गृह मन्त्रालय, भारत सरकार को स्मरणपत्र

स्वतन्त्रता के कार्य में जुटे रहने के कारण कंगाल हो गये राजनीतिक कार्यकर्ताओं का क्या होगा? क्या उन्हें किसी न्यायाधीश की दया पर छोड़ दिया जाये, जो प्रत्येक को साधारण अपराधी कहकर अपनी वफ़ादारी सिद्ध करने की कोशिश करता रहेगा। या यह आशा की जाये कि एक असहयोगी जेल से अच्छे व्यवहार की प्रार्थना करते हुए उन लोगों के आगे हाथ फैलायेगा, जिनके विरुद्ध वह जूझ रहा है? क्या यह ढंग इस बेचैनी के कारण को दूर करने का है या बढ़ाने का? तर्क दिया जा सकता है कि जेलों के बाहर दरिद्रता में जीते लोगों को जेलों में ऐशो-आराम की आशा नहीं रखनी चाहिए जहाँ कि उन्हें सज़ा के उद्देश्य से बन्दी बनाकर रखा गया है। पर वे कौन-से सुधार हैं जिनकी ऐश के लिए आवश्यकता होती है? क्या वे मात्र साधारण जीवन-स्तर की आवश्यकताएँ नहीं हैं?

भगतसिंह – तीसरे इण्टरनेशनल, मास्को के अध्यक्ष को तार

लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं। मज़दूर-राज की जीत हो। सरमायादारी का नाश हो।

गृह मन्त्री, भारत सरकार को तार

समिति के इस आश्वासन पर कि राजनीतिक क़ैदियों के साथ व्यवहार का प्रश्न हमारे सन्तोष के अनुसार शीघ्र ही अन्तिम रूप में हल किया जा रहा है, हमने अपनी भूख हड़ताल स्थगित कर दी थी। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के भूख हड़ताल सम्बन्धी प्रस्तावों की प्रतियाँ जेल-अधिकारियों ने रोक ली हैं। कांग्रेस प्रतिनिधि मण्डल को क़ैदियों से मिलने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया गया है। षड्यन्त्र केस से सम्बन्धित विचाराधीन व्यक्तियों पर पुलिस-अधिकारियों की आज्ञा से 23, 24 अक्टूबर, 1929 को बुरी तरह हमले किये गये।

भगतसिंह – इन्‍क़लाब ज़िन्दाबाद क्या है?

क्रान्ति शब्द का अर्थ ‘प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा’ है। लोग साधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार-मात्र से ही काँपने लगते हैं। यही एक अकर्मण्यता की भावना है, जिसके स्थान पर क्रान्तिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रूढ़िवादी शक्तियाँ मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं। ये परिस्थितियाँ मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं।

भगतसिंह – विद्यार्थियों के नाम पत्र

नौजवानों को क्रान्ति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फ़ैक्टरी-कारख़ानों के क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोंपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रान्ति की अलख जगानी है जिससे आज़ादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।

पंजाब जेल जाँच समिति के अध्यक्ष को पत्र

साथी दास की अवस्था बेहद चिन्ताजनक है और यदि सरकार यह सोचती है कि उनके देहान्त के बाद हम अपने कर्त्तव्य से पीछे हट जायेंगे तो यह उसकी घातक ग़लती है। हम सभी यह बता रहे हैं कि हम सब उन्हीं के रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं। फिर भी निरन्तर संघर्ष को ध्यान में रखते हुए सुविधा के लिए हम स्वयं को दो गुटों में बाँट रहे हैं, जिनमें से पहला गुट फ़ौरन भूख हड़ताल शुरू कर रहा है।

होम मेम्बर के नाम पत्र

हमारी ये माँगें पूर्णतया उचित हैं पर जेल-अधिकारियों ने हमें एक दिन कहा कि उच्च अधिकारियों ने हमारी माँगें मानने से इन्कार कर दिया है। इससे भी अधिक यह कि ज़बरदस्ती खाना देने वाले हमारे साथ बड़ा बुरा सलूक करते हैं। 1 जून, 1929 को भगतसिंह ज़बरदस्ती खाना देने के पन्द्रह मिनट बाद तक पूरी तरह बेसुध पड़े रहे। अतः हम यह निवेदन करते हैं कि बिना किसी ढील के यह दुर्व्यवहार बन्द किया जाना चाहिए।

यतीन्द्रनाथ दास का पत्र

क्रान्तिकारियों के विरुद्ध मुक़दमे की कार्रवाई किस ढंग से चल रही थी और ब्रिटिश न्याय किस तरह से एक ढकोसला था, यह तथ्य मजिस्ट्रेट के नाम यतीन्द्रनाथ दास के इस विरोध-पत्र से भली-भाँति उजागर होता है।

भूख हड़ताल का नोटिस (बी.के. दत्त)

सज़ा से पहले और बाद में मुझे ये सब चीज़ें जेल के ख़र्च पर मिलती थीं, लेकिन यहाँ ये सब चीज़ें नहीं मिल रहीं। इसलिए मैंने 14 जून, 1929 से भूख हड़ताल शुरू कर दी है। इन्हीं कारणों से मियाँवाली जेल में मेरे साथी भगतसिंह ने भी भूख हड़ताल की हुई है। मैं तब तक भूख हड़ताल नहीं छोडूँगा जब तक कि सरकार हमारी माँगों को नहीं स्वीकार करती।

भूख हड़ताल का नोटिस (भगतसिंह)

असेम्बली बमकाण्ड दिल्ली के सम्बन्ध में मुझे आजीवन क़ैद की सज़ा दी गयी है, इसलिए स्पष्ट है कि मैं राजनीतिक बन्दी हूँ। दिल्ली जेल में मुझे विशेष भोजन मिलता था, लेकिन यहाँ पहुँचने पर मेरे साथ सामान्य अपराधियों जैसा सलूक किया जा रहा है इसलिए मैं 15 जून, 1929 की सुबह से भूख हड़ताल पर हूँ। इन दो-तीन दिनों में मेरा वज़न दिल्ली जेल की अपेक्षा 6 पौण्ड कम हो गया है। मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि मुझे हर हाल में राजनीतिक बन्दी का विशेष दर्जा मिलना चाहिए।