारी और महँगाई बढ़ रही है, शिक्षा और चिकित्सा पहुँच के बाहर हो रहे हैं। ऐसे में दिल्ली में सरकार किसी की भी बने, हमारी ज़ि‍न्दगी में कोई फर्क नहीं आने वाला है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों  की हालत ख़स्ता है। कइयों में शिक्षक, पानी, बिजली और यहाँ तक कि शौचालय तक नहीं हैं! सरकारी अस्पताल बेहद कम हैं और बुरी हालत में हैं। आम मेहनतकश और निम्न मध्य वर्ग के लोगों के इलाकों में सड़कें या तो हैं नहीं या दयनीय हालत में है। कूड़े-कीचड़ के जमाव के कारण हैज़ा, मलेरिया, डेंगू और चिकुनगुनिया हर साल सैकड़ों ग़रीबों की जान ले लेते हैं! दिल्ली के करीब 60 लाख ठेका मज़दूरों और कर्मचारियों को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती है। नियमित प्रकृति के कार्यों पर ठेका मज़दूर रखने का ग़ैर-कानूनी काम सरकार से लेकर निजी कम्पनियों तक में खुले-आम हो रहा है। ऐसे में, दिल्ली के 75 फीसदी निम्न मध्यवर्गीय और मेहनतकश आबादी भाजपा, कांग्रेस या ‘आप’ से क्या उम्मीद कर सकती है?

भाजपा शासन मतलबः जनता की लूट के बूते धन्नासेठों के अच्छे दिन!

दिल्ली में भाजपा को अपने नेताओं के बीच कोई साफ छवि का नेता नज़र नहीं आया इसलिए “साफ छवि” की किरण बेदी का चेहरा आगे कर दिया! अम्बानी, टाटा, बिड़ला के हाथों बिका मीडिया भी नंगई के साथ किरण बेदी का चेहरा चमकाने में लग गया। याद रहे कि यह वही किरण बेदी है जो साल भर पहले नरेन्द्र मोदी से गुजरात दंगों पर जवाब माँग रही थी; किरण बेदी ने ही झुग्गियों को दिल्ली से हटा देने की इच्छा जतायी थी; अभी कुछ समय पहले ही ये कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही भ्रष्टाचारी बताते हुए अण्णा हज़ारे की पूँछ पकड़े घूम रही थीं! और अब भाजपा में शामिल हो चुकी हैं! ख़ैर, पूँजीवादी चुनावी राजनीति में वक़्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना ही पड़ता है!

मोदी सरकार बनने के सात माह बाद ही देश की आम मेहनतकश जनता को समझ आने लगा है कि किसके अच्छे दिन आये हैं! रसोई गैस की कीमतें बढ़ा दी गयीं, रेलवे भाड़ा बढ़ा दिया गया, तमाम पब्लिक सेक्टर की मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियों का निजीकरण किया जा रहा है और श्रम क़ानूनों से मज़दूरों को मिलने वाली सुरक्षा को छीन लिया गया। पेट्रोलियम उत्पादों की अन्तरराष्ट्रीय कीमतें इतनी गिर गयी हैं कि सरकार चाहे तो पेट्रोल 40 रुपये प्रति लीटर पर बेच सकती है, लेकिन मोदी सरकार ने उस पर तमाम कर और शुल्क बढ़ा दिये जिससे कि उनकी कीमतों में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ा; स्विस बैंकों में काला धन जमा करने वाले भ्रष्टचारियों के नाम तरह-तरह की बहानेबाज़ी करके गुप्त रखे जा रहे हैं। कोल इण्डिया और तमाम मुनाफ़ा देने वाली पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों को औन-पौने दामों पर देशी-विदेशी कम्पनियों को सौंपा जा रहा है। देशभक्ति और राष्ट्रवाद का ढोल बजाने वाले नरेन्द्र मोदी और अपने लूट के सीनियर पार्टनर बराक ओबामा की अगुवाई में लम्बलेट हो गये थे! अमेरिकी और अन्य विदेशी कम्पनियों को भारत की कुदरत और जनता को लूटने का Modi development cartoon grayscale copyखुला हाथ देते समय इन हाफ़-पैण्टियों का राष्ट्रवाद कहाँ चला जाता है? दूसरी तरफ देश के सबसे बड़े धन्नासेठों जैसे कि अम्बानी, अदानी, बिड़ला, टाटा आदि को मोदी सरकार तोहफे़ पर तोहफ़े दे रही है! उन्हें तमाम करों से छूट देने के साथ श्रम क़ानूनों से भी छूट दी जा रही है। दिल्ली में भाजपा के ‘स्थिर सरकार-स्वच्छ कारोबार’ के नारे का यही मतलब है कि दिल्ली की ग़रीब मेहनतकश जनता को लूटकर यहाँ के धन्नासेठों के व्यापार को बढ़ाया जाये। अब आम लोग “अच्छे दिनों” की असलियत को समझ रहे हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार अपने जनविरोधी कदमों के साथ दो चालें चल रही है। एक ओर ‘जन-धन योजना’ और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसी नौटंकी की जा रही है ताकि जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाकर कुछ सस्ती लोकप्रियता हासिल की जा सके। वहीं दूसरी ओर देश भर में साम्प्रदायिक तनाव भड़काया जा रहा है। दिल्ली के त्रिलोकपुरी में दंगे कराकर, बवाना और खजूरी में साम्प्रदायिक तनाव फैलाकर और ‘घर वापसी’, ‘रामजादे-हरामज़ादे’, ‘हिन्दू औरतों के चार बच्चे पैदा करने’ जैसी बयानबाजियों से दिल्ली चुनावों में भी वोटों के धार्मिक ध्रुर्वीकरण का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन भाजपा का ‘अच्छे दिनों और विकास’ का वायदा सिर्फ धन्नासेठों के लिए ही है और दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने के बाद इसी एजेण्डे को आगे बढ़ाया जायेगा।

आम आदमी पार्टीः साफ़-सुथरे पूँजीवाद का गन्दा सपना और धन्नासेठों की सेवा का नया रास्ता!

अब बात जरा आम आदमी पार्टी (आप) के “ईमानदार” उम्मीदवारों की! ये तथाकथित ईमानदारी के पुतले लूट और मुनापफ़े पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था के खूनी चेहरे पर पर्दा डालकर आम लोगों को “भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली” के झूठे सपने फिर दिखा रहे हैं। ‘आम आदमी पार्टी’ ने अपने 49 दिनों के शासन में दिखा दिया कि वे भी घोर मज़दूर-विरोधी है। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में ठेके पर काम करने वाले लोगों को स्थायी करने का वादा किया था। लेकिन सरकार बनने के बाद वे इस वायदे से साफ़ मुकर गये। केजरीवाल को समझ में आ गया कि मज़दूरों से ज़्यादा वायदे करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उन्हें पूरा करके पूँजीपतियों को नाराज़ नहीं किया जा सकता। इसीलिए इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ठेका मज़दूरी का मसला ही नहीं उठाया! दूसरी तरफ़, व्यापारियों और पूँजीपतियों के बीच जाकर केजरीवाल ने धन्धा लगाने, चलाने और बन्द करने को आसान करने का वायदा किया और खुद के व्यापारी समुदाय से होने की दुहाई दी! यानी कि पूँजीपतियों को हर प्रकार के सरकारी नियमों से छूट और मज़दूरों को ठेके पर गुलामी करने की छूट! इसी से सदाचार के इन पुतलों का असली चरित्र पता चलता है!

इस बार दिल्ली की आम आबादी से बिजली-पानी के बिलों पर छूट जैसे हवाई वायदों के साथ, दिल्ली में इंटरनेट फ्री जैसे लोकरंजक वायदे किये जा रहे हैं ताकि दिल्ली के खाते-पीते मध्यवर्ग का वोट केजरीवाल को मिल सके। दिल्ली के व्यापारियों से धन्धा लगाने और चलाने को आसान बनाने और वैट का बोझ कम करने के ठोस वायदे किये जा रहे हैं। जाहिरा तौर पर ‘आप’ को धन्नासेठों से किये गये वायदों पर अमल करना ही होगा वरना अगले चुनावों में केजरीवाल के साथ दिल्ली के तमाम ठेकेदार, मालिक और व्यापारी 20 हज़ार रुपये में डिनर क्यों करेंगे?

केजरीवाल के लिए दिल्ली के करीब 60 लाख ठेका मज़दूरों के लिए श्रम क़ानूनों का न लागू होना कोई मुद्दा नहीं है? मज़दूरों के ख़ि‍लाफ़ होने वाले इस नंगे भ्रष्टाचार के विरुद्ध केजरीवाल जी कभी एक भी शब्द क्यों नहीं बोले? इसका कारण यह है कि केजरीवाल की पार्टी के ही तमाम प्रत्याशी स्वयं छोटे और मँझोले मालिक और व्यापारी हैं, जो बड़ी कम्पनियों और मालिकों से भी ज़्यादा नंगई के साथ श्रम कानूनों का उल्लंघन करते हैं! केजरीवाल बिजली के बिलों में कटौती करने का सपना दिखाते हैं, लेकिन इस पर चुप्पी साध लेते हैं कि बिजली का निजीकरण समाप्त किया जायेगा या नहीं? कौन नहीं जानता कि दिल्ली में बिजली के बिल निजीकरण के कारण आसमान छू रहे हैं? अगर आप ग़ौर करें तो पाएँगे कि केजरीवाल कभी भी ऐसा कोई मुद्दा नहीं उठाते जिससे कि मालिकों, ठेकेदारों, कारपोरेट कम्पनियों के वर्ग को कोई नुकसान होता हो। वह बस सरकारी दफ्तर के भ्रष्टाचार और नेताओं द्वारा किये जा रहे घोटालों की ही बात करते हैं, जबकि इस भ्रष्टाचार की जड़ में तो मौजूदा मुनाफ़ाखोर व्यवस्था है जिसके बारे में केजरीवाल कभी एक लफ्ज़ नहीं बोलते! पुराने पतित लोहियावादियों और भ्रष्ट एनजीओपंथियों की प्रणय-लीला से पैदा हुई ‘आप’ का मकसद है जनता को ‘बुरे पूँजीवाद’ की जगह ‘सन्त पूँजीवाद’ लाने का सपना दिखाकर बेवकूफ़ बनाना और अन्त में उन्हीं धन्नासेठों की सेवा करना जिनकी सेवा कांग्रेस, भाजपा व अन्य चुनावी पार्टियाँ कर रही हैं!

कांग्रेसः पूँजीपतियों की पुरानी वफ़ादार पार्टी!

पहले दिल्ली और फिर देश में चुनावी खेल में पिछड़ने के बाद कांग्रेस समझ नहीं पा रही कि इस विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता से क्या वायदा करें। आज कांग्रेस दिल्ली में विकास के डोर टूटने की दुहाई दे रही है! सच है कि कांग्रेस के 15 साल के राज में धन्नासेठों की दिल्ली तो मालामाल हो गयी और धनपशुओं के लिए खूब विकास हुआ! लेकिन दिल्ली के आम मेहनतकश लोगों की इस विकास की जूठन ही नसीब हुई! इन 15 वर्षों में देश की सबसे पुरानी पूँजीपतियों और दुकानदारों की पार्टी ने भ्रष्टाचार का ऐसा घटाटोप फैलाया कि पूँजीवादी व्यवस्था के पहरेदार भी अण्णा हज़ारे, केजरीवाल जैसे मदारियों की ज़रूरत महसूस करने लगे! अगर प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व न हो तो वह फट जायेगा! उसी प्रकार भ्रष्ट पूँजीवादी व्यवस्था में अगर केजरीवॉल्व न हो तो उसमें भी विस्फोट हो जायेगा! ख़ैर, कांग्रेस के शासन के दौरान दिल्ली और देश में ग़रीबी, भ्रष्टाचार और महँगाई का जो घटाटोप छाया उसकी कीमत देश भर में कांग्रेस अभी भी चुका रही है। लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस और भाजपा की आर्थिक नीति में कोई फर्क नहीं है। देश की सम्पदा और मेहनत को देशी-विदेशी पूँजी के हाथों औने-पौने दामों पर बेचने की शुरुआत तो वास्तव में कांग्रेस ने ही की थी, जिसे भाजपा और ज़्यादा ज़ोरों से कर रही है।

ऐसे में कांग्रेस दिल्ली की जनता से अपने चुनावी घोषणा-पत्र में एकदम कोरे लोकरंजक वायदे कर अपने जनाधार को वापस पाने की कोशिश में लगी हुई है। साथ ही दिल्ली में बने साम्प्रदायिक माहौल से भी कांग्रेस फायदा लेना चाहती है। लेकिन कांग्रेस का सितारा गर्दिश में ही नज़र आ रहा है।

नकली वामपंथियों का मौकापरस्त गठबन्धन

इस बार दिल्ली चुनाव में मज़दूरों का नाम लेकर, मज़दूरों को धोखा देने वाली कई नकली वामपंथी चुनावी पार्टियाँ मिलकर चुनावी रण में कूद गई हैं। सीपीएम, सीपीआई, एसयूसूआई व अन्य चुनावी पार्टियाँ का भी लुटेरी आर्थिक नीतियों पर कोई सवाल नहीं है। चुनाव के समय अब इन्हें दिल्ली के मज़दूरों की याद आ रही है; मज़दूरों की गद्दार इन चुनावी पार्टियों से तो मेहनतकश आबादी को ज़्यादा सावधान रहने की जरूरत है। ये स्वयं सत्ता में रहने पर वही नीतियाँ लागू करते हैं जो कि कांग्रेस, भाजपा जैसी पार्टियाँ लागू करती हैं। पश्चिम बंगाल में नन्दीग्राम, सिंगूर, लालगढ़ में इन ग़द्दारों वही किया था जो कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा जैसी पार्टियाँ करती हैं? ऐसे में, इन ठगों से विशेष तौर पर सावधान रहने की ज़रूरत है।

भगतसिंह की बात सुनो! नयी क्रान्ति की राह चुनो!

bhagat_singइस बेहद ख़र्चीली चुनावी नौटंकी और जनता की छाती पर भारी चट्टान की तरह लदी पूँजीवादी संसदीय प्रणाली को हम सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे भी पिछले 67 सालों के पन्द्रह लोकसभा चुनावों और दर्जनों विधानसभा चुनावों में पूँजीवादी राजनीति की नंगई जनता के सामने है। ग़ैर-बराबरी और अन्याय पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था में चुनाव एक धोखा है! पूँजीवादी जनतन्त्र जनता के लिए धनतन्त्र और डण्डातन्त्र है! हमारे पास यही विकल्प है कि नागनाथ-साँपनाथ में से किसी एक को चुन लें। ऐसे में, ‘सबसे कम बुरे’ का चुनाव करने से आज हमें कुछ भी नहीं हासिल होगा। हमें इस चुनावी नौंटकी की असलियत को समझना होगा। हमें समझना होगा कि मौजूद पूँजीवादी व्यवस्था की नींव में देश की 75 से 80 फीसदी मज़दूरों, ग़रीब किसानों और निम्न मध्यवर्गीय आबादी की लूट है। कोई भी चुनावी पार्टी इस लूट पर सवाल नहीं खड़ा करती! हर चुनावी पार्टी धन्नासेठों से मिलने वाले चन्दे पर चुनाव लड़ती हैं! हर चुनावी पार्टी देश की प्राकृतिक और मानव सम्पदा की इन पूँजीपतियों के हाथों लूट के लिए नीति और कानून बनाती हैं! ऐसे में, इनमें से किसी एक को चुन लेने से कुछ भी नहीं बदलने वाला!

दोस्तों! समूची मुनाफ़ाखोर पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंके बग़ैर आम मेहनतकश जनता का कोई भविष्य नहीं है। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि किसी पूँजीवादी चुनावी पार्टी के हाथों आज़ादी आयी तो वह भूरे अंग्रेजों की सत्ता लायेगी! मज़दूरों, ग़रीब किसानों और आम मध्यवर्गीय लोगों को अपनी इंक़लाबी पार्टी खड़ी करनी होगी और एक नयी आज़ादी के लिए लड़ना होगा! भगतसिंह के लिए नयी आज़ादी अर्थ था एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सारे कल-कारखाने, खान-खदान और खेत-खलिहान पूरे देश की साझा सम्पत्ति हो! जिसमें सारा उत्पादन समाज की ज़रूरत के मुताबिक हो, न कि कुछ धन्नासेठों के मुनाप़फ़े के लिए! भगतसिंह के इसी सपने को हम क्रान्तिकारी लोकस्वराज्य कहते हैं! एक ऐसी व्यवस्था के बिना न तो हम ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई से निजात पा सकते हैं और न ही साम्प्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद से!

भगतसिंह का ख़्वाब ! इलेक्शन नहीं इंक़लाब !!

जब तक पूँजीवाद रहेगा! मेहनतकश बर्बाद रहेगा!

  • नौजवान भारत सभा
  • बिगुल मज़दूर दस्ता
  • दिशा छात्र संगठन
  • दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन
  • करावल नगर मज़दूर यूनियन

सम्पर्कः बी-100, गली नं-3, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-94, फोन नं- 011-64623928, 9873358124, 9711736435, 9289498250, 7532839068 ईमेल- nbs.delhi@gmail.com

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