यतीन्द्रनाथ दास का पत्र
3 जुलाई, 1929
सम्राट बनाम यतीन्द्रनाथ दास
महोदय,
आपका प्रार्थी अत्यन्त सम्मानपूर्वक प्रार्थना करता है कि –
(क) क़रीब चार या पाँच दिन पहले रेलवे स्टेशन पुलिस लॉकअप, जहाँ मैं बन्दी रखा गया था, में शिनाख़्ती परेड करवायी गयी।
(ख) कि रेलवे स्टेशन से गन्दे कपड़े पहने व क़रीब तीस-पैंतालीस साल की उम्र के बीच के कुछ पंजाबी भंगियों और कुलियों को लाया गया। इन व्यक्तियों को इस लॉकअप पर एक गली से लाया गया, जिसके क़रीब मजिस्ट्रेट की कार में पहचान कराने वाला बैठा हुआ था। जब मुझे इन छह व्यक्तियों के बीच खड़ा कर दिया गया और यद्यपि ऐसी शिनाख़्ती परेड के बेतुकेपन के विषय में मैंने मजिस्ट्रेट से रोष भी प्रकट किया, क्योंकि ये पंजाबी न सिर्फ़ अत्यन्त हृष्ट-पुष्ट थे उनके चेहरे के रूप तक से कोई भी यह बता सकता था कि वे बंगाली नहीं हैं। लेकिन मेरी आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, हालाँकि मैंने मजिस्ट्रेट से बार-बार यह कहा कि न्यायोचित यह होगा कि मुझे मुझसे मिलते-जुलते बंगालियों के बीच खड़ा किया जाये, क्योंकि पुलिस के पास मेरा फ़ोटो, मेरे हस्ताक्षर आदि थे जिन्हें वे मेरी शिनाख़्त करने आने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को दिखा सकते थे।
(ग) कि जो व्यक्ति मेरी शिनाख़्त करने आया उससे, मैं जिस तारीख़ को उसने कथित रूप से मुझे देखा, उस बारे में कुछ सवाल पूछना चाहता था लेकिन न सिर्फ़ मेरा अनुरोध नहीं माना गया, वहाँ आये पुलिस-अधिकारियों द्वारा शिनाख़्त करने आये, उस व्यक्ति को वहाँ से घसीटकर दूर ले जाया गया।
(घ) कि यह कार्रवाई बड़े गोपनीय तरीक़े व जल्दबाज़ी से की गयी और मुझे डर है कि इसमें गम्भीर अनियमितता पायी गयी है, जिससे मेरे बचाव में भारी नुक़सान होगा।
यतीन्द्रनाथ दास,
3 जुलाई, 1929
2.10 अपराह्न
(क्रान्तिकारियों के विरुद्ध मुक़दमे की कार्रवाई किस ढंग से चल रही थी और ब्रिटिश न्याय किस तरह से एक ढकोसला था, यह तथ्य मजिस्ट्रेट के नाम यतीन्द्रनाथ दास के इस विरोध-पत्र से भली-भाँति उजागर होता है। – स.)
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्पर्क करें।
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