निजीकरण के विरुद्ध हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल – देश के सभी लोगों के लिए एक विचारणीय संघर्ष

निजीकरण के विरुद्ध हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल – देश के सभी लोगों के लिए एक विचारणीय संघर्ष
हरियाणा रोडवेज की 18 दिन की हड़ताल की समाप्ति पर संक्षिप्त विचार बिन्दु! कृपया अवश्य गौर करें तथा आवश्यक सुझाव व अपनी राय दें!!
हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल जनता पर निजीकरण के रूप में किये गये सरकारी हमले का जवाब देने में कहाँ तक कामयाब रही?
छात्र-युवा-कर्मचारी-मज़दूर-किसान और जनता की एकता ज़िन्दाबाद! 
हरियाणा सरकार का जनविरोधी तानाशाहीपूर्ण रवैया मुर्दाबाद!!

दोस्तो! आपको ज्ञात होगा कि पिछले 18 दिन से चल रही हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की दखल के बाद वापस ली जा चुकी है। आज सभी कर्मचारी काम पर जा चुके हैं। यह हड़ताल 16 अक्टूबर से शुरू हुई थी तथा शुरू में 2 दिन के लिए ही आहूत थी किन्तु सरकार द्वारा हठधर्मिता दिखाये जाने और वार्ता के लिए सामने न आने के कारण इसे क्रमशः 2, 3, 3, 4, 4 दिनों के लिए बढ़ाया जाता रहा। इस प्रकार कुल मिलाकर हड़ताल 18 दिन तक चली। इस दौरान दो बार वार्ताएँ हुई, एक बार अधिकारी स्तर पर तो एक बार मन्त्री स्तर पर। किन्तु सरकार पूरी तरह से 720 निजी बसों को परमिट देने पर अड़ी रही। यही नहीं सरकार के मन्त्रीगण कर्मचारियों को यह नसीहत भी देते रहे कि नीतियाँ बनाने का काम सरकार का है व कर्मचारियों को इसमें अड़ंगा नहीं डालना चाहिए कहने का मतलब कोल्हू के बैल की तरह बिना सींग-पूँछ हिलाये गुलामों की तरह अपने काम से काम रखना चाहिए, तथा सरकारों की जनविरोधी नीतियों पर चूँ तक नहीं करनी चाहिए इसका ठेका केवल पक्ष और विपक्ष के पास ही होता है! सरकार का यह स्पष्ट कहना था कि 720 प्राइवेट बसें तो आयेंगी ही और यदि ज़रूरत पड़ी तो और निजी बसें भी लायी जायेंगी।

निश्चित तौर पर रोडवेज के निजीकरण के खिलाफ किया जा रहा रोडवेज कर्मचारियों का संघर्ष जनता के हक़ में लड़ा जा रहा संघर्ष था। क्योंकि रोडवेज के निजीकरण का मतलब है हजारों रोज़गारों में कमी करना। केन्द्र सरकार के ही नियम के अनुसार 1 लाख की आबादी के ऊपर 60 सार्वजनिक बसों की सुविधा होनी चाहिए। इस लिहाज से हरियाणा की क़रीब 3 करोड़ की आबादी के लिए हरियाणा राज्य परिवहन विभाग के बेड़े में कम से कम 18 हज़ार बसें होनी चाहिए किन्तु फ़िलहाल बसों की संख्या मात्र 4200 है! हम आपके सामने कुछ आँकड़े रख रहे हैं जिससे ‘हरियाणा की शेरनी’ और ‘शान की सवारी’ कही जाने वाली रोडवेज की बर्बादी की कहानी आपके सामने ख़ुद-ब-ख़ुद स्पष्ट हो जायेगी। 1992-93 के समय हरियाणा की जनसंख्या 1 करोड़ के आस-पास थी तब हरियाणा परिवहन विभाग की बसों की संख्या 3500 थी तथा इनपर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 24 हज़ार थी जबकि अब हरियाणा की आबादी 3 करोड़ के क़रीब है किन्तु बसों की संख्या 4200 है तथा इन पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 19 हज़ार ही रह गयी है। पिछले 25 सालों के अन्दर चाहे किसी भी पार्टी की सरकार रही हो लेकिन हरियाणा रोडवेज की सार्वजनिक बस सेवा की हालत लगातार खस्ता होती गयी है। रोडवेज की एक बस पर 6 युवाओं को रोजगार मिलता है यदि रोडवेज के बेड़े में 14 हज़ार नयी बसों को शामिल किया जाता है तो क़रीब 85 हज़ार युवा रोज़गार पायेंगे तथा आम जनता को सुविधा होगी वह अलग। सरकारों में बैठे लोग अपने लग्गू-भग्गुओं को लाभ पहुँचाने के मकसद से रोडवेज में निजीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। मौजूदा 720 बसों के परमिटों की बन्दर बाँट भी कुछ ही गिने-चुने धन्नासेठों और लग्गू-भग्गुओं के बीच की गयी है। हरियाणा रोडवेज का निजीकरण सीधे तौर पर जनता के ऊपर कुठराघात साबित होगा। तमाम राज्यों में परिवहन विभागों को निगम बनाये जाने और बर्बाद किये जाने की कहानी हमारे सामने है ही! यही कारण है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जनता का समर्थन और सहानुभूति रोडवेज कर्मचारियों के साथ थी। शान्तिपूर्ण तरीके से हड़ताल पर जाने का अधिकार भी पूरी तरह से संविधान सम्मत है। इतना सब होने के बावजूद 720 निजी बसों को परमिट दिये जाने की माँग धरी की धरी रह गयी और हड़ताल वापस ली जा चुकी है। निश्चित तौर पर कर्मचारियों की एकता और निरन्तर मौजूद रहे जुझारू तेवर ज़रूर काबिले तारीफ़ हैं किन्तु आनन-फ़ानन में हड़ताल को वापस लिया जाना कई बिन्दुओं पर सोचने के लिए हमें विवश अवश्य करता है।

हाल ही में डाली गयी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि हड़ताल किसी समस्या का कोई समाधान नहीं होता व यदि इससे दिक्कतों का हल होना होता तो हम भी हड़ताल पर बैठ जाते! दूसरा उन्होंने कहा कि गाँधी जी ने तो विदेशी ताकत के खिलाफ हड़ताल की थी पर कर्मचारी तो अपनों के खिलाफ ही हड़ताल कर रहे हैं। कोर्ट की तरफ़ से सरकार को भी नसीहत दी गयी है कि मिल-बैठकर बातचीत से मामले को सुलझाएँ। कोर्ट की अगली तारीख़ तक सरकार और रोडवेज तालमेल कमेटी बातचीत से हल निकालें तथा कोर्ट भी इस स्थिति में मध्यस्तता करने के लिए तैयार रहेगा। सरकार अन्त तक अपनी बात से टस से मस नहीं हुई। यही नहीं 1 नवम्बर यानी बृहस्पतिवार के दिन खट्टर सरकार ने अपना तथाकथित फ़ाइनल नोटिस जारी कर दिया था कि 2 नवम्बर तक सभी कर्मचारी वापस काम पर लौट जायें नहीं तो उनके खिलाफ़ क़ानूनी और विभागीय कार्रवाईयाँ और भी तेज़ कर दी जायेंगी तथा काम से बर्खास्त कर दिया जायेगा। 18 दिनों की हड़ताल के दौरान 1200 एफ़आईआर दर्ज़ की गयी, 400 से अधिक कर्मचारियों को सस्पेण्ड तथा 350 से अधिक को बर्खास्त किया गया, 1000 से ज़्यादा को चार्ज शीट किया गया। कर्मचारियों पर लगाये गये विभिन्न केस, मुकदमें भी 14 नवम्बर यानी अगली तारीख तक मुल्तवी किये जा चुके हैं, ध्यान रहे इन्हें अभी ख़ारिज नहीं किया गया है। रोडवेज तालमेल कमेटी के द्वारा सरकारी फरमान के जवाब में 4 नवम्बर को जीन्द में रैली करने की घोषणा की थी किन्तु इसे भी कोर्ट की कार्रवाई के बाद वापस लिया जा चुका है। परिवहन मन्त्री कृष्ण लाल पँवार हड़ताल ख़त्म होने पर खुद की पीठ थपथपा रहे थे तथा उनकी बोली-भाषा में कोई फ़र्क नहीं था।
फ़िलहाल चारों तरफ़ शुभकामनाएँ देने और लेने का आलम छाया हुआ है। सभी एक-दूसरे को दिवाली और 18 दिन की हड़ताल की बधाई दे रहे हैं! सरकार भी खुश है, कर्मचारी नेता भी इसे अपनी जीत बता रहे हैं तथा कोर्ट की तो बात पर ही अमल हुआ है! किन्तु जनता और आम कर्मचारियों के मन-मस्तिष्क में चन्द सवालात ज़रूर उमड़-घुमड़ रहे हैं।

जैसे:- अभी तो लोहा गर्म हुआ था फ़िर चोट क्यों नहीं की गयी? जनता की सहानुभूति जब सक्रिय समर्थन और सहयोग में बदल रही थी तो हड़ताल वापस क्यों ले ली गयी? क्या नेतृत्व को 18 दिन के बाद यह समझ में आया कि कोर्ट की मध्यस्तता और बात-चीत से भी हल निकाला जा सकता है? क्या इससे पहले मामला कोर्ट में गया ही नहीं था या फ़िर सरकार के साथ निजीकरण के मुद्दे पर वार्ताएँ हुई ही नहीं थी? सबसे बड़ा सवाल कि क्या 18 दिन के संघर्ष के परिणाम को देखते हुए पुनः कर्मचारियों को एक बैनर के नीचे लाना सम्भव होगा? क्या पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट रोडवेज के निजीकरण के विभिन्न पक्षों-पहलुओं से अभी तक अनजान था? रोडवेज का निजीकरण करके सरकार जनहित का कौन सा काम साधना चाहती है? इनमें से कुछ सवालों का जवाब तो वक्त के साथ हमें मिल ही जायेगा तथा कुछ सवाल आगे के संघर्षों में हमें सावधान रहना सिखायेंगे।

यह चीज़ भले ही सम्भव है कि हमारा संघर्ष फ़िलहाली तौर पर आंशिक जीत ही दर्ज़ करे। किन्तु लड़ाई के असल मुद्दे पर कोई ठोस आश्वासन, वायदा, स्टे लिये बिना ही संघर्ष को ख़त्म कर देना या फ़िर मुल्तवी कर देना कहाँ तक उचित है? हम तमाम कर्मचारियों को शानदार हड़ताल के लिये तथा आम जनता को सक्रिय समर्थन के लिये सलाम करते हैं। किन्तु यूनियन जनवाद और वास्तविक सामूहिक नेतृत्व की कमी पर ध्यान दिया जाना चाहिए था तथा साथ ही जनता की सहानुभूति और सहयोग को आन्दोलन की शक्ल नहीं दे पा सकने की कमी को भी दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता है। निजीकरण के रूप में जनता पर किया गया यह सरकारी हमला न तो पहला हमला है और न ही आख़िरी। आगे और भी ज़ोर-शोर से हमें संगठित आन्दोलन खड़े करने होंगे। सही विचारधारा और सही संगठन शक्ति के बिना आन्दोलन हार का खारा स्वाद चख सकते हैं और सही विचारधारा पर अमल और सही रूप में संगठित ताकत हमारी जीत की गारण्टी हो सकते हैं।

सरकारों की पूँजीपतियों से यारी है जनता से गद्दारी है!
हर ज़ोर-ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है!!

अभिवादन सहित,
नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन

Related posts

One Thought to “निजीकरण के विरुद्ध हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल – देश के सभी लोगों के लिए एक विचारणीय संघर्ष”

  1. Kuldeep singh

    Roadways honi chalni chaheye ,roadways apne nirdarit time pur chlegi ,private service shyam k time svari kam hone pur kafi time miss ho jati h,m to roadways ko pasend kerta hu

Leave a Comment

1 × 3 =