मुझे 29 मई 1927 को भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 के अन्तर्गत गिरफ़्तार किया गया और पाँच सप्ताह तक पुलिस हिरासत में बन्द रखा गया। मुझे 4 जुलाई 1927 को जमानत पर छोड़ा गया। तब से मुझे कभी भी पुलिस द्वारा या किसी भी अदालत द्वारा इस धारा के अन्तर्गत मुक़दमे का सामना करने के लिए नहीं बुलाया गया, अतः मैं मान रहा हूँ कि आपकी छानबीन पूरी हो गयी है और मेरे ख़िलाफ़ कुछ नहीं मिला है और व्यवहारतः आपने केस वापिस ले लिया है। इन परिस्थितियों में मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि मेरी गिरफ्तारी के समय मेरे शरीर से बरामद सभी वस्तुएँ कृपया लौटा दें। मुझे सूचित करें कि इस उद्देश्य के लिए मैं आपसे कब और कहाँ मिलूँ। जल्द अनुग्रह का बहुत आभार होगा।
वर्ग-रुचि का आन्दोलनों पर असर
अन्त में इतना ही कहूँगा कि वह नौजवान जो दुनिया में कुछ काम करना चाहते हैं या जो लोग भगवान के हर बन्दे की सेवा करने के लिए अपनी क़ीमती ज़िन्दगियाँ वक़्फ़ करना चाहते हैं, वे हिन्दुस्तानी मज़दूरों और किसानों में मिलकर उनकी रुचि समझने की कोशिश करें और उनकी असली तकलीफ़ें दूर करते हुए उनकी सच्ची उन्नति के लिए आन्दोलन करें। मैंने सरसरी निगाह से वर्तमान समय की गतिविधियों के कुछेक प्रमाण देकर एक ख़ास रुचि की ओर इशारा किया है। इसमें कुछेक नेकदिल लोगों को जोकि इन लहरों में शामिल हैं, नाराज़ नहीं होना चाहिए। मैं उनकी हमदर्दी और सच्चाई को अनुभव करते हुए भी इस ग़लती की ओर उनका ध्यान दिलाना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ, क्योंकि मैं मानता हूँ कि यूरोपियन मुदबर का यह कथन सोलह आने सही है कि एक कारकुन का अपने काम से ही अनजान होना ख़तरनाक और हलाल कर देने वाली बात है।
शहीद अशफ़ाक़उल्ला का फाँसीघर से सन्देश
हिन्दुस्तानी भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय को मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो! व्यर्थ आपस में न लड़ो। रास्ता चाहे अलग हों, लेकिन उद्देश्य सबका एक है। सभी कार्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के साधन हैं, फिर यह व्यर्थ के लड़ाई.झगड़े क्यों? एक होकर देश की नौकरशाही का मुक़ाबला करो अपने देश को आज़ाद कराओ।
शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का अन्तिम सन्देश
अब तो मेरी यही राय है कि अंग्रेज़ी अदालत के आगे न तो कोई बयान दे और न ही कोई सफ़ाई पेश करे। अपील करने के पीछे एक कारण यह भी था कि फाँसी की तारीख़ बदलवाकर मैं एक बार देशवासियों की सहायता और नवयुवकों का दम देखूँ। इसमें मुझे बहुत निराशा हुई। मैंने निश्चय किया था कि सम्भव हो तो जेल से भाग जाऊँ। यदि ऐसा हो सकता तो बाक़ी तीनों की मौत की सज़ा भी माफ़ हो जाती।
शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का पत्र
आज मुझे सुपरिण्टेण्डेण्ट ने बताया कि वायसराय ने मेरी रहम की दरख़्वास्त नामंज़ूर कर दी है। जेल के नियमों के अनुसार मुझे एक सप्ताह के भीतर फाँसी पर चढ़ाया जायेगा। तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस नहीं करना चाहिए क्योंकि मैं अपना पुराना शरीर छोड़कर नया जन्म धारण कर रहा हूँ। आपको यहाँ आकर मुलाक़ात करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि कुछ दिन पहले ही आप मुलाक़ात कर चुके हो। जब मैं लखनऊ में था तो बहिन ने दो बार मुलाक़ात की थी। सभी को मेरी ओर से प्रणाम और लड़कों को प्यार।
गाँधीजी के नाम शचीन्द्रनाथ सान्याल का खुला पत्र
मैं समझता हूँ कि यह मेरा दायित्व है कि मैं आपको उस वादे की याद दिलाऊँ जिसे कि आपने कुछ समय पहले किया था कि जब क्रान्तिकारी एक बार फिर अपनी चुप्पी तोड़कर भारतीय राजनीति के क्षेत्र में दाख़िल होंगे तो आप राजनीति के क्षेत्र से संन्यास ले लेंगे।। अहिंसावादी असहयोग आन्दोलन का प्रयोग अब ख़त्म हो चुका है। आप अपने प्रयोग के लिए पूरा एक साल चाहते थे, लेकिन प्रयोग अगर पाँच नहीं तो कम से कम पूरे चार सालों तक चला, और क्या अभी भी आप यह कहना चाहते हैं कि यह काफ़ी लम्बे समय तक नहीं चला है?
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का संविधान
ज़िला संगठनकर्ता यह सुनिश्चित करेगा कि सदस्यगण अलग-अलग समूहों में विभाजित हों और विभिन्न समूहों को एक-दूसरे के बारे में जानकारी न हो। जहाँ तक सम्भव है कि किसी भी प्रान्त के ज़िला संगठनकर्ता एक-दूसरे की गतिविधियों से अवगत न हों, उन्हें एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से या नाम से भी नहीं जानना चाहिए। कोई भी ज़िला संगठनकर्ता अपने से बड़े अधिकारी को सूचना दिये बग़ैर अपनी जगह को नहीं छोड़ेगा।
दि रिवोल्यूशनरी – हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र
“नये तारे के जन्म के लिए उथल-पुथल ज़रूरी है।” और जीवन पीड़ा और व्यथा के साथ जन्म लेता है। हिन्दुस्तान का भी एक नया जन्म हो रहा है और यह उस उथल-पुथल और पीड़ा के दौर से गुज़र रहा है जिससे बचा नहीं जा सकता है। हिन्दुस्तानी जन अपनी नियत भूमिका अदा करेंगे और तब सारे अनुमान बेकार सिद्ध होंगे, सीधे-सादे और कमज़ोर लोगों से होशियारों और ताक़तवरों के हाथ-पैर फूल जायेंगे, विशाल साम्राज्य चकनाचूर हो जायेंगे और नये राष्ट्रों का उदय होगा जो अपनी शान और महिमा से मानवता को स्तब्ध कर देंगे।
भगतसिंह – युद्ध अभी जारी है…
निकट भविष्य में अन्तिम युद्ध लड़ा जायेगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है और हम अपने पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा।
भगतसिंह – क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा
साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है। कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। सभी विचारों वाले राष्ट्रवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आजादी हासिल हो। पर उन्हें यह समझाने की भी जरूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्रवाईयों से ही सफलता हासिल होगी। चूँकि इसका सरल समाधान नहीं हो सकता, इसलिए स्वयं को छलकर वे उस ओर लपकते हैं, जिसे वे आरजी इलाज, लेकिन झटपट और प्रभावशाली मानते हैं — अर्थात् चन्द सैकड़े दृढ़ आदर्शवादी राष्ट्रवादियों के सशक्त विद्रोह के जरिए विदेशी शासन को पलटकर राज्य का समाजवादी रास्ते पर पुनर्गठन। उन्हें समय की वास्तविकता में झाँककर देखना चाहिए।