भूख हड़ताल का नोटिस (बी.के. दत्त)
17 जून, 1929
सुपरिण्टेण्डेण्ट, सेण्ट्रल जेल, लाहौर
मैं आपको और उच्च अधिकारियों को बताना चाहता हूँ कि राजनीतिक बन्दी होने के नाते मैं निम्न सुविधाओं की माँग कर सकता हूँ। असेम्बली में बम फेंकने के बाद लॉर्ड इर्विन ने अपने अन्तिम भाषण में कहा था, “यह बम किसी एक व्यक्ति की ओर नहीं बल्कि एक संस्था पर फेंके गये हैं।” फिर श्री मिडल्टन ने अपने फ़ैसले में उल्लेख किया है कि “ये लोग (दत्त और भगतसिंह) अदालत में ‘इन्क़लाब ज़िन्दाबाद’, ‘सर्वहारा ज़िन्दाबाद’ आदि के नारे लगाते हुए आते थे जिससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि वे इस तरह के राजनीतिक विचारों के हैं। इन्हीं विचारों के प्रचार को रोकने के लिए मैं इनको जीवन क़ैद की सज़ा देता हूँ।”
मैं पुनः यह बता देना चाहता हूँ कि जब कोई यूरोपियन स्वार्थपरता के लिए स्वयं क़ानून की अवहेलना करता है तब जेल में उसको सभी तरह की सुविधाएँ मिलती हैं। उसे बिजली वाला हवादार कमरा, सबसे अच्छी ख़ुराक (दूध, मक्खन, डबल रोटी, गोश्त आदि) और अच्छे कपड़े मिलेंगे। लेकिन हम राजनीतिक क़ैदियों को ये सुविधाएँ मुहैया नहीं करायी जा रहीं। लॉर्ड इर्विन और श्री मिडल्टन की टिप्पणियाँ यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि हम राजनीतिक बन्दी हैं और इस आधार पर मैं माँग करता हूँ कि हमारे साथ राजनीतिक बन्दियों जैसा व्यवहार होना चाहिए। मुझे अच्छी ख़ुराक मिलनी चाहिए, जोकि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
इसके साथ ही राजनीति पर विचार करने के लिए मुझे हर प्रकार का साहित्य और समाचारपत्र मिलने चाहिए। लोग हमें अक्खड़, गुमराह और बेसब्र नौजवान कहते हैं, इसलिए हमें अलग-अलग पुस्तकें पढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए, ताकि हम देख सकें कि हम वास्तव में बेसब्र, गुमराह नौजवान हैं या नहीं, हमारे काम का विचार ठीक है या नहीं। मेरी माँगें इस प्रकार हैं –
- अच्छी ख़ुराक, सुबह दूध और डबल रोटी। दोपहर को दाल, चावल, घी, सब्ज़ी और चीनी और रात को डबल रोटी, गोश्त और चटनी।
- मशक्क़त न करायी जाये।
- समाचारपत्र और हर प्रकार का साहित्य।
- स्नान, साबुन, तेल, कंघी और हज्जाम आदि सहित।
5- अच्छी रिहायश।
6- अपने कपड़े।
सज़ा से पहले और बाद में मुझे ये सब चीज़ें जेल के ख़र्च पर मिलती थीं, लेकिन यहाँ ये सब चीज़ें नहीं मिल रहीं। इसलिए मैंने 14 जून, 1929 से भूख हड़ताल शुरू कर दी है। इन्हीं कारणों से मियाँवाली जेल में मेरे साथी भगतसिंह ने भी भूख हड़ताल की हुई है। मैं तब तक भूख हड़ताल नहीं छोडूँगा जब तक कि सरकार हमारी माँगों को नहीं स्वीकार करती।
मैं तुरन्त उत्तर की आशा करता हूँ। जो भी कोई सरकारी अधिकारी आयेगा उससे इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए मैं तैयार हूँ।
बी.के. दत्त,
क़ैदी, असेम्बली बम केस
शहीद भगतसिंह व उनके साथियों के बाकी दस्तावेजों को यूनिकोड फॉर्मेट में आप इस लिंक से पढ़ सकते हैं।
ये लेख राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित ‘भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ से लिया गया है। पुस्तक का परिचय वहीं से साभार – अपने देश और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी साहित्य की ऐतिहासिक विरासत को प्रस्तुत करने के क्रम में राहुल फाउण्डेशन ने भगतसिंह और उनके साथियों के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बड़े पैमाने पर जागरूक नागरिकों और प्रगतिकामी युवाओं तक पहुँचाया है और इसी सोच के तहत, अब भगतसिंह और उनके साथियों के अब तक उपलब्ध सभी दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है।
इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुन:स्मरण मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करना है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।
इन विचारों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावनासम्पन्न युवाओं को परिचित कराना आवश्यक है जिनके कन्धे पर भविष्य-निर्माण का कठिन ऐतिहासिक दायित्व है। इसी उदेश्य से भगतसिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ों का यह संकलन प्रस्तुत है।
आयरिश क्रान्तिकारी डान ब्रीन की पुस्तक के भगतसिंह द्वारा किये गये अनुवाद और उनकी जेल नोटबुक के साथ ही, भगतसिंह और उनके साथियों और सभी 108 उपलब्ध दस्तावेज़ों को पहली बार एक साथ प्रकाशित किया गया है। इसके बावजूद ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसे कर्इ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों और जेल नोटबुक का जिस तरह आठवें-नवें दशक में पता चला, उसे देखते हुए, अभी भी कुछ सामग्री यहाँ-वहाँ पड़ी होगी, यह मानने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं। इसीलिए इस संकलन को ‘सम्पूर्ण दस्तावेज़’ के बजाय ‘सम्पूर्ण उपलब्ध’ दस्तावेज़ नाम दिया गया है।
व्यापक जनता तक पहूँचाने के लिए राहुल फाउण्डेशन ने इस पुस्तक का मुल्य बेहद कम रखा है (250 रू.)। अगर आप ये पुस्तक खरीदना चाहते हैं तो इस लिंक पर जायें या फिर नीचे दिये गये फोन/ईमेल पर सम्पर्क करें।
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