‘गौ-रक्षा दल’ द्वारा गुजरात में दलितों पर बर्बर अत्याचार के खिलाफ आव़ाज उठाओ!!
चुप रहना छोड़ दो ! गुलामी की बेड़ियों तोड़ दो ! !
आर. एस. एस. व भाजपा का दलित विरोधी चेहरा बेनकाब।
साथियो,
आप जानते ही हैं कि अभी कुछ दिन पहले 11 जुलाई को गुजरात के ऊना में गौ-रक्षा दल के गुंडों ने चार दलित युवाओं की बर्बर पिटाई की थी। ये दलित युवा मरी हुई गायों की चमड़ी उतार रहे थे। लेकिन हिंदुत्ववादी फासीवादी राजनीति करने वाले शिवसेना के गुंडा-गिरोह गौ-रक्षा दल ने इन्हें पकड़ लिया और जानवरों की तरह गाडी से रस्सी द्वारा बांधकर, लोहे की रॉड और डंडों-हॉकियों से कई घंटों तक बर्बरता-पूर्वक पीटा। गौरतलब है कि ये दलित युवा वही काम कर रहे थे जो सदियों से इस सड़ी-गली ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था द्वारा ही इन जातियों पर थोपा गया है। जब पुलिस को दलितों की पिटाई की खबर मिली तो घटनास्थल पर पीसीआर वैन पहुंची। लेकिन पुलिस ने दलितों को अस्पताल ले जाने और इन गुंडों को गिरफ्तार करने की बजाय उलटे दलितों को इन गौरक्षकों को ही सौंप दिया। गौरक्षक दलितों को गांव में घुमाकर तीन घंटे तक पीटते रहे। दलितों की तीन घंटे तक पिटाई होने के बाद भी स्थानीय पुलिस हरकत में नहीं आई। जब दोपहर के 1.25 बजे गांधीनगर स्टेट कंट्रोल रूम ने वेरावल पुलिस कंट्रोल को जानकारी दी कि ऊना में दलितों की पिटाई हो रही है तब पुलिस हरकत में आई। लेकिन इसके बाद भी गौरक्षकों के खिलाफ कार्यवाही करने के बदले पुलिस ने इन दलित युवाओं को ही पशु अत्याचार विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया. जब इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों द्वारा इसका विरोध शुरू हुआ और दबाव बनाया गया तब जाकर पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार किया।
साथियो, यह दलित उत्पीडन की कोई पहली घटना नहीं है. आये दिन दलित उत्पीडन की घटनाएं हमारे सामने आती ही रहती हैं। अभी की ताजा-तरीन घटना हरियाणा में रोहतक जिले की है जहां एक दलित लड़की के साथ दबंग जातियों के उन्ही लड़कों ने दुबारा गैंग-रेप की घटना को अंजाम दिया है जिन्होंने तीन साल पहले भी उसके साथ गैंग-रेप किया था। 2002 में भी हरियाणा के दुलीना में मरी हुई गाय की खाल उतारते पांच दलितों की ईंंट-पत्थरों से मार-मार कर हत्या कर दी गई थी। साफ तौर पर बथानी टोला, लक्ष्मणपुर-बाथे, खैरलांजी, मिर्चपुर, गोहाना, भगाणा काण्ड जैसी बर्बर घटनाएं हमारे समाज में जाति व्यवस्था का क्रूर चेहरा दिखाती है।
दूसरा, दलित युवाओं को पीटे जाने की इस घटना से यह साफ हो जाता है कि अगर आर.एस.एस. और भाजपा अपनी हिंदुत्ववादी फासीवादी एजेंंडे को लागू करने में पूरी तरह सफल हो गयी तो दलितों की जिन्दगी कैसी होगी। और यहाँ बात सिर्फ दलितों तक ही सीमित नहीं है। इसी तरह गोमांस की अफवाह फैलाकर अखलाक नाम के एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डालने वाले भी यही कट्टरपंथी ताकतें थी। ये फासीवाद हमेशा कमजोर तबकों के खिलाफ होता है, चाहे वे दलित हों, अल्पसंख्यक हों या महिलायें हों। फासीवाद और कुछ नहीं सड़ता हुआ पूँजीवाद ही होता है इसलिए दलित-मुक्ति के लिए संघर्ष लाजिमी तौर से ब्राह्मणवाद- पूँजीवाद- फासीवाद के खिलाफ होगा और सिर्फ दलितों के द्वारा नहीं बल्कि समाज के सभी शोषित-उत्पीडित मेहनतकश तबकों की व्यापक एकजुट ताकत के द्वारा किया जाएगा। आज जो वौटबैंक की राजनीति करने वाले दलितवादी संगठन और नेता सिर्फ ब्राह्मणवाद के विरोध तक और अस्मितावादी राजनीति तक ही खुद को सीमित रखते हैं और मौजूदा मानवद्रोही पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ चुप रहते हैं, उन्हें या तो राजनीतिक अर्थशास्त्र की कोई जानकारी नहीं है या वे असल में दलितों के हितैषी होने के नाम पर दलाली कर रहे हैं।
साथियो आज जब पूरे देश में पूंजीवादी संकट के कारण मँहगाई, बेरोजगारी और पूँजीपतियों की लूट तेजी से बढ़ रही हैं ऐसे में जनता के आक्रोश को कुचलने के लिए एक और तो निरंकुश तंत्र को और चुस्त-दुरुस्त किया जा रहा है और दूसरी तरफ फासिस्ट गुंडा-गिरोहों को पूरी छूट जा रही है ताकि वे गरीब दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, छात्रों इत्यादि पर बर्बर हमले करके उन्हें आतंकित करते रहें। इसके साथ-साथ लोगों को धर्म-जाति के नाम पर बांटने की कोशिशें लगातार जारी हैं। सच बोलने और जनता का पक्ष लेकर बोलने वाले छात्रों-युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों पर कट्टरपंथी फासीवादी गिरोह के हमले बड़े पैमाने पर शुरू हो चुके हैं। सरकारी शिक्षा संस्थानों का भगवाकरण किया जा रहा है।
इसलिए साथियों वक्त आ गया है की इन कट्टरपंथी फासीवादी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। आज इन ब्राह्मणवादी, जातिवादी और फासीवादी ताकतों का मुकाबला ऐसा ही व्यापक जन-आन्दोलन कर सकता है जिसमे सभी जातियों-धर्मों के इन्साफ-पसंद छात्र-युवा और मेहनतकश-मजदूरों की बड़ी आबादी शामिल हो और इन गुंडा गिरोहों को सड़क पर ही धूल चटाए। यदि हम आज मिलकर सभी तरह के धार्मिक कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं करते तो आने वाले भयानक मंजर के लिए हम ही जिम्मेदार होंगे और आने वाली पीढ़ी भी हमसे पूछेगी कि जब फासीवादी इस देश-दुनिया को बर्बाद कर रहे थे तो आप चुप क्यों थे।
इस घटना ने हमारे समाज की और लूट पर टिकी व्यवस्था की नंगी सच्चाई को हमारे सामने उघाड़ कर रख दिया है। एक तरफ तो ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था है जिसके द्वारा लोगों को जातियों के आधार पर बाँट दिया गया है जिसमे दलित सबसे निचले पायदान पर हैं और सबसे बर्बर दमन-उत्पीडन के शिकार हैं। दूसरी तरफ पूंजीवादी लोकतंत्र है जहाँ चुनावबाज पार्टियों की सरकारें पूंजीपतियों की सेवा में मगन हैं और मेहनतकश-मजदूरों के शोषण पर आँख मूंदे हुए है।
साथियो! हम आप सभी को गुजरात, रोहतक और इस प्रकार के देश भर में हो रहे काण्डों के विरुद्ध एकजुट हो जाने का आह्वान करते हैं। ये उत्पीड़न की घटनाएँ ग़रीब मेहनतकशों के विरुद्ध नवधनाढ्य दबंगों का अपराध हैं और इसलिए इनसे लड़ेंगे भी ग़रीब मेहनतकश और न्यायप्रिय नौजवान, छात्र और स्त्रियाँ, चाहे वे किसी भी जाति के हों! हमारा दुश्मन साझा है तो हमारी लड़ाई भी साझी होनी चाहिए।
जातिगत उत्पीड़न के ख़िलाफ आवाज़ उठाओ! दलित मुक्ति का रास्ता-इंक़लाब का रास्ता!
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो! सही लड़ाई से नाता जोड़ो!
अखिल भारतीय जाति-विरोधी मंच
नौजवान भारत सभा
दिशा छात्र संगठन