शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद स्मृति अभियान – हमें तुम्‍हारा नाम लेना है एक अंधेरे दौर में

अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) पर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद स्मृति अभियान

शहादत थी हमारी इसलिये कि

आज़ादियों का बढ़ता हुआ सफ़ीना

रुके न एक पल को

मगर ये क्या? ये अँधेरा

ये कारवाँ रुका क्यों है?

चले चलो कि अभी काफ़िला-ए-इंकलाब को

आगे, बहुत आगे जाना है।

साथियो, हम अमर शहीद क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद को एक ऐसे समय में याद कर रहे हैं, जब पूरे देश के छात्रों-कर्मचारियों-मेहनतकशों के जीवन व भविष्य को नरक के अँधेरे दलदल में धकेला जा रहा है। आज एक तरफ़ जब छात्र-नौजवान बेरोज़गारी के भयानक संकट के चलते निराशा-हताशा का शिकार होकर आत्महत्या करने पर मज़बूर हो रहे हैं, जब कर्मचारी पहले से मिलने वाली सुविधाओं (पुरानी पेंशन आदि) से हाथ धोते जा रहे हैं और जब खेतों-कारखानों में हड्डी गलाने वाला मेहनतकश कमरतोड़ मेहनत के बाद भी नरक जैसी गन्दी झुग्गी-झोपड़ियों में जीने को मज़बूर हैं। तब इस देश के सत्ताधारी देश में धर्म, मन्दिर-मस्ज़िद के नाम पर नफ़रत की आग भड़काने में जुटे हुए हैं। जब देश का हर तीसरा बच्चा भूखा सोने को मज़बूर है। तब देश के मुट्ठी भर पूँजीपतियों और नेताओं की पार्टियों-रैलियों-आयोजनों आदि में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। आज “आज़ाद” देश में बोलने तक पर पाबन्दियाँ लगाई जा रही हैं, सत्ताधारियों की जनविरोधी नीतियों की आलोचना तक करने पर जुबान पर ताला लगाया जा रहा है तो जरा सोचिये कि क्या चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के आज़ाद भारत का सपना यही था? क्या ऐसे ही समाज के लिए इन क्रांतिकारियों ने छोटी-छोटी उम्रों में अपनी ज़िंदगियाँ कुर्बान की थी?

कत्तई नहीं! चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों का मकसद एक शोषणमुक्त, समतामूलक – धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण करना था। जैसाकि चन्द्रशेखर आज़ाद के साथी भगवानदास माहौर ने लिखा था – “आज़ाद का जन्म हद दर्जे की ग़रीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और धार्मिक कट्टरता में हुआ था, और फिर वे, पुस्तकों को पढ़कर नहीं, राजनीतिक संघर्ष और जीवन संघर्षमें अपने सक्रिय अनुभवों से सीखते हुए ही उस क्रान्तिकारी दल के नेता हुए जिसने अपना नाम रखा थाः ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ और जिसका लक्ष्य था भारत में धर्म निरपेक्ष, वर्ग-विहीन समाजवादी प्रजातंत्र की स्थापना करना। इसी हिन्दुस्तानी प्रजातंत्र सेना के प्रधान सेनानी “बलराज” के रूप में वे पुलिस से युद्ध करते हुए शहीद हुए। इस प्रकार ये सर्वथा उचित ही है कि चन्द्रशेखर आज़ाद का जीवन और उनका नाम साम्राज्यवादी उत्पीड़न में अशिक्षा, अन्ध-विश्वास, धार्मिक कट्टरता में पड़ी भारतीय जनता की क्रान्ति की चेतना का प्रतीक हो गया है”(यश की धरोहर – राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित)।

साथियो, चन्द्रशेखर आज़ाद के सपनों के भारत से आइये आज के भारत में छात्रों-कर्मचारियों-मेहनतकशों की जीवनस्थिति की तुलना करते हैं। आज पूरे देश के युवा बेरोज़गारी के चलते भयानक दुर्दिन के शिकार हैं। सीएमआईई के हालिया सर्वे के अनुसार देश में बेरोज़गार नौजवानों की संख्या 31 से 34 करोड़ के बीच पहुँच गयी है। बेरोज़गारी दर पिछले एक वर्ष से लगातार बढ़ते हुए 45 वर्षों में सबसे ज्यादा हो गयी है। लगभग 90 प्रतिशत स्टार्टअप असफल होकर बन्द हो जा रहे हैं। वर्ष 2018 में ही 1 करोड़ 10 लाख रोज़गार नष्ट हो गये। इण्डियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट (26 जुलाई 2017) के अनुसार रोज़गार विनिमय कार्यालयों में पंजीकृत लोगों में से 0.57 प्रतिशत को ही रोज़गार कार्यालय रोज़गार दिला सके। लेकिन सरकार इन आँकड़ों को बेशर्मी से छिपाने में लगी हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने इसी वज़ह से इस्तीफ़ा दे दिया था कि सरकार एनएसएसओ के सैम्पल सर्वे के आँकड़ों को छिपा रही है। 2014-16 के बीच में देश में 26,500 युवा आत्महत्या कर चुके हैं और ये घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। लेकिन जहाँ मोदी सरकार बेशर्मी से युवाओं को पकौड़ा तलने की सलाह दे रही है, वहीं योगी सरकार बेरोज़गारी का कारण पूर्व जन्मों का परिणाम बता रही है। इतना ही नहीं, भर्तियों में होने वाली अनियमितता, घोटालों आदि के खिलाफ चलने वाले आन्दोलनों को लाठियों और बूटों से कुचल रही है। कर्मचारियों की हालत पहले की तुलना में बहुत बदतर हो गयी है। 2004 में वाजपेयी सरकार द्वारा पुरानी पेंशन को ख़त्म करने के अलावा बहुत सारे आधिकारों पर डाका डाला जा रहा है। इनके खिलाफ होने वाले आन्दोलनों को एस्मा जैसे काले कानूनों से लेकर कोर्ट तक का इस्तेमाल करके कुचला जा रहा है।

इस देश के लिए अपनी मेहनत से अन्न से लेकर ज़रूरत की हर चीज़ पैदा करने वाले खेतों-कारखानों के मजदूरों की हालत बहुत भयंकर है। खेतों में काम करने वाले मजदूरों की जहाँ मजदूरी पेट भरने के लिए भी काफी नहीं है, वहीं उनके हित में कोई भी श्रम कानून हैं ही नहीं। खेत-मज़दूरों की मजदूरी इतनी कम है कि वो अपना दवा-इलाज़ और अपने बच्चों के लिए उचित शिक्षा का प्रबंध तक नहीं कर पाते। उद्योग-कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति और भयंकर है जो गंदे नालों के किनारे बनी झुग्गी-झोपड़ियों में बहुत बुरी हालत में जीने के लिए मज़बूर हैं। वैसे न्यूनतम मजदूरी केवल पशुओं की तरह ज़िन्दा रहने के हिसाब से तय की जाती है। लेकिन वह भी उन्हें नहीं मिलती है। मजदूरों की मेहनत को लूटकर पूँजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए सरकार पहले से ही श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ा रही थी। जो कि मोदी सरकार द्वारा और तेज़ कर दी गयी।

मन्दिर का मुद्दा फुस्स होते देख अब भाजपा पुलवामा में सुरक्षाबलों की मौत को भी भुनाने में जुट गयी हैं।पुलवामा में सुरक्षा व्यवस्था में हुई चूक को अंधराष्ट्रवादी शोर में दबा दिया गया। इस घटना के बाद उसी दिन नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ की रैली और मनोज तिवारी का नाच चलता रहा। सीआरपीऍफ़ जवानों के लिए आँसू बहाने वाली भाजपा ने ही इनकी पेंशन खत्म की थी और रिटायर्ड जवानों के तमाम आन्दोलनों के बाद भी पुरानी पेंशन बहाल नहीं की गयी। जिससे उबरने का उसके पास कोई रास्ता नहीं है। 90 में आर्थिक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद पूँजीवादी दुनिया आर्थिक संकट के लाइलाज़ भंवर में फंसी हुई है। भारत के भी पूँजीपतियों के मुनाफ़े की दर बहुत नीचे गयी है और मन्दी का डर लगातार बरकरार है। ऐसे में सरकार पूँजीपतियों के मुनाफे की दर को बरकरार रखने के लिए शिक्षा-स्वास्थ्य, रोज़गार से लेकर जनता के लिए निहायत बुनियादी चीज़ों पर किये जाने वाले खर्च तक में कटौती की जा रही है। पूँजीपतियों को पता है कि इससे जनता में असंतोष भड़केगा, इसीलिए पूँजीपतियों ने अपनी पुराने प्रबन्धक कान्ग्रेस की जगह भाजपा को रख लिया है क्योंकि जनता के असंतोष को दंगे-फ़साद के जरिये भटकाने में काडर आधारित संघ परिवार ज़्यादा उपयोगी है।

यह स्पश्ट है कि भाजपा की जगह सपा-बसपा, कांग्रेस, आप जैसी पार्टियों के आ जाने से भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आने वाला है क्योंकि ये सभी पार्टियाँ मुट्ठी भर धन्नासेठों के हितों का प्रबन्ध करने वाले रावण के अलग-अलग चेहरों जैसी हैं। इसलिए आज छात्रों-कर्मचारियों-मेहनतकशों को मौज़ूदा व्यवस्था के असली चरित्र को समझना होगा। इन भ्रष्ट-लुटेरी चुनावबाज़ पार्टियों और उनके पिछलग्गू संगठनों के भ्रमजाल से बाहर आना होगा। लूट और झूठ पर टिकी मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे अश्लीलता, फूहड़ता, साम्प्रादायिक आगलगाऊ कार्यक्रमों, देशभक्ति की आड़ में अंधराष्ट्रवाद आदि की साज़िशों का भण्डाफोड़ करना होगा। तर्क और विवेक का इस्तेमाल करते हुए अपनी ऊर्जा को प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा इस्तेमाल होने से बचाना होगा। चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों की समतामूलक और धर्मनिरपेक्ष समाज की विरासत को जानना होगा और उसे जनता के बीच ले जाना होगा। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, बिगुल मज़दूर दस्ता इन शहीदों के सपनों पर आधारित भारत के निर्माण के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय और संघर्षरत है। हम तमाम इंसाफ़पसंद नौजवानों से कहना चाहते हैं कि केवल शहीदों के नाम की माला जपने, भावुक होकर देशहित की बात करने, नेताओं-भ्रष्टाचारियों या मौज़ूदा व्यवस्था को कोसने से कुछ होने वाला नहीं है। बल्कि उन शहीदों द्वारा दिखाए गए रास्ते की सही समझ हासिल करते हुए फिर से एकबार देश की नौजवानी को इंक़लाब का नारा बुलन्द करना होगा। निजी स्वार्थ, दुनियादारी के ज़हर से आज़ाद होकर त्याग और कुर्बानी भरा जीवन जीते हुए जनता के लिए कुछ भी कर गुजरने की शपथ लेनी होगी। हम खुद ऐसे संघर्ष में उपस्थित हैं और ऐसे इंसाफ़पसंद नौजवानों की राह देख रहे हैं जो इस सफ़र में हमारे हमसफ़र बनेंगें। हमसे जुड़ने के लिए हमारे नीचे दिए गए नम्बरों पर सम्पर्क करें।

नौजवान भारत सभा

दिशा छात्र संगठन

बिगुल मज़दूर दस्ता

Related posts

One Thought to “शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद स्मृति अभियान – हमें तुम्‍हारा नाम लेना है एक अंधेरे दौर में”

  1. Shubham Raj Singh

    Inquilab Zindabad

Leave a Comment

sixteen − five =