पिता जी के नाम भगतसिंह का पत्र

आप जानते हैं कि हम एक निश्चित नीति के अनुसार मुक़दमा लड़ रहे हैं…मेरा हर क़दम इस नीति, मेरे सिद्धान्तों और हमारे कार्यक्रम के अनुरूप होना चाहिए। आज स्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं। लेकिन अगर स्थितियाँ इससे कुछ और भी अलग होतीं तो भी मैं अन्तिम व्यक्ति होता जो बचाव प्रस्तुत करता। इस पूरे मुक़दमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह यह कि हमारे विरुद्ध जो संगीन आरोप लगाये गये हैं, बावजूद उनके हम पूर्णतया इस सम्बन्ध में अवहेलना का व्यवहार करें। मेरा नज़रिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी स्थितियों में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो भी कठोरतम सज़ा दी जाये, वह उन्हें हँसते-हँसते बरदाश्त करनी चाहिए। इस पूरे मुक़दमे के दौरान हमारी योजना इसी सिद्धान्त के अनुरूप रही है। हम ऐसा करने में सफल हुए या नहीं, यह फ़ैसला करना मेरा काम नहीं। हम ख़ुदगर्जी को त्यागकर अपना काम कर रहे हैं।

भगतसिंह – कुलबीर को एक और पत्र

मुझे यह जानकर कि एक दिन तुम माँजी को साथ लेकर आये और मुलाक़ात का आदेश न मिलने से निराश होकर वापस लौट गये, बहुत दुख हुआ। तुम्हें तो पता चल चुका था कि जेल में मुलाक़ात की इजाज़त नहीं देते। फिर माँजी को साथ क्यों लाये? मैं जानता हूँ कि इस समय वे बहुत घबरायी हुई हैं, लेकिन इस घबराहट और परेशानी का क्या फ़ायदा, नुक़सान ज़रूर है, क्योंकि जब से मुझे पता चला कि वे बहुत रो रही हैं, मैं स्वयं भी बेचैन हो रहा हूँ।

छोटे भाई कुलबीर को भगतसिंह का पत्र

तुम्हें मालूम ही होगा कि उच्च अधिकारियों के आदेशानुसार मुझसे मुलाक़ातों पर पाबन्दी लगा दी गयी है। इन स्थितियों में फ़िलहाल मुलाक़ात न हो सकेगी और मेरा विचार है कि जल्द ही फ़ैसला सुना दिया जायेगा। इसके कुछ दिनों बाद किसी दूसरी जेल में भेज दिया जायेगा। इसलिए किसी दिन जेल में आकर मेरी किताबें और काग़ज़ात आदि चीज़ें ले जाना। मैं बरतन, कपड़े, किताबें और अन्य काग़ज़ात जेल के डिप्टी सुपरिण्टेण्डेण्ट के दफ्तर में भेज दूँगा।

बटुकेश्वर दत्त की बहन प्रोमिला को भगतसिंह का पत्र

अभी तक हम उसके पड़ाव के बारे में अनजान हैं। इसलिए मैं आपसे अर्ज़ करता हूँ कि आप बनारस से लाहौर के लिए तब तक न चलें जब तक उसकी चिट्ठी न मिले। उसका बिछोह मेरे लिए भी असहनीय है। आज भी मैं बड़ी परेशानी महसूस कर रहा हूँ। हर पल बोझिल बन गया है। सच में ऐसे दोस्त से बिछड़ना जोकि मेरे अपने भाइयों से ज़्यादा प्यारा हो, बहुत दुखद है। ख़ैर, हमें यह सबकुछ हौसला करके सहना चाहिए। मैं आपसे अर्ज़ करता हूँ कि आप धीरज रखें; कोई चिन्ता न करें।

बचपन के दोस्त जयदेव को भगतसिंह का पत्र

आपका बहुत धन्यवाद होगा अगर आप एक दूसरा जोड़ा कपड़े के जूते श्री दत्त के लिए भेज सको। लेकिन दुकानदार से उन्हें पूरा न आने की स्थिति में वापसी की शर्त से लें। मैं इस बारे में अपने पहले ख़त में ही लिख सकता था, लेकिन उस समय श्री दत्त अच्छे मूड में नहीं थे। मगर मेरे लिए यह बहुत कठिन बात है कि मैं अकेला ही इन जूतों को पहनूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि अगली मुलाक़ात के समय जूतों का एक और जोड़ा यहाँ पड़ा होगा।

भगतसिंह – जयदेव के नाम एक और पत्र

आज फिर तुम्हें कुछ तकलीफ़ देने के लिए मैं यह ख़त लिख रहा हूँ, उम्मीद है कि तुम बुरा नहीं मानोगे। कृपया मेरे लिए पैरों का फ़लीट जूता भेजने का प्रबन्ध करना। 9-10 नम्बर का चल जायेगा। चप्पल से बहुत बेआरामी है। कृपया इन्हें शुक्रवार या शनिवार को कुलबीर के हाथ भेजने की कोशिश करना, जब वह हमारी मुलाक़ात के लिए आयेगा।

भगतसिंह – क्रान्तिकारी साथी जयदेव के नाम पत्र

मुझे उम्मीद है कि तुमने 16 दिन के बाद हमारी भूख हड़ताल छोड़ने की बात सुन ली होगी और तुम अन्दाज़ा लगा सकते हो कि इस समय तुम्हारी मदद की हमें कितनी ज़रूरत है। हमें कल कुछ सन्तरे मिले, लेकिन कोई मुलाक़ात नहीं हुई। हमारा मुक़दमा दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया है। इसलिए एक टिन घी और एक ‘क्रेवन-ए’ सिगरेट का टिन भेजने की तुरन्त कृपा करो। कुछ रसगुल्लों के साथ कुछ सन्तरों का भी स्वागत है। सिगरेट के बिना दल की हालत ख़राब है। अब हमारी ज़रूरतों की अनिवार्यता समझ सकते हो।

सुखदेव को भूख हड़ताल के दौरान भगतसिंह का एक और पत्र

आप भली प्रकार जानते हैं कि रूस में राजनीतिक बन्दियों का बन्दीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही ज़ारशाही का तख़्ता उलटने के पश्चात उनके द्वारा जेलों के प्रबन्ध में क्रान्ति लाये जाने का सबसे बड़ा कारण था। क्या भारत को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं है, जो इस विषय से पूर्णतया परिचित हों और इस समस्या का निजी अनुभव रखते हों। केवल यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं, किसी प्रकार भी उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रान्तिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर देना चाहिए।

पिता के नाम भगतसिंह का पत्र

वकील आदि की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है। हाँ, एक-दो नुक्तों पर थोड़ा-सा मशवरा लेना चाहता हूँ, लेकिन वे कोई ख़ास महत्त्व नहीं रखते। आप बिना वजह ज़्यादा कष्ट न करें। अगर आप मिलने आयें तो अकेले ही आना। बेबे जी (माँ) को साथ न लाना। ख़ामख़ाह में वे रो पड़ेंगी और मुझे भी कुछ तकलीफ़ ज़रूर होगी।

सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र

सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र मार्च, 1929 में पब्लिक सेफ्टी बिल को असेम्बली में भारतीय सदस्यों द्वारा रद्द करने पर दोबारा लाया गया। यद्यपि बिल मतगणना से पास नहीं हो सकता था, तो भी वायसराय उसे आर्डिनेंस द्वारा लागू करना चाहते थे। राष्ट्रीय नेता एक बार फिर ब्रिटिश सरकार की ताक़त के सामने लाचारी और अप्रभावी होने की स्थिति पेश कर रहे थे। ऐसे समय पर भगतसिह ने सुझाव दिया कि असेम्बली हॉल में बम का धमाका किया जाये और क्रान्तिकारी पार्टी के विचारों से जनता को शिक्षित किया जाये।…