शहीदे-आज़म भगतसिंह के 109 वें जन्मदिवस के अवसर पर ‘शहीद यादगारी यात्रा’
भगतसिंह के सपनों को साकार करो! ‘नौजवान भारत सभा’ के सदस्य बनो!!
प्यारे लोगो,
28 सितम्बर को महान क्रान्तिकारी शहीदे-आज़म भगतसिंह का 109वां जन्मदिवस है। शहीद होने से पहले भगतसिंह ने कहा था कि ब्रिटिश लुटेरे हमारे शरीर को नष्ट कर सकते हैं, लेकिन हमारे विचारों को नहीं। भगतसिंह के शहादत के बाद उनके शरीर की राख से विचार निकल कर चारों ओर फैल गये। भगतसिंह के जन्मदिवस पर तमाम इंसाफ़पसन्द बहादुर नौजवानों के दिलों में भगतसिंह के विचार नये सिरे से जन्म लेते हैं। पर तस्वीर का दूसरा पहलू दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि भारत की आम आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा भगतसिंह के विचारों से अपरिचित है। इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार अंग्रेजों के बाद सत्ता में बैठे देशी भूरे हुक्मरान हैं। भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादतदिवस पर भ्रष्ट चुनावी नेता या धार्मिक कट्टरपंथी संगठन उनकी तस्वीरों पर फूल-माला चढ़ा कर बस एक रस्म-सी अदा कर लेते हैं। पर भगतसिंह के विचारों की ज़रा भी चर्चा नहीं करते। देशी हुक्मरानों ने भगतसिंह के विचारों को धूल और राख के नीचे दबा देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। देश के बहुत से लोग भगतसिंह को केवल अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले बहादुर नौजवान के रूप में ही जानते हैं। भगतसिंह और उनका संगठन किस तरह के भारत का निर्माण करना चाहता था ? उनका सपना क्या था ? इससे आम जनता लगभग अपरिचित है।
साथियो, भगतसिंह का मानना था कि अंग्रेजों को देश से भगाने के साथ ही देशी लुटेरों को भी उखाड़ फेंकना होगा। ऐसा समाज बनाना होगा जिसमें एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी का शोषण न हो, अमीरी-गरीबी की खाईं न हो, धर्म-जाति-क्षेत्र के नाम पर दंगे-फसाद न हों, स्त्री-पुरुष समानता हो, मेहनत करने वाले लोग रहने-खाने-पहनने सहित शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि की सुविधायें हासिल कर सकें। हर इंसान को गरिमा-सम्मान के साथ जीवन जीने का मौका मिले। भगतसिंह का मानना था कि अंग्रेजों की बनाई शासन-प्रशासन की मशीनरी को ध्वस्त कर नये तरीके से सब कुछ बनाना पडे़गा। अंग्रेज चले जांय पर उनकी बनाई मशीनरी को देशी हुक्मरान इस्तेमाल करेंगे तो बस इतना फ़र्क़ पड़ेगा कि जनता को गोरे की जगह भूरे लूटेंगे। कांग्रेस के बारे में भगतसिंह का कहना था कि ये केवल अंग्रेजों की जगह जनता के शोषण का अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती है। जबकि भगतसिंह की लड़ाई किसी द्वारा, किसी तरह के शोषण के ख़िलाफ़ थी।
भगतसिंह की भविष्यवाणी सौ फ़ीसदी सही साबित हुई। देशी लुटेरों के हाथ में जब सत्ता आई तो इन्होंने अंग्रेजों द्वारा बनाये गये नियम-कानून, शासन-प्रशासन की मशीनरी में थोड़ा बहुत बदलाव कर के ज्यों का त्यों अपना लिया। आज़ादी के बाद किसानों-मज़दूरों-जनता के तमाम आन्दोलनों का देशी साहबों ने अंग्रेजों की तरह ही दमन किया। पिछले लगभग 70 सालों में देशी लुटेरों ने विदेशी लुटेरों के साथ मिलकर देश की आम जनता को तबाही-बर्बादी के नर्ककुण्ड पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस समय जहाँ एक ओर अरबपतियों की संख्या लाखों में पहुँच गई है तो वहीं दूसरी ओर 84 करोड़ आबादी एक दिन में 20 रूपये से भी अधिक ख़र्च नहीं कर पा रही है। देश में 18 करोड़ लोग फुटपाथों पर सोते हैं तो 18 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ियों में। जबकि नेताओं और उद्योगपतियों के पास महलों जैसे कई-कई इमारतें हैं। गोदामों में अनाज सड़ता रहता है और रोज करीब 8000 बच्चे भूख-कुपोषण से मरते हैं। 35 करोड़ लोगों को भूखा सोना पड़ता है। देश के लगभग 80 करोड़ से भी अधिक औद्योगिक व खेतिहर मज़दूर तथा गरीब किसान दिन-रात की कड़ी मेहनत के बावजूद भूख और कंगाली से जूझ रहे हैं। 30 करोड़ नौजवान बेरोजगार हैं। कमरतोड़ मँहगाई गरीबों के मुँह से रोटी का निवाला तक छीन ले रही है। आर्थिक तंगी-बेरोजगारी आदि से तंग आकर लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। हर सेकण्ड में एक स्त्री बलात्कार की शिकार होती है। हर वर्ष 50 हजार से भी अधिक बच्चे गायब होते हैं। इनमें से अधिकतर लड़कियों को देह-व्यापार में जबरन धकेल दिया जाता है। बच्चों को भीख माँगने पर मजबूर किया जाता है या उनके शरीर के अंगों को निकालकर बेच दिया जाता है।
भगतसिंह ने ऐसी आज़ादी का सपना नहीं देखा था। यह आज़ादी देश के मुट्ठी भर पूँजीपतियों की है। देश की कुल आबादी में से 10 फीसदी अमीरों के पास देश की कुल सम्पदा का 85 प्रतिशत है। जबकि नीचे की 60 प्रतिशत आबादी के पास सिर्फ 2 प्रतिशत है। आज़ादी के 7 दशकों में 22 पूँजीपति घरानों की सम्पत्ति में 500 गुना से भी अधिक बढ़त हुई है। संसद-विधानसभा चोरों-गुण्डों व निठल्ले परजीवियों का अड्डा बन गई है। संसद के हर मिनट की कार्रवाई में जनता की गाढ़ी कमाई के ढाई लाख रूपये ख़र्च किये जाते हैं। जबकि संसद में नेता गाली-गलौच करने, कुर्सी तोड़ने, सोने-ऊँघने व जनता को लूटने की नई-2 नीतियाँ बनाने का काम करते हैं। चुनावों में अरबों रूपये का ख़र्च किया जाता है परन्तु हर चुनाव में जनता को या तो साँपनाथ मिलते हैं या नागनाथ। जितनी भी चुनावी पार्टियाँ हैं उनमें केवल झण्डे व बिल्ले का ही फ़र्क होता है। सत्ता में चाहे जो पार्टी आये उसका काम जनता को लूटकर धन्नासेठों की तिजोरी भरना ही होता है। जैसे इस बार ‘‘अच्छे दिन’’, मँहगाई ख़त्म करने, स्वदेशी की बात करके भाजपा सत्ता में आई। पर सत्ता में आते ही मँहगाई कई गुंना बढ़ गई। धन्नासेठों का अरबों रूपये कर्ज माफ कर दिया गया। एफ.डी.आई., जी.एस.टी. बिल पर कांग्रेस का विरोध करने वाली भाजपा सत्ता में आते ही उस पर अमल करना शुरू कर दिया। व्यापम घोटाला, पंकजा मुण्डे घोटाला तो अभी शुरुआती बानगी है। शिक्षा की हालत पहले ही खस्ता थी, अब ‘डिज़िटल इण्डिया’ की बात करने वाली मोदी सरकार ने उच्च शिक्षा के बजट में 55 प्रतिशत की कटौती कर उच्च शिक्षा का कबाड़ा करके निजी हाथों में लुटेरों को मुनाफा कमाने के लिये सौंपने की तैयारी कर ली है। नीचे से लेकर ऊपर तक की हर संस्था पर रईसज़ादों का कब्जा है। ग्राम प्रधान से लेकर विधायक-सांसद तक के चुनाव में धनबलियों-बाहुबलियों का बोलबाला है। इन सबके लिए चुनाव में खर्च बड़े-बड़े उद्योगपति, व्यापारी, ठेकेदार आदि करते हैं इसलिए सत्ता में चाहे जो पार्टी या नेता आये, तिजोरी धनिकों की ही भरती है।
साथियो! यह पूँजीवादी व्यवस्था अन्दर से सड़ चुकी है और इसी सड़ान्ध से हिटलर-मुसोलिनी के वारिस पैदा हो रहे हैं जिन्हें फासिस्ट कहा जाता है। फासिस्ट धर्म या नस्ल के आधार पर जनता को बाँट देते हैं। वे धार्मिक या नस्ली अल्पसंख्यकों का निशाना बनाकर एक नकली लड़ाई से असली लड़ाई को पीछे कर देते हैं। पूरे देश में दंगों और ख़ून-खराबों का विनाशकारी खेल शुरू कर देते हैं। हमारे देश में पिछले पच्चीस वर्षों से कभी मन्दिर-मस्जिद,कभी गाय तो कभी देशद्रोह बनाम देशभक्ति के नाम पर जारी यह उत्पात पूरे देश को एक ख़ूनी दलदल की ओर धकेलता जा रहा है। भगतसिंह ने ऐसे कट्टरपंथी संगठनों से जनता को सावधान किया था। हिन्दू व मुस्लिम कट्टरपंथियों का पर्दाफाश करते हुए बताया था कि ये सब अंग्रेजों की ‘फूट डालो राज करो’ की नीति में मददगार है। आज के समय में भी यही हो रहा है। नकली मुद्दे उभाड़कर लूट, दमन, बेदखली, बेरोजगारी, मँहगाई आदि जनता के बुनियादी मुद्दों और सरकार की वायदा-ख़िलाफियों पर पर्दा डाला जा रहा है। जिन्हें मिलकर दस फ़ीसदी लुटेरों से लड़ना है, वे आपस में ही ख़ून के प्यासे हो रहे हैं। गौर करने की बात यह है कि जो ‘‘देशभक्ति’’ का लबादा ओढ़ के घूम रहे हैं उन्हें देश के करोड़ों लोगों के दुख-दर्द से कुछ भी लेना-देना नहीं है। पूँजीपतियों के कारखानों का धुंआ और कचरा से देश की सारी नदियों, हवा-पानी-जंगल बर्बाद हो रहे हैं लेकिन उनके ख़िलाफ़ ये कभी देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं करते। हर तरह के खाने-पीने की चीज़ों में भयंकर मिलावट, कालाबाज़ारी है लेकिन ये ‘‘देशभक्त’’ कभी इसके खि़लाफ़ सड़कों पर नहीं उतरते। जबकि इन चीज़ों को रोका न गया तो न केवल इंसानी जीवन की बर्बादी होगी अपितु धरती इंसानों के रहने लायक नहीं रह जायेगी। प्रिन्ट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर धन्नासेठों का कब्जा है। इसलिए वो 80 फीसदी जनता के दुख-दर्द को छुपाकर 20 फीसदी लोगों के विलासिता भरे जीवन को पर्दे पर दिखाकर बताते हैं कि पूरे देश का विकास हो रहा है। देश के नौजवान समाज को बदलने की लड़ाई में न शामिल हो सकें इसके लिए घटिया, फूहड़ गाने-कार्यक्रम रातों दिन दिखाये जा रहे हैं, नौजवानों में नशे की लत डाली जा रही है।
आखिर इस देश को इस अँधेरी सुरंग से बाहर निकालने का क्या कोई रास्ता है? क्या उम्मीद की कोई किरण नज़र आ रही है?-हाँ, बिल्कुल। इस अँधेरे से बाहर निकलने का एक ही रास्ता है-शहीद भगतसिंह का रास्ता। नाउम्मीदों की एक ही उम्मीद है-इंकलाब। हमें अपने महान शहीदों द्वारा छोड़ी गई अधूरी लड़ाई को अंजाम तक पहुँचाना होगा, देश के बहादुर सपूतों को भगतसिंह के विचारों का परचम ऊँचा उठाना होगा। काल कोठरी से कौम के नाम भेजे गये अपने आखिरी सन्देश में भगतसिंह ने देश के नौजवानों का आह्वान किया था कि उन्हें बन्दूक-पिस्तौल उठाने के बजाय गाँवों-शहरों में घर-घर तक क्रान्ति का सन्देश पहुँचाना होगा। जनसंगठन बनाने होंगे। इसी के मद्देनज़र भगतसिंह और उनके साथियों ने 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का और 1928 में एच.एस.आर.ए. का गठन किया था।
हम लोगों ने भगतसिंह की क्रान्तिकारी विरासत को आगे बढ़ाते हुए फिर से ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया है। ‘नौजवान भारत सभा’ का सर्वप्रमुख नारा होगा-सबके लिए समान शिक्षा व सबको रोजगार और सरकार जब तक हर काम करने योग्य व्यक्ति को काम न दे सके तो भरण-पोषण योग्य बेरोजगारी भत्ता अवश्य दे। नौभास चिकित्सा, पानी, बिजली, नाली-सड़क, आदि अधिकारों को हासिल करने हेतु जनता को संगठित व लामबन्द करेगी। नौभास केवल जनता के सहयोग से पुस्तकालयों, अध्धयन-मण्डल, पर्चों, पत्रिकाओं, पुस्तकों के माध्यम से जनता को जागरूक करेगी। नौभास जातिभेद, छुआछूत, धार्मिक झगड़े आदि के खि़लाफ़ व्यापक अभियान चलायेगी। लेकिन इतने से ही सब कुछ नहीं हो जायेगा। नौभास इन सभी संघर्षों को वर्तमान मानवद्रोही व्यवस्था को उखाड़ फेंक एक समता मूलक व्यवस्था की स्थापना की कड़ी में तब्दील करेगी। यही हमारे शहीदों का सपना था।
साथियो हमें एक नई शुरुआत करनी होगी। जीना है तो लड़ना होगा। चुपचाप लेटे इंतजार करना कब्र में पड़े मुर्दे की फितरत होती हैं। इसलिए हम आह्वान करते है-उठो! जागो!! आगे बढ़ो!!! अगर हमारी बातों में ईमानदारी और इंसाफ की आवाज़ सुनाई दे रही है, अगर हमारे नारों में हमारे फौलादी संकल्प की आहट सुनाई दे रही है, यदि आप एक ज़िन्दा इंसान की तरह जीने और लड़ने के लिए तैयार हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क कीजिए।
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