भगतसिंह – क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा

साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है। कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। सभी विचारों वाले राष्ट्रवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आजादी हासिल हो। पर उन्हें यह समझाने की भी जरूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्रवाईयों से ही सफलता हासिल होगी। चूँकि इसका सरल समाधान नहीं हो सकता, इसलिए स्वयं को छलकर वे उस ओर लपकते हैं, जिसे वे आरजी इलाज, लेकिन झटपट और प्रभावशाली मानते हैं — अर्थात् चन्द सैकड़े दृढ़ आदर्शवादी राष्ट्रवादियों के सशक्त विद्रोह के जरिए विदेशी शासन को पलटकर राज्य का समाजवादी रास्ते पर पुनर्गठन। उन्हें समय की वास्तविकता में झाँककर देखना चाहिए।

भगतसिंह – मैं नास्तिक क्यों हूँ?

प्रगति के समर्थक प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य है कि वह पुराने विश्वास से सम्बन्धित हर बात की आलोचना करे, उसमें अविश्वास करे और उसे चुनौती दे। प्रचलित विश्वास की एक-एक बात के हर कोने-अन्तरे की विवेकपूर्ण जाँच-पड़ताल उसे करनी होगी। यदि कोई विवेकपूर्ण ढंग से पर्याप्त सोच-विचार के बाद किसी सिद्धान्त या दर्शन में विश्वास करता है तो उसके विश्वास का स्वागत है। उसकी तर्क-पद्धति भ्रान्तिपूर्ण, ग़लत, पथ-भ्रष्ट और कदाचित हेत्वाभासी हो सकती है, लेकिन ऐसा आदमी सुधरकर सही रास्ते पर आ सकता है, क्योंकि विवेक का ध्रुवतारा सही रास्ता बनाता हुआ उसके जीवन में चमकता रहता है। मगर कोरा विश्वास और अन्धविश्वास ख़तरनाक होता है। क्योंकि वह दिमाग़ को कुन्द करता है और आदमी को प्रतिक्रियावादी बना देता है।

भगतसिंह – बम का दर्शन

कोई व्यक्ति जनसाधारण की विचारधारा को केवल मंचों से दर्शन और उपदेश देकर नहीं समझ सकता। वह तो केवल इतना ही दावा कर सकता है कि उसने विभिन्न विषयों पर अपने विचार जनता के सामने रखे। क्या गाँधीजी ने इन वर्षों में आम जनता के सामाजिक जीवन में भी कभी प्रवेश करने का प्रयत्न किया? क्या कभी उन्होंने किसी सन्ध्या को गाँव की किसी चौपाल के अलाव के पास बैठकर किसी किसान के विचार जानने का प्रयत्न किया? क्या किसी कारख़ाने के मज़दूर के साथ एक भी शाम गुज़ारकर उसके विचार समझने की कोशिश की है? पर हमने यह किया है और इसीलिए हम दावा करते हैं कि हम आम जनता को जानते हैं। हम गाँधीजी को विश्वास दिलाते हैं कि साधारण भारतीय साधारण मानव के समान ही अहिंसा तथा अपने शत्रु से प्रेम करने की आध्यात्मिक भावना को बहुत कम समझता है। संसार का तो यही नियम है – तुम्हारा एक मित्र है, तुम उससे स्नेह करते हो, कभी-कभी तो इतना अधिक कि तुम उसके लिए अपने प्राण भी दे देते हो। तुम्हारा शत्रु है, तुम उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखते हो। क्रान्तिकारियों का यह सिद्धान्त नितान्त सत्य, सरल और सीधा है और यह ध्रुव सत्य आदम और हौवा के समय से चला आ रहा है तथा इसे समझने में कभी किसी को कठिनाई नहीं हुई। हम यह बात स्वयं के अनुभव के आधार पर कह रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब लोग क्रान्तिकारी विचारधारा को सक्रिय रूप देने के लिए हज़ारों की संख्या में जमा होंगे।

सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र

सुखदेव के नाम भगतसिह का पत्र मार्च, 1929 में पब्लिक सेफ्टी बिल को असेम्बली में भारतीय सदस्यों द्वारा रद्द करने पर दोबारा लाया गया। यद्यपि बिल मतगणना से पास नहीं हो सकता था, तो भी वायसराय उसे आर्डिनेंस द्वारा लागू करना चाहते थे। राष्ट्रीय नेता एक बार फिर ब्रिटिश सरकार की ताक़त के सामने लाचारी और अप्रभावी होने की स्थिति पेश कर रहे थे। ऐसे समय पर भगतसिह ने सुझाव दिया कि असेम्बली हॉल में बम का धमाका किया जाये और क्रान्तिकारी पार्टी के विचारों से जनता को शिक्षित किया जाये।…

भगतसिंह – विद्यार्थी और राजनीति

सभी देशों को आज़ाद करवाने वाले वहाँ के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। क्या हिन्दुस्तान के नौजवान अलग-अलग रहकर अपना और अपने देश का अस्तित्व बचा पायेंगे? नौजवानों के 1919 में विद्यार्थियों पर किये गये अत्याचार भूल नहीं सकते। वे यह भी समझते हैं कि उन्हें एक भारी क्रान्ति की ज़रूरत है। वे पढ़ें। ज़रूर पढ़ें। साथ ही पोलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब ज़रूरत हो तो मैदान में कूद पड़े और अपने जीवन इसी काम में लगा दें। अपने प्राणों का इसी में उत्सर्ग कर दें। वरन बचने का कोई उपाय नज़र नहीं आता।

भगतसिंह – ‘अछूत का सवाल’

उठो, अछूत कहलाने वाले असली जन-सेवको तथा भाइयो उठो! अपना इतिहास देखो। गुरु गोविन्द सिह की फ़ौज की असली शक्ति तुम्हीं थे! शिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सबकुछ कर सके, जिस कारण उनका नाम आज भी ज़िन्दा है। तुम्हारी क़ुर्बानियाँ स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं। तुम जो नित्यप्रति सेवा करके जनता के सुखों में बढ़ोत्तरी करके और ज़िन्दगी सम्भव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो, उसे हम लोग नहीं समझते। लैण्ड-एलिएनेशन एक्ट के अनुसार तुम धन एकत्र कर भी ज़मीन नहीं ख़रीद सकते। तुम पर इतना ज़ुल्म हो रहा है कि मिस मेयो मनुष्यों से भी कहती हैं – उठो, अपनी शक्ति को पहचानो। संगठनबद्ध हो जाओ। असल में स्वयं कोशिशें किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा।

भगतसिंह – साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज

जहाँ तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अख़बारों का हाथ है। इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं ने ऐसी लीद की है कि चुप ही भली। वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने का बीड़ा उठाया था और जो ‘समान राष्ट्रीयता’ और ‘स्वराज-स्वराज’ दम गजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मान्धता के बह चले हैं। सिर छिपा कर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है, और क्या साम्प्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है।

भगतसिंह – धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम

बात यह है कि क्या धर्म घर में रखते हुए भी, लोगों के दिलों में भेदभाव नहीं बढ़ता? क्या उसका देश के पूर्ण स्वतन्त्रता हासिल करने तक पहुँचने में कोई असर नहीं पड़ता? इस समय पूर्ण स्वतन्त्रता के उपासक सज्जन धर्म को दिमाग़ी ग़ुलामी का नाम देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि बच्चे से यह कहना कि – ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, मनुष्य कुछ भी नहीं, मिट्टी का पुतला है – बच्चे को हमेशा के लिए कमज़ोर बनाना है। उसके दिल की ताक़त और उसके आत्मविश्वास की भावना को ही नष्ट कर देना है। लेकिन इस बात पर बहस न भी करें और सीधे अपने सामने रखे दो प्रश्नों पर ही विचार करें तो भी हमें नज़र आता है कि धर्म हमारे रास्ते में एक रोड़ा है। मसलन हम चाहते हैं कि सभी लोग एक-से हों। उनमें पूँजीपतियों के ऊँच-नीच की छूत-अछूत का कोई विभाजन न रहे। लेकिन सनातन धर्म इस भेदभाव के पक्ष में है।

भगतसिंह की वैचारिक विरासत और हमारा समय

इक्कीसवीं शताब्दी में भगतसिंह को याद करना और उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का उपक्रम एक विस्मृत क्रान्तिकारी परम्परा का पुनःस्मरण-मात्र ही नहीं है। भगतसिंह का चिन्तन परम्परा और परिवर्तन के द्वन्द्व का जीवन्त रूप है और आज, जब नयी क्रान्तिकारी शक्तियों को एक बार फिर संगठित होकर साम्राज्यवाद और देशी पूँजीवाद के विरुद्ध संघर्ष की दिशा और मार्ग का सन्धान करना है, जब एक बार फिर नयी समाजवादी क्रान्ति की रणनीति और आम रणकौशल विकसित करने का कार्यभार हमारे सामने है तो भगतसिंह की विचार-प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों से हमें कुछ बहुमूल्य चीज़ें सीखने को मिलेंगी।