शहीद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू के 84 वें शहादत दिवस (23 मार्च,2014) के अवसर पर

शहीद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू के 84 वें शहादत दिवस (23 मार्च,2014) के अवसर पर
भगतसिंह का ख़्वाब
इलेक्शन नहीं इंक़लाब!

मेहनतकश साथियों, नौजवान दोस्तों,

क्या यह सोचकर आपके दिल में तड़प नहीं पैदा होती कि भगतसिंह और उनके नौजवान साथियों की कुरबानी के 84 बरस बीत जाने के बाद भी आज हम पूँजीवादी लूट-खसोट, गैर-बराबरी, शोषण-दमन, अत्याचार और भ्रष्टाचार से भरे वैसे ही समाज में घुट-घुट कर जी रहे हैं जिसे मिटाने के लिए उन जैसे असंख्य नौजवान शहीद हुए थे? क्या आपको नहीं लगता कि यूँ गुलामों की तरह जीना तो मौत से भी बदतर है? क्या ये बेहतर नहीं कि हार और गुलामी को अपनी किस्मत मानने के बजाय शहीदे-आजम भगतसिंह के नारे को फिर से दोहराये कि ‘‘अन्याय के खिलाफ विद्रोह न्यायसंगत है, विद्रोह करो और विद्रोह से क्रान्ति की ओर आगे बढ़ो!’’

क्या था शहीदों का सपना ?

trioभगतसिंह और उनके साथियों की आज़ादी की लड़ाई महज गोरे अंग्रेजों से नहीं बल्कि लूट-शोषण और अन्याय पर टिकी पूरी व्यवस्था से थी। जरूर हम 15 अगस्त 1947 को विदेशी लूटरों से आजाद हो गये लेकिन सत्ता पर काबिज देशी पूँजीपतियों ने विरासत में मिली लूट-शोषण को व्यवस्था को जारी रखा जिससे देश की अस्सी फीसदी जनता के जीवन में कोई बुनियादी फर्क नहीं आया। साफ है बीते 66 साल ने क्रान्तिकारियों की चेतावानी को सही साबित कर दिया है क्योंकि आज देश में जो सारी तरक्की और विकास का शोरगुल सिर्फ मुट्ठीभर ऊपर के लोगों के लिए है। ‘‘विकास’’ का मतलब है अपार दुखों और आँसुओं के सागर में विलासिता की रोशन मीनारों-शीशमहलों से भरे अमीरी के कुछ मीनारें खड़ी हुई है। जरा इन आँकड़ो पर नजर डालिये- देश में ऊपर की तीन फीसदी और नीचे की 40 फीसदी आबादी की आमदनी के बीच का अन्तर आज 60 गुना हो चुका है। 7 प्रतिशत की दर से कुलाँचे भर रही अर्थव्यस्था वाले देश में प्रतिदिन 9000 बच्चे भूख और कुपोषण से मरते हैं। निजीकरण-उदारीकरण के बाईस वर्षों में पूँजी की मार ने करोड़ किसानों को उनकी जगह-जमीन से उजाड़कर दर-बदर कर दिया है जहाँ तक मजदूरों का सवाल है तो उनकी 95 फीसदी आबादी असंगठित है जो दिहाड़ी, ठेका या पीसरेट पर खटती है और 10-12 घण्टे तक रोजना गुलामों की तरह खटने और हाड़ गलाने के बावजूद नर्क के बाशिन्दों जैसी ही जिन्दगी जी रहे है, वहीं जानलेवा मँहगाई, बेरोजगारी ने निम्न मध्यवर्ग आबादी के भी बदतर हालात में धकेल दिया है। सारी बात ये है कि छह दशकों की आजादी में पूँजीपति और उनके चाकरी करने वाले नेता-अफसरों की तो खूब तरक्की हुई है लेकिन 77 फीसदी मेहनतकश जनता 20 रुपये पर जीने के लिए मजबूर हैं। साफ है कि ये आधी-अधूरी आजादी हमारे शहीदों के सपनों की आजादी कतई नहीं है।

हाँ हमें चुनना है भगतसिंह का रास्ता या धनतंत्र के चुनाव का रास्ता !

इस समय लोकसभा चुनावों का बाजार गर्म है। रंग-बिरंगे मदारी चुनावी मैदान में हैं। इनकी पार्टियाँ अलग-अलग हो सकती हैं;  लेकिन इन सबका इरादा एक ही है जनता को लूटो बर्बाद करो-पूँजीपतियों को पूजो आबाद करो। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आप (आम आदमी पार्टी) आदि सभी चुनावबाज पार्टी  एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। सभी की यह नीति है कि पूँजीपतियों के अधिक से अधिक मुनाफे पीटाने की गारण्टी लिए नीतियाँ बनाई जाएँ। सभी इस बात पर एकमत हैं कि मज़दूरों-मेहनतकशों के सारे हक-अधिकार छीन लिए जाएँ। ये सभी चाहते हैं कि सरकार जनता के कल्याण के लिए एक पैसा भी खर्च न करे। इन सभी का इरादा है कि सभी सरकारी उद्यमों को निजी कम्पनियों को दे दिया जाए। सरकार न जनता की आवास का प्रबन्ध करे, न भोजन का, न शिक्षा का, सरकार न अस्पताल चलाए। कांग्रेस,भाजपा जैसी पुरानी पार्टियों की नीति तो यह है ही बल्कि ईमानदारी के ढोंग में हर दूसरे चुनावी मदारी को पीछे छोड़ देनी वाली ‘आम आदमी पार्टी’ भी पूँजीपतियों को अधिक से अधिक लाभ पहुँचाने की निजीकरण-उदारीकरण की आर्थिक नीतियों की कट्टर समर्थक है। किसी के भी पास जनता की गरीबी-बदहाली दूर करने की कोई नीति नहीं है बल्कि सिर्फ खोखले दावे हैं। ये सभी पार्टियाँ लोकसभा चुनावों में जनता की धार्मिक, जातिय, क्षेत्रीय, अंधराष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर अपना वोट-बैंक मजबूत करने में लगी हुई हैं। वहीं दूसरी तरफ ये चुनाव दुनिया के दूसरा सबसे मँहगा चुनाव है जिसमें सभी पार्टियों 30 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है;  जो कि इनके आका पूँजीपति दे रहे है-ताकि चुनाव जीतने के बाद ब्याज समेत जनता से निचोड़ सके। हमें हाकिमों की साजिशों को समझना और नाकाम करना होगा। क्योंकि साँपनाथ-नागनाथ बदलने से मेहनतकश जनता की मुक्ति संम्भव नहीं।

रास्ता किधर है ? किससे करें उम्मीद ?

भीषण गतिरोध और गहन अंधकार के इस मुकाम पर खड़े होकर शहीदों के विचारों की मशाल ही हमारी राहों को रोशन कर सकती है। शहीदे भगतसिंह के शब्दों में -‘‘इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रान्तिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत होती है’’ – ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो। हम आपसे कहना चाहते हैं कि जागिये। अपनी ज़ि‍न्दगी की असलियत को पहचानिये। झूठी आज़ादी का भ्रम छोड़िये! मेहनतकश अवाम की असली आज़ादी का रास्ता पहचानिये! चुनावों से कोई बदलाव नहीं आने वाला! बस हर पाँच साल पर कोई नया लुटेरा हमारे हाथ से आखिरी निवाला छीनकर धन्नासेठों की तिजोरी भरने के लिए आ जाएगा। 66 साल इस बात को समझने के लिए बहुत होते हैं। रास्ता सिर्फ एक है-शहीद-आज़म भगतसिंह का रास्ता! हमें इस सच्चाई पर तहेदिल से और विचारसम्मत ढंग से भरोसा करना होगा कि भगतिंसंह के अधूरे सपनों को पूँजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी एक जनक्रान्ति ही पूरा कर सकती है। और इतिहास ने चुनौतीपूर्ण दायित्व हमेशा की तरह नौजवानों के कंधों पर डाला है।

आज शहीदों को हमारी सच्ची श्रद्धांजली यही हो सकती है कि हम उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचा दें, भगतसिंह ने ही कहा था कि बम-पिस्तौल की दुस्साहसवादी राजनीति से कुछ नहीं बदलता बल्कि ‘क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है’। आज देश की मेहनतकश आबादी को संगठनबद्ध किए जाने की जरूरत है ताकि सच्चे मायने में मेहनतकशों का लोकस्वराज्य कायम हो। आज पूरी दुनिया में लोग पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ़ सड़कों पर उतर रहे हैं, हमें भी इस विश्व महासमर में पीछे नहीं रहना है और यह दिखा देना है कि इस देश की माँओं ने बहादुर बेटे-बेटियों को पैदा करना बन्द नहीं किया है। हम शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण के लिए इस देश के उन इन्साफपसन्द नागरिकों, जुझारू छात्रें-नौजवानों का आह्वान करते हैं जो इस व्यवस्था की चकाचौँध में रीढ़विहीन नहीं हुए हैं। जिनके दिलों में क्रान्तिकारी शहीद अब भी ज़ि‍न्दा हैं वे आगे आयें और हमारे हमसफर बनें।

उठो! जागो!! आगे बढ़ो!!!

नौजवान भारत सभा के सदस्य बनो!   शहीद भगतसिंह के असली वारिस बनो!!

इंक़लाबी अभिवादन के साथ

नौजवान भारत सभा

सम्पर्कः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-94। फोनं-01164623928,9289498250,9210687308

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